संस्मरण

शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2009

एक गीत आपके लिए आंचलिक जबान में-


मन अगनैया में तोहरी पायलिया
रुनक झुन नाचे हे सजनी
तोहसे हमार पिरीति के बंधन्वा
जनमवै के सांचे हे सजनी

तोहरा जो एक अंकवार मिली जाला
तो रतिया के जैसे भिनसार मिलि जाला
चंदा के पतिया पे जैसे चकोर
तोहार गुन बांचे हे सजनी

तोहरा से फूलों के बहार मिलि जाला
तोहरा से सावन के फुहार मिलि जाला
तोहरी सुरतिया निरखते तितिलिया के
पखना के सोरहों सिंगार मिलि जाला
तोहरी सुरतिया निरिखी के बिधाता
जिनगिया संवांचे हे सजनी

गरीबी की मार से मुरुकी जाला जिनगी
मन माँ मुचुकी जाला बात मोरे मन की
एक तो पियास रानी तोहसे मिलन के
दूजे मरजाद नही बिना अन धन के
तोहरा चरण परते चहुँ और
लछमी घर नाचे हे सजनी
........... ये लोक गीत मैंने २८-०१-२००० को लिखा था पुरानी डायरी में कही पड़ा था