आंसुओं से कब भला धुलती तमा तकदीर की
शान्ति पलती है हमेशा साये मे शमशीर की
Posted via email from पद्म सिंह का चिट्ठा - Padm Singh's Blog
आंसुओं से कब भला धुलती तमा तकदीर की
शान्ति पलती है हमेशा साये मे शमशीर की
Posted via email from पद्म सिंह का चिट्ठा - Padm Singh's Blog
हम आम आदमी हैं
किसी 'खास' का अनुगमन हमारी नियति है
हमारे बीच से ही बनता है कोई 'खास'
हमारी मुट्ठियाँ देती हैं शक्ति
हमारे नारे देते हैं आवाज़
हमारे जुलूस देते हैं गति
हमारी तालियाँ देती हैं समर्थन ....
तकरीरों की भट्टियों मे
पकाए जाते हैं जज़्बात
हमारे सीने सहते हैं आघात
धीरे धीरे
बढ़ने लगती हैं मंचों की ऊँचाइयाँ
पसरने लगते हैं बैरिकेट्स
पनपने लगती हैं मरीचिकाएं
चरमराने लगती है आकांक्षाओं की मीनार
तभी… अचानक होता है आभास
कि वो आम आदमी अब आम नहीं रहा
हो गया है खास
और फिर धीरे धीरे .....
उसे बुलंदियों का गुरूर होता गया
आम आदमी का वही चेहरा
आम आदमी से दूर होता गया
लोगों ने समझा नियति का खेल
हो लिए उदास ...
कोई चारा भी नहीं था पास
लेकिन एक दिन
जब हद से बढ़ा संत्रास
(यही कोई ज़मीरी मौत के आस-पास )
फिर एक दिन अकुला कर
सिर झटक, अतीत को झुठला कर
फिर उठ खड़ा होता है कोई आम आदमी
भिंचती हैं मुट्ठियाँ
उछलते हैं नारे
निकलते हैं जुलूस ....
गढ़ी जाती हैं आकांक्षाओं की मीनारें
पकाए जाते हैं जज़्बात
तकरीर की भट्टियों पर
फिर एक भीड़ अनुगमन करती है
छिन्नमस्ता,……!
और एक बार फिर से
बैरीकेट्स फिर पसरते हैं
मंचों का कद बढ़ता है
वो आम आदमी का नुमाइंदा
इतना ऊपर चढ़ता है ...
कि आम आदमी तिनका लगता है
अब आप ही कहिए... ये दोष किनका लगता है?
वो खास होते ही आम आदमी से दूर चला जाता है
और हर बार
आम आदमी ही छ्ला जाता है
चलिये कविता को यहाँ से नया मोड़ देता हूँ
एक इशारा आपके लिए छोड़ देता हूँ
गौर से देखें तो हमारे इर्द गिर्द भीड़ है
हर सीने मे कोई दर्द धड़कता है
हर आँख मे कोई सपना रोता है
हर कोई बच्चों के लिए भविष्य बोता है
मगर यह भीड़ है
बदहवास छितराई मानसिकता वाली
आम आदमी की भीड़
पर ये रात भी तो अमर नहीं है !!
एक दिन ....
आम आदमी किसी "खास" की याचना करना छोड़ देगा
समग्र मे लड़ेगा अपनी लड़ाई,
वक्त की मजबूत कलाई मरोड़ देगा
जिस दिन उसे भरोसा होगा
कि कोई चिंगारी आग भी हो सकती है
बहुत संभव है बुरे सपने से जाग भी हो सकती है
और मुझे तो लगता है
यही भीड़ एक दिन क्रान्ति बनेगी
और किस्मत के दाग धो कर रहेगी
थोड़ी देर भले हो सकती है '
मगर ये जाग हो कर रहेगी
थोड़ी देर भले हो सकती है
मगर ये जाग हो कर रहेगी
Posted via email from पद्म सिंह का चिट्ठा - Padm Singh's Blog
नमस्कार मित्रों.... महीने भर से भ्रष्टाचार की लड़ाई और अन्य व्यस्तताओं के चलते ब्लॉग पर सक्रिय नहीं रहा... फिर से आता हूँ इस गली... किसी की पोस्ट पर टिप्पणी करते हुए अचानक उतर आई एक तुरंती से आगाज़ करता हूँ-
वाह री सरकार वाह तेरे खेल
बाबा पर अत्याचार अन्ना को जेल
धारा 144 और अनशन का रोकना
खामखा मनीष और दिग्गी का भौंकना
संसद के नाम पर जनता की न सुनना
अपनी बात कहना अपना हित चुनना
राहुल की चुप्पी मनमोहन का मौन
समझो इस खेल का खिलाड़ी है कौन
सीबीआई करती है मार्कशीट की जाँच
सरकारी तन्त्र का, ये नंगा नाच
उठती हर आवाज़ डंडों मे दबा दो
सीबीआई, आईबी टीम पीछे लगा दो
ये चुन कर आए हैं मालिक हैं देश मे
घूम रहे हैं कुत्ते खादी के भेष मे
भटक गया मानस मन जनता लाचार है
महंगाई,बे-रोजगारी की मार है
बाज़ आओ अब तो सत्ता के दलालो
अब भी मौका है अपनी लाज को बचा लो
वरना तुम भी काल-ग्रास बन जाओगे
इतिहास लिखने वालो इतिहास बन जाओगे
किसी शायर ने कहा है-
तूफां के बाद बहर बदस्तूर हो गया
टकरा के एक सफीना मगर चूर हो गया
अंततः तमाम फजीहत के बाद बाबा रामदेव ने अपना अनशन तोड़ दिया…आखिरकार सत्ता ने शक्ति और कूटनीति के दम पर जनता की आवाज़ का निर्ममता से गला घोंट दिया… सरकार अपने दंभ और हठधर्मिता के सारे स्तर पार करते हुए नौ दिन से अनशन करते हुए बाबा रामदेव के प्रति जैसी उदासीनता दिखाई उसने काँग्रेस सरकार की कुटिल मानसिकता और प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया…
यह इस देश की वही सर्वोच्च सत्ता है जो अपनी नाक के नीचे सैयद अली शाह गिलानी को भारत की एकता और अखंडता के खिलाफ़ विषवमन करने की अनुमति देती है और भारत माता की जय बोलने वाले एक निहत्थे समूह को विश्राम करते हुए आधी रात में पुलिसिया बर्बरता का शिकार बनाती है. यह वही तथाकथित सेक्युलर समूह है जिसका एक भाग बाटला हाउस मुठभेड़ में शहीद हुए इन्स्पेक्टर एम् सी शर्मा का साथ खड़े न होकर मारे गए आतंकवादियों से सहानुभूति प्रकट करता नज़र आता है और पाकिस्तान में अमेरिका के हाथों ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद उसके मजहबी मानवाधिकारों की रक्षा की माँग उठाता नजर आता है जबकि वहीँ वन्देमातरम का उद्घोष करने वाले भूखे प्यासे सो रहे अनशनकारियों पर आधी रात को आँसू गैस और लाठियों के दम पर दरबदर ठोकरें खाने के लिए खदेड़ दिया जाता है…और उसपर एक जिम्मेदार मन्त्री का बयान… कि हमने तो सुप्रभात में सबको जगाया था. उन्हीं मन्त्री जी के द्वारा आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को जी कह कर संबोधित किया जाता है और भगवाधारी राष्ट्रभक्त को ठग कह कर संबोधित किया जाता है.
प्रश्न उठता है कि एक दिन पहले तक जिस भगवाधारी बाबा से घबरा कर देश की सर्वोच्च सत्ता के चार कैबिनेट मिनिस्टर उसे एयरपोर्ट पर लेने और मनाने जाते हैं, बंद होटल में पाँच घंटे तक वार्ता करते हैं, समझौते करते हैं उसी बाबा को चकमा न दे पाने पार एक दिन बाद ही आयकर और प्रवर्तन निदेशालय जैसी सरकार की जितनी भी एजेंसियाँ हैं बाबा के पीछे लगा दी गयीं. ट्रस्ट और कंपनियों की स्कैनिंग करने के लिए निर्देश दे दिए गए… सूचना मंत्रालय द्वारा एडवाइजरी जारी करवा कर मीडिया को भी दबाव में लिया जाता है और बाबा से सम्बंधित ख़बरों से बचने की सलाह दी जाती है…आचार्य बालकृष्ण की नागरिकता और पासपोर्ट सहित उनके द्वारा बनाई जा रही दवाइयों के विषय में दुष्प्रचार कर बदनाम करने की साजिश की जाती है. जहाँ कल तक सरकार बाबा को फुसलाने में लगी थी.. वहीं अपनी बात न बनते देख बाबा के पीछे संघ और बीजेपी का हाथ होने जैसे बेहूदे आरोप मढे जाने लगे …क्या यह सब इस लिए कि बाबा रामदेव देश को जोड़ने और देश द्रोहियों द्वारा जो देश की अकूत संपत्ति विदेशों में भेजी गयी है उसे वापस लौटाने की आवाज़ उठाते हैं? यदि बाबा रामदेव ठग हैं तो उनकी अगवानी करने चार केन्द्रीय मन्त्री हवाई अड्डा क्यों गए? यदि बाबा की नीति और नीयत ठीक नहीं थी तो उनसे तीन दिनों तक सरकार मंत्रणा क्यों करती रही. क्यों बाबा की सारी माँगें मान लेने का दावा किया गया? इससे पूर्व बाबा के धन साम्राज्य और चंदों की जाँच क्यों नहीं की गयी
वास्तविकता यह है कि कि अनशन की घोषणा करने के बाद से ही लगातार बाबा को फुसलाने धमकाने और यहाँ तक कि खरीदने तक का प्रयास किया जाता रहा.. ज्यों ही बाबा ने सरकारी दबाव के आगे झुकने से इंकार किया सरकार की गन्दी और घटिया प्रवृति हरकत में आ गयी.
इसी प्रकार अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान भी अन्ना की सभी माँगे मान लेने का झूठा आश्वासन दिया गया था… जनलोकपाल कमेटी बनते है तरह तरह की कुटिल चालें चली जाने लगीं..कभी फर्जी सीडी सामने लाकर तो कभी स्टैम्प का मुद्दा खड़ा कर के अधिवक्ता पिता पुत्र और अरविन्द केजरीवाल के छविभंजन का घृणित प्रयास किया गया, तो कभी मुख्य मंत्रियों से राय लेने के नाम पर लोकपाल बिल में रोड़े अटकाए गए.. यहाँ तक कि सिविल सोसाइटी द्वारा की जा रही मीटिंग की लाइव रिकार्डिंग या प्रसारण की माँग भी सिरे से खारिज कर दी गयी ताकि उनके द्वारा दी जा रही अनर्गल दलीलें और कमेटी को दिग्भ्रमित करने के हथकण्डे उजागर न हो जाएँ. अन्ना हजारे के मंच पर भारत माता की तस्वीर होने पर भी खूब आक्षेप लगाए गए और उनका रिश्ता संघ से जोड़ने का प्रयास किया गया.
चार जून 2011 को दिल्ली के रामलीला मैदान में जो कुछ हुआ उसको उचित और ज़रूरी बताने के लिए सरकार द्वारा बेशर्मी से तमाम बहाने गढे गए...लेकिन शायद लोकतन्त्र के इतिहास में यह घटना बेहद शर्मनाक घटना की तरह याद की जायेगी. यह इन्दिराकालीन आपातकाल की बर्बरता की ही याद दिलाता है.लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने पांच जून १९७५ को राष्ट्र नवनिर्माण के लिए सम्पूर्ण क्रान्ति का नारा दिया था. तत्कालीन सत्तासीन काँग्रेस ने उक्त जनांदोलन के दमन के लिए रातों रात आंदोलनकारियों को जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया. उनपर पुलिसिया जुर्म ढाए गए. लोकतन्त्र का गला घोटने के लिए प्रेस पर पाबंदी लगा दी गयी.. सरकारी तानाशाही चलने के लिए इंदिरागांधी ने देश पर आपातकाल थोप दिया. सरकार की यह निरंकुशता भारतीय लोकतन्त्र के इतिहास में कलंक है कई महत्वपूर्ण घटनाक्रमों पर काँग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी रहस्यमय चुप्पी साधे रहती हैं. रामलीला मैदान में हुए पुलिसिया अत्याचार पर भी वह मौन हैं, गुजरात दंगों के खिलाफ़ आईएएस की नौकरी छोड़ गुजरात सरकार विरोधी मुहिम में जुटे हर्ष मंदर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य हैं.जब सारा देश अन्ना के साथ खड़ा था तो मंदर ने लिखा था मंच पर भारत माता का चित्र होने और आंदोलन में स्वयं सेवक संघ के शामिल होने के कारण मै जंतर मंतर नहीं गया. एक बार फिर काँग्रेसी नेता बाबा रामदेव के आंदोलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक और और संघ परिवार के शामिल होने का प्रश्न खड़ा कर रहे हैं यह इस बात का द्योतक है कि इस आंदोलन को दबाने में दस जनपथ की चौकड़ी ही मुख्य भूमिका में है.
परंपरा और संविधान दोनों कहते हैं कि आंदोलन कारी जिस भी विचारधारा के हों उन्हें देश का नागरिक होने के कारण शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात कहने और विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है, दिग्विजय सिंह सरीखे काँग्रेसी नेता संघ परिवार को साम्प्रदायिक साबित करने के लिए भगवा आतंकवाद का झूठ स्थापित करने में लगे हुए हैं जबकि यही दिग्विजय सिंह सिमी जैसी राष्ट्रद्रोही और प्रतिबंधित संगठन के पक्ष में खड़े दीखते हैं, पहले से तयशुदा ओछी राजनीति के तहत काँग्रेस हमेशा की तरह देश में हो रहे किसी भी सार्थक प्रयास जो काँग्रेस को पसंद न हों, संघ या आर एस एस से जोड़ कर उसे बदनाम करने में लगी हुई है. यह भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी काँग्रेस की हताशा को ही रेखांकित करता है.काले धन की वापसी को लेकर आखिर इतनी बौखलाई हुई क्यों है.सुप्रीम कोर्ट की लगातार फटकार और जर्मनी सरकार द्वारा विदेशों में काला धन जमा करने वाले कर चोरों व् भ्रष्टाचारियों की सूची उपलब्ध कराने के बावजूद सरकार किन चेहरों को छिपाना चाहती है ? इन सवालों के पीछे ही काँग्रेसी तानाशाही का राज़ छुपा हुआ है, जो बोफोर्स दलाली काण्ड का मामला उठते ही अधीर हो उठती है,
अन्ना हजारे के बाद बाबा रामदेव के आंदोलन को मिल रहा अपार जन समर्थन सत्तासीनों द्वारा अलग अलग घोटालों में हुए सार्वजनिक धन की लूट के प्रति जन आक्रोश का प्रकटीकरण है, मन्त्री और नेताओं के मुखौटे लगाए ये लुटेरे देश को लूटने में इसलिए सफल हो रहे हैं क्योंकि व्यवस्था ने जिस प्रधान मन्त्री को सार्वजनिक हितों की रक्षा की जिम्मेदारी दी है उन्होंने अपनी जवाबदेही का निर्वाह नहीं किया, उत्तर प्रदेश के भट्टा परसौल पर हुए पुलिसिया अत्याचार के बाद राहुल गाँधी वहाँ के दौरे पर गए थे, राख के ढेर में उन्होंने मानव अस्थियाँ देखने का आरोप लगाया. हालाँकि बाद में यह निराधार साबित हुआ वही राहुल गाँधी रामलीला मैदान की घटना पर आश्चर्यजनक रूप से चुप्पी साध लेते हैं… प्रधान मन्त्री का बयान भी घटना के तीन दिन बाद आता है… और दिग्विजय सिंह लोग अनर्गल प्रलाप करने से बाज़ नहीं आ रहे,.
बाबा रामदेव ने संत समाज के प्रबल अनुरोध और सरकार की असंवेदनशीलता से व्यथित होकर अपना अनशन तोड़ दिया है… आगे उनकी मुहिम क्या रुख अख्तियार करती है पता नहीं लेकिन सरकार बाबा रामदेव पर विजय पाने के बाद उत्साहित है. प्रणव मुखर्जी ने बयान दे दिया कि जनलोकपाल कमेटी की बातें असंवैधानिक हैं और उनको मानना सरकार की मजबूरी नहीं है… इसे रामदेव के बाद अन्ना की मुहिम को कुचलने की अगली मुहिम के आगाज़ के रूप में देखा जाना चाहिए….
इन घटनाओं से एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि गाँधी के देश में गाँधीवादी कहलाने वाली सरकार ने जनान्दोलन और अनशन को मनमाने ढंग से कुचलने और किसी की परवाह न करने की हठधर्मिता पर क्यों अडी है…या तो ये निर्णय सरकार की अदूरदर्शिता का परिचायक है या फिर आत्ममुग्धि का… सरकार जानती है जनता बड़ी भुलक्कड़ है और चुनाव तक सब ठीक हो जाएगा… अब देखना है जनता किसे याद रखती है और किसे भुलाती है…
.......................पद्म सिंह
यह रचना सर्दियों में लिखी गयी थी…पद्मावलि पर प्रकाशन भी किया गया था… लेकिन इस समय इसकी प्रासंगिकता कहीं बेहतर लग रही है इसी लिए ढिबरी पर इसका पुनः प्रकाशन कर रहा हूँ….
पूरे दिन का सवेरे मज़मून गढ़ जाती है धूप
एक सफहा जिंदगी का रोज़ पढ़ जाती है धूप
मुंहलगी इतनी कि पल भर साथ रह कर देखिये
पाँव छू, उंगली पकड़ फिर सर पे चढ जाती है धूप
लांघती परती तपाती खेत, घर ,जंगल, शहर
इस तरह से रास्ते पे अपने बढ़ जाती है धूप
अब्र हो गुस्ताख, शब हो, या शज़र चाहे ग्रहन
सब के इल्जामात मेरे सर पे मढ जाती है धूप
देख सन्नाटा समंदर पे हुकूमत कर चले
शहर से गुजरी कि बित्ते में सिकुड़ जाती है धूप
पूस में दुल्हन सी शर्माती लजाती है मगर
जेठ में छेड़ो तो इत्ते में बिगड़ जाती है धूप
धूप 16/01/2010 पद्म सिंह ----9716973262
एक कहानी है….
एक गाँव में किसी व्यक्ति की नाक कट गयी थी…. पूरे गाँव के लोग उसे नकटा कह-कह कर दिन भर चिढ़ाया करते….सब नाक वालों को देख कर "’इनफीरियारिटी कोम्प्लेक्स' से ग्रसित हो गया था… नकटे को बहुत बुरा लगता और अपने आप को अकेला महसूस करता… एक दिन सुबह उठते ही वह नाचने लगा, गाने लगा… गलियों में हँसता हुआ मुस्कुराता हुआ और आत्म विभोर हो कर घूमने लगा…. पूरा गाँव सकते में था… आखिर इसे हुआ क्या?
किसी ने साहस कर के पूछा भाई क्या बात है आज तो बदले बदले से नज़र आ रहे हो… आनंद की सीमा नहीं है तुम्हारे, कोई खजाना हाथ लगा है? नकटा फिर भी नाचता गाता रहा कुछ नहीं बोला… पूरा गाँव इकठ्ठा हो गया… बहुत दबाव पड़ा तो इस आनंद का राज़ बताने को राज़ी हुआ…बोला मुझे रात ईश्वर के साक्षात दर्शन हुए हैं…अब भी मुझे स्वार्गिक अनुभव हो रहे हैं… लेकिन कैसे हुआ ये किसी को नहीं बताऊंगा… यह कह कर घर चला गया
चर्चा पूरे गाँव में फ़ैल गयी. लोग अकेले में मिल कर ईश्वर प्राप्ति का राज़ जानने की कोशिश में लग गए… गाँव का मुखिया भी अकेले में मिला और जैसे तैसे राज़ बताने पर राज़ी कर लिया… उसने बताया कि मेरी नाक कटने से ही ईश्वर के दर्शन हुए हैं… ईश्वर ने कहा है कि मेरे दर्शन वही पायेगा जिसकी नाक कटी हो…
गाँव का मुखिया लालच में आ गया और उसने भी नाक कटवा ली… नाक कटने पर कुछ भी नहीं हुआ तो उसने फिर पूछा… मुझे तो दर्शन हुए नहीं…. अब नकटा मुस्कराया… मुखिया जी… दर्शन हों या न हों…तुम भी यही कहना शुरू कर दो… बरना सारा गाँव तुम्हें नकटा और बेवक़ूफ़ कहेगा… मुखिया उसकी चाल में फँस चुका था… लेकिन नाक कट चुकी थी… सो … उसने भी नाचना और यही कहना शुरू कर दिया…
इस बात को कहने वाले अब दो लोग थे…. जैसी कि प्रथा है… बहुमत सत्य के रूप में देखा जाता है… बात की विश्वसनीयता और बढ़ गयी.
धीरे धीरे दो चार लोग और भी इनके चक्कर में पड़े और नाक कटवा ली… धीरे धीरे बात की विश्वसनीयता बढती गयी और पूरा गाँव नकटा हो गया… सब बराबर… समाजवाद आ गया हो जैसे… लेकिन एक आदमी उनमे सब से होशियार था जिसे इस बात पर विश्वास नहीं होता था… वो किसी भी तरह से नाक कटवाने को तैयार नहीं हो रहा था… हर तरफ से प्रलोभन और दबाव बढ़ने लगा लेकिन वो टस से मस नहीं हुआ….
आखिर नकटों की मीटिंग हुई… और अगले दिन से पूरा गाँव उसे “नक्कू" कह कर चिढ़ाने लगा… ओय नक्कू … वो देखो नक्कू आ रहा है… उसको बिरादरी से अलग कर दिया गया… हेय दृष्टि से देखा जाने लगा…
अंत में नक्कू परेशान हो गया… परेशान हो कर… उसने भी सब कुछ जानते हुए… न चाहते हुए भी नाक कटवा कर नकटों की ज़मात में शामिल हो गया…
इधर एक अनुभव हुआ कि आज देश प्रेम, ईमानदारी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर बात किया जाए तो लोग अजीब नज़रों से देखते हैं… इसी क्रम में मुझे भी कईयों ने व्यंग्य में देशभक्त जी जैसे विशेषणों से भी नवाजा है… कई बार लगता है कि इस विषय पर बात कर के मै कुछ गलत कर रहा हूँ…कुछ नक्कू जैसा भी महसूस करता हूँ, कि क्यों न नाक कटवा कर नकटों में शामिल हो जाऊं …आज के दौर में ईमानदारी, देशभक्ति, और नैतिकता जैसी बात करने वाले लोगों को नक्कू की तरह देखा जाना अप्रत्याशित नहीं है … और यह कटु सत्य है कि ईमानदारी आज अल्पमत में है और लोग नाक कटवा कर नकटों में शामिल होने को मजबूर है…. ऐसा नहीं है कि लोग व्यवस्था में सुधार नहीं चाहते… उन्हें प्रकाश की कोई किरण भी तो नहीं नज़र आ रही थी…
पिछले कुछ दिनों में भ्रष्टाचार के विरूद्ध अन्ना हजारे के साथ जंतर मंतर पर तीन दिन बिता कर जैसा महसूस किया वैसा तो वहाँ रह कर ही महसूस किया जा सकता है…. बाबा रामदेव जी और अन्ना तो एक जरिया हैं … प्रबुद्ध और पढ़े लिखे लोगों ने जिस तरह से भ्रष्टाचार और व्यवस्था के खिलाफ़ एक जुटता और आक्रोश दिखाया है उससे कम से कम समस्या का त्वरित हल न सही उम्मीदों को बल ज़रूर मिलेगा… कम से कम उन्हें एक दिशा और रौशनी की किरण ज़रूर मिलेगी जो नाक कटवा कर नकटों में शामिल होने को मजबूर हैं…
अन्ना हजारे जी के आमरण अनशन का पहला दिन… पूरा दिन अन्ना के साथ जंतर मंतर पर बिताया… जय कुमार झा जी भी हमारे साथ रहे…. विशाल जनमानस बिना किसी राजनैतिक नेतृत्व के जिस तरह से पूरे देश में सड़कों पर उतर कर अन्ना के संघर्ष को समर्थन दिया वह अपने आप में आज़ादी के बाद सत्य के लिए सबसे बड़ी लड़ाई के रूप में देखी जा रही है.
क्या सब्र का घड़ा भर चुका है? क्या लोग उकता चुके हैं इस व्यवस्था से ? क्या इसे नयी क्रान्ति समझा जाए? पिछले कुछ दिनों से भ्रष्टाचार और अति के खिलाफ़ जनता जिस तरह आंदोलित होती दिखी है उसे क्या आज़ादी के बाद की सबसे बड़ी क्रान्ति कहना अनुचित न होगा….. भ्रष्टाचार के विरूद्ध आज दिल्ली में जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे के आमरण अनशन पर बैठने के साथ ही देश के लगभग ४०० शहरों में भ्रष्टाचार के विरूद्ध प्रदर्शन हुए.
अन्ना हजारे सहित लाखों की संख्या में भ्रष्टाचार के खिलाफ़ मुहिम में शामिल लोगों द्वारा ‘जन लोकपाल बिल' को लागू कराने हेतु एक कमिटी के गठन की माँग रखी गयी गयी है जिसमे लोकपाल बिल के प्रारूप के लिए भ्रष्ट मंत्रियों और नेताओं की एकतरफा और लचर व्यवस्था से इतर एक प्रभावशाली लोकपाल बिल तैयार किया जाय. इस ड्राफ्टिंग कमिटी में पचास प्रतिशत प्रतिनिधि जनता की ओर से शामिल किये जाने को लेकर अन्ना हजारे आज से आमरण अनशन पर हैं.
देशभर से बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर, स्वामी अग्निवेश, दिल्ली के आर्च बिशप विन्सेंट एम् कोंसेसाओ, महमूद मदनी, किरण बेदी, जे.एम लिंगदोह, शांति भूषण, प्रशांत भूषण, अरविन्द केजरीवाल, मुफ्ती समूम काशमी, मल्लिका साराभाई, अरुण भाटिया, सुनीता गोदरा, आल इण्डिया बैंक कर्मचारी फेडरेशन, पैन-आइआईटी अल्युमनी एसोसियेशन, कामन काज़, जैसे गण्यमान व्यक्तियों और संस्थाओं ने जिस तरह से भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अलख जगाई उसे देखते हुए आभास यही होता है कि घड़ा भर चुका है… सहनशीलता की हद हो गयी है
इस आन्दोलन की विशेष बात यही है कि यह कोई राजनैतिक संगठन अथवा पार्टी द्वारा संचालित नहीं है बल्कि जनता के सहयोग से सर्व विदित कर्मठ और ईमानदार गण्यमान व्यक्तियों द्वारा आंदोलित किया जा रहा है. इस आंदोलन से लगातार लोग सक्रिय रूप से जुड़ रहे हैं. अगर सरकार इसी तरह जानबूझ कर सोने का नाटक करती रही तो वो दिन दूर नहीं जब सरकार के नीचे से कुर्सी नदारद होगी.
आह्वान है हर उस नागरिक से, उस संस्था से जिसे प्यार है अपने बच्चों, से , समाज से, परिवार से, चिंता है भविष्य की, कि India against Corruption की इस मुहिम से सक्रियता से जुड़ें और आज़ादी के बाद होने वाली सबसे बड़ी जनक्रान्ति के सहभागी बनें. हाल ही में मिश्र की क्रान्ति ने साबित किया है कि जनता ने हर जोर ज़ुल्म से लड़ने का मन बना लिया है और पूरे विश्व में एक नयी हवा बह चली है…. जहां जो जैसे सक्षम है वह अपनी तरह से इस संघर्ष को अपना समर्थन दें.
इस मुहिम से जुड़ने के लिए आपको केवल नीचे लिखे नंबर पर एक मिसकाल करनी है…
इस नंबर पर मिस कॉल करें -02261550789
http://indiaagainstcorruption.org/citycontacts.php
इधर तमाम व्यस्तताओं के कारण कुछ लिखने का समय निकालना और एकाग्र होना दुष्कर रहा है…. ब्लॉग पर सक्रियता कई बार कम हो जाती है तो भीतर से बेचैनी सी होती है… आप सब से जुड़ने का लोभ जबरन ब्लॉग पर खींच लाता है. इस भीड़-मना दुनिया में सहृदय लोगों की स्मृति में बना रहूँ यही अभिलाषा है…
मै ही जाता हूँ गली उनकी दीवानों की तरह
वरना मालूम है मेरे जैसे हज़ारों हैं वहाँ
सीखने के दौर में एक नयी गज़ल आपकी नज़र करता हूँ….
आज कहता है वही शख्स भूल जाने को
मैंने जिसके लिए भुला दिया ज़माने को
दिल पे खाता है मगर फिर से दिल लगाता है
दिल्लगी मानता है दिल से दिल लगाने को
किसी दरिया को समंदर का पता क्या मालूम
इक जुनूं राह दिखाए किसी दीवाने को
हो न सैयाद दर्द-मंद मेरी जानिब से
जी नहीं करता के तोडूँ मै कैदखाने को
फसील सर की सुनेगा कि हुक्मरानों की
फ़र्ज़ मजबूर है हैवानियत दिखाने को
बड़ी बुलंदियों पे ताजदार यूँ पहुँचे
अवाम हो गयी मोहताज़ दाने दाने को
सैयाद =शिकारी
फसील= फाँसी देने का यंत्र
(चित्र नीहारिका बिटिया द्वारा स्केच किया गया है)
………पद्म सिंह ०५-अप्रैल-२०११
एक प्रसिद्ध कहानी है ...
एक साधु नदी मे स्नान कर रहा था, उसने देखा एक बिच्छू पानी मे डूब रहा था और जीवन के लिए संघर्ष कर रहा था। साधु ने उसे अपनी हथेली पर उठा कर बाहर निकालना चाहा...लेकिन बिच्छू ने साधु के हाथ मे डंक मारा, जिससे साधु का हाथ हिल गया और बिच्छू फिर पानी मे गिर गया... साधु बार बार उसे बचाने का प्रयत्न करता रहा और जैसे ही साधु हथेली पर बिच्छू को उठाता बिच्छू डंक मारता...लेकिन अंततः साधु ने बिच्छू को बचा लिया.... घाट पर खड़े लोग इस घटना को देख रहे थे... किसी ने पूछा... बिच्छू आपको बार बार डंक मार रहा था फिर भी आप उसे बचाने के लिए तत्पर थे... ऐसा क्यों...
साधु मुस्कराया और बोला... बिच्छू अपना धर्म निभा रहा था... और मै अपना... वो अपना स्वभाव नहीं छोड़ सकता तो एक साधु अपना स्वभाव क्यों छोड़े... फर्क इतना है कि उसे नहीं पता कि उसे क्या करना चाहिए... जब कि मुझे पता है मुझे क्या करना चाहिए...
दूसरी प्रसिद्ध कहानी है... दो साधु जंगल मे एकांतवास कर रहे थे ... उन्होंने देखा कि कुछ शिकारी एक साही(एक जानवर) का पीछा कर रहे थे... साही ने आत्म रक्षार्थ अपने काँटे फुला रखे थे जिससे शिकारियों के मारने का कोई असर उसपर नहीं हो रहा था... साधु दूर से यह तमाशा देख रहे थे... साथी साधु ने दूसरे से कहा... ये साही तो मर नहीं रहा है... शिकारी कितनी देर से परेशान हैं...इन्हें कोई उपाय बताइये... इस पर साधु बोला..... "साही मरे मूड (सिर) के मारे, लेकिन हम संतों को क्या पड़ी".... यह बात इतने ज़ोर से बोली गयी थी, कि बात शिकारियों तक के कानों मे पड़ जाये... शिकारियों ने झट उसपर अमल किया और सिर पर चोट करते ही साही मर गया....
किसी का चरित्र उसके व्यवहार पर कहीं न कहीं छाप अवश्य छोडता है। किसी परिस्थिति विशेष मे कोई कैसा व्यवहार करता है, किसी अवसर विशेष पर किसी की क्या प्रतिक्रिया होती है, यही उसके चरित्र की वास्तविक तस्वीर होती है। इसको जाँचने का एक यंत्र है ज़मीर... किसी का ज़मीर कब जागता है और कब सोता रह जाता है यही उसके चरित्र की मूल पहचान होती है। किसी की मूल वृत्ति उसके व्यवहार को कहीं न कहीं प्रभावित अवश्य करती है।
परोपदेशकुशलाः दृश्यन्ते बहवो जनाः ।
स्वभावमतिवर्तन्तः सहस्रेषु अपि दुर्लभाः ॥
दूसरों को उपदेश करने में अनेक लोग कुशल होते हैं, पर उसके मुताबिक व्यवहार करनेवाले हज़ारों में एकाध भी दुर्लभ होता है।
दूसरों को अच्छी अच्छी बातें बताना... अच्छी सलाहें देने का कार्य सब करते हैं ... लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो लाभ का अवसर मिलते ही थोड़ी देर के लिए अपने ज़मीर को थपकी दे कर(या अफीम पिला कर) सुला देते हैं... और ताज्जुब तो यह कि कई लोग इस घटना को अनजाने(बनकर) ही करते हैं... अक्सर यह बेटे का दहेज लेने के अवसर पर स्पष्ट दिखाई देता है....
पान और ईमान को ठीक रखने के लिए फेरते रहना जरूरी होता है... अपने ईमान, अपने धर्म, अपने चरित्र की परीक्षा अवसर पड़ने पर जरूर की जानी चाहिए....
.......... पद्म सिंह padm singh
एक अरसा हो गया है, बेधड़क सोता नहीं
दिल भरा बैठा हुआ है टूट कर रोता नहीं
किसे कहते हाले दिल किसको सुनाते दास्ताँ
कफ़स का पहलू कोई दीवार सा होता नहीं
दूर हो कर भी मरासिम इस तरह ज़िंदा रहे
मै इधर जागूँ अगर तो वो उधर सोता नहीं
इश्क हो तो खुद-ब-खुद हस्सास लगती है फिजाँ
कोई दरिया, पेड़, बादल चाँदनी बोता नहीं
तुम हमें चाहो न चाहो हम तुम्हारे हैं सदा
ये कोई सौदा नहीं है कोई समझौता नहीं
...... पद्म सिंह =Padm singh 9716973262
सुबह देखने वालों की भीड़ की आँखों मे सहानुभूति, तिरस्कार, और जुगुप्सा जैसे कई भाव मिलजुल कर एक साथ थे... वो घण्टा लिए लेटा था ...
छैल बिहारी पाँड़े रियासत के दौर मे खूंखार दारोगा हुआ करते थे ... कहते हैं उनके जैसा लठैत इलाके मे नहीं था। सिर पर गमछा लपेट कर जिस समय लाठी ले कर दौड़ पड़ते पचासों की भीड़ काई की तरह छितरा जाती...चारों तरफ से चलते ईंटे-अद्धे अपनी लाठी पर रोक लेना हुनर मे शामिल था... इलाके मे छैल बिहारी से भिड़ने की हिम्मत किसी मे नहीं थी... अपनी लाठी के दम पर किसी का खेत कटवा लेना... जमीन हड़प लेना... और फर्जी मुकदमे मे फंसा कर बर्बाद कर देना बाएँ हाथ का खेल था...
कहते हैं एक बार पूरे गाँव को फ़ौजदारी मे फंसा कर साल भर के लिए जेल भेज दिया था। बेईमानी, दबंगई और अपनी लट्ठ के बल पर बहुत कुछ बनाया कमाया... समय हर मर्ज की दवा होती है। एक समय बीमारी ने ऐसा जकड़ा कि फिर उठना नहीं हुआ... खेत, खलिहान, और ऊल जलूल कमाए हुए रूपये पैसे घर द्वार सब छोड़ कर सिधार गए।
इन्हीं छैल बिहारी पाँड़े के दो लड़के अवधेश और राम सरन उस समय चढ़ती उम्र के जवान थे... उन्हें भी उद्दंडता अपने पिता से विरासत मे मिली थी... आए दिन गाँव वालों से, अड़ोसी पड़ोसी से झगड़े होते थे, अब परिवार और पट्टीदारों से से झगड़े होने लगे... जरा जरा सी बात पर सुबह शाम फरसे, लाठियां और बल्लम(भाले) निकलने लगी।
राम सरन का विवाह नहीं हुआ... छोटे भाई के बच्चों को अपने साथ ले कर घूमता फिरता... दोनों के पास खेती बारी के अलावा कमाई का कोई साधन नहीं था ... लेकिन शानो शौकत से रहने की आदत ने धीरे धीरे इस हद तक ला दिया कि खेत बेच कर खर्च चलाने लगे... लेकिन दिखावा वही रहा... राम सरन ने पुलिस की दलाली शुरू कर दी... दो पक्षों मे लड़ाई करवाना और फिर FIR और समझौते के नाम पर दोनों से धन उगाही करना उसका पेशा बन गया... कोई उसके कहे के अनुसार न चलता तो उसको अजीबोगरीब सज़ा देता ..... पहले तो उसके घर चोरी करवा देता... या फिर कोई नुकसान करवा देता... खड़ी फसल मे बेर की कंटीली झाड़ियाँ लुंगी से बाँध कर रात भर घसीटता और खड़ी फसल को चौपट कर देता... किसी के खेत की आलू रातों-रात खोद लेना... आम की बाग से बोरियों आम तोड़ लेना उसका रोज़ का काम बन गया...
खानाबदोश की तरह घूमते रहने वाले राम सरन का चेहरा और पहनावा भी उसकी सोच और आदतों की तरह विद्रूप होता गया .... कुर्ता और लुंगी पहन कर शकुनि जैसी चाल के साथ एक पसली के राम सरन की एक आँख छोटी और गड्ढे के अंदर कोटर मे घुस गयी लगती थी,.... एक आँख की भवें ऊंची नीची होती तो राम सरन को और भी रहस्यमय लगता था ...
जीवट इतना,कि रात रात भर वेताल की तरह गाँव गाँव घूमता... सर्दियों की कई कई रातें किसी के गन्ने के खेत के बीचों बीच जगह बना कर गन्ना चूसते हुए बिता देता... खेतों मे खड़ी फसल की बालियाँ रात मे लुंगी मे झाड़ लेना मामूली बात थी...
गावों मे आज भी ब्राह्मण के घर पैदा हो जाना भी उसकी योग्यता का प्रमाण-पत्र होता है।.... चाल चलन कैसा भी हो लोग पैलगी करना नहीं भूलते... और फिर एक कहावत है कि "नंगों से खुदा भी हारा है" इस कारण लोग डर से राम सरन से प्रत्यक्ष रूप से खुल कर कुछ कहते हुए डरते थे...
अपनी इन्हीं हरकतों से धीरे धीरे ज़्यादातर खेत बिक गए या गिरवी चढ़ गए.... चोरी चकारी करने और दूसरों को परेशान करने की आदत नहीं गयी... पता नहीं किस सोच के कारण अपने बचे खुचे खेतों के कागजात के बदले नया ट्रैक्टर भी खरीदा गया लेकिन किश्तें न जाने के कारण खेत और ट्रैक्टर दोनों चले गए...
इलाके के लोग भी तंग आ चुके थे... आस पास के कई गावों मे उसका आतंक पसरा हुआ था...बिना कारण भी किसी का नुकसान कर देना उसका शगल था ... कहते हैं सबको अपने किए की सज़ा यहीं मिलती है ... मई जून की कोई रात थी वो ... यादवों के गाँव मे पीपल के पेड़ पर बीस किलो का पीतल का घंटा लटका हुआ था... लगभग एक से डेढ़ के बीच का समय रहा होगा... लोग एक नींद पूरी कर चुके होंगे... एक साया पीपल के थान से होकर अंधेरे की आड़ लेते हुए पेड़ पर चढ़ा... पीतल का घंटा भारी होने के बावजूद उसे खोला और पेड़ से नीचे उतार लिया ...
... लुंगी मे बांधते हुए अचानक घण्टा टन्न की आवाज़ के साथ बज गया... किसी को शक हो गया और एक आवाज़ पर गाँव मे जाग हो गयी और लोगों ने टार्च और लाठीयों के साथ इलाका घेरना शुरू कर दिया... इसके बावजूद भी चोरी करने वाले ने घण्टा नहीं छोड़ा और दोनों पैर के बीच मे घण्टा दबाकर एक चौड़ी नाली मे लेट गया .... मगर हर अति का एक अंत होता है... उस दिन काल ने अपना जाल बिछा रखा था....
सुबह पता चला राम सरन की लाश पैरों मे घण्टा दबाये नाली मे लेटी थी...
असत्य पर सत्य की विजय ... हर्षोल्लास और प्रकाश के पर्व दीपावली का
पुनरागमन हुआ है ...मौसम सुहाना हो चला है… दशहरे से प्रारम्भ हो कर
दीपावली तक गुलाबी ठण्ड का मौसम रूमानी हो जाता है …. सुबह की सिहलाती
ठंडी हवा में हरे हरे पत्तों से लदी टहनियाँ उमंग के गीत गाती हैं …
कनेर की फुनगियों पर घंटियाँ लटकने लगी हैं मानो धन धान्य की देवी
लक्ष्मी की पूजा को आतुर हैं …धान की कटाई का मौसम भी आ गया है ... धान
की कटाई प्रारंभ होते ही गावों में जैसे कोई उमंग अंगड़ाई लेने लगती है…
कस्बों में मेले भरने लगते हैं ... जिनमे पिपिहरी बजाते तेल काजल किये
हुए गवईं बच्चे... ठेले पर ताज़ी गुड़ की जलेबी खरीदती मेहरारुएँ और ..बड़े
वाले गोलचक्कर झूले पर चीखती खिलखिलाती अल्हड़ छोकरियां..... कुछ बड़े
मेलों का रंग थोड़ा अलग होता है ... नौटंकी थियेटर की टिकट खिड़कियों पर
फ़िल्मी गानों का कर्कश शोर…और अंदर स्टेज पर चल रहे थिरकते उत्तेजक
नृत्य... जत्थे के जत्थे अपनी तरफ आकर्षित करते हैं ... जीवन के तमाम
झंझावातों में फंसा मन जाने क्यों इस मौसम के साथ बचपन की उमंग की बराबरी
नहीं कर पाटा लेकिन बचपन के अनुभव कभी भूले भी नहीं जाते .. … बचपन की
यादें… कहाँ तक याद करें …
कुछ सालों पहले गावों में ठण्ड जल्दी पड़ने लगती थी(शायद आज भी) … दशहरे
तक गर्म कपड़े निकाल लिए जाते थे … गरम कपड़े के बक्से निकाल कर धूप में
रखे जाते तो बड़े बड़े बक्सों में (छोटे छोटे हम) घुस कर अपने आप को उसमे
बंद कर लेते और देर तक खेलते रहते … हर साल बहुत से कपड़े एक साल में ही
छोटे हो जाते थे जिसे या तो कोई छोटा अपने लिए छांट लेता या फिर दुबारा
सहेज कर रख दिए जाते. शेष अनावश्यक कपड़े किसी जरूरतमंद को बाँट दिए जाते.
Posted via email from हरफनमौला
Posted via email from हरफनमौला
“कहाँ से शुरू करूँ”….मुझे अक्सर यह प्रश्न सताता है …. इसी सोच में शुरू करना और भी मुश्किल होता जाता है … धीरे धीरे बहुत सारे दिन और विचार इसी उधेड़बुन में निकल जाते हैं … कहाँ से शुरू करूँ … ये बहाना भी हो सकता है… दरअसल प्रश्न ये होता होगा कि क्या शुरू करूँ … कुछ भी लिख देना दुनिया की नज़र में आकर्षक हो सकता, अगर मेरे पास एक सेलेब्रिटानी वर्तमान होता, विरासत में मिला कोई स्तरीय(ऊच्च या निम्न) अतीत होता, स्वप्निल और स्वर्णिम भविष्य के सपने होते या फिर कम से कम एक बौराया पगलाया प्रेम ही होता … सोचना, सोच को लिखना और सोच को अभिव्यक्त करना और अंततः क्रियान्वित करना … क्रमशः दुरूहतर होते हैं …शायद इसीलिए हर शुरुआत में ये प्रश्न बार बार खड़ा हो जाता है कि “कहाँ से शुरु करूँ”
कई बार ‘लक्ष्य' , ‘उपलब्धि', और ‘महत्वाकांक्षा' जैसे शब्द खोखले लगने लगते हैं… क्योकि हर उपलब्धि अपने पीछे एक निराश सूनापन छोड़ जाती है… हर लक्ष्य की प्राप्ति पर नया लक्ष्य खड़ा मुंह चिढ़ाता दीखता है…और पीछे एक और अतृप्त तृष्णा शेष रह जाती है… हर उपलब्धि महत्वाकांक्षा के नए प्रतिमान गढ़ लेती है… और इसी चक्रव्यूह में सारी शक्तियाँ (मानसिक शारीरिक) खप जाती है… पूरी उम्र लक्ष्यों की खोज में वास्तविक प्राथमिकताएं तो उपलब्धियों के पीछे यूँ दबी रह जाती है जैसे रेशमी कुर्ते के ठीक नीचे फटी बनियान… हम छोटी छोटी उपलब्धियों को ही अपना लक्ष्य मान लेते हैं और ढेर सारी प्राथमिकताएं में भ्रूण अवस्था में ही दम तोड़ देती हैं… महत्वाकांक्षा की अंधी दौड़ में हम अपने प्रिय, अपने सम्बन्धियों सहित स्वयं के साथ भी अनजाने ही यंत्रवत हो कर रह जाते हैं….आत्मीयता की सरिता जैसे सूख जाती है… हर रिश्ता औपचारिक और हर कृत्य दिखावा मात्र रह जाता है.
एक लघुकथा याद आती है… मुल्ला नसीरुद्दीन के पास एक जूता था … जूता इतना तंग कि पहनना भी मुश्किल… इस वजह से काटता भी बहुत था … लेकिन मुल्ला को जूते से बहुत प्रेम था … किसी मित्र ने पूछा यार मुल्ला नसीरुद्दीन.. तुम नया जूता क्यों नहीं ले लेते…. मुल्ला का जवाब था … यार जीवन में सारे सपने रीते पड़ गए… सारी महत्वाकांक्षाएँ अतृप्त रह गयीं …ऐसे में मेरे सुख का एकमात्र सहारा ये जूता ही है… पूरे दिन पैर में काटता है…पूरे दिन इसकी टीस मुझे परेशान करती है ..लेकिन शाम को जब मै इसे उतारता हूँ तो बेहद सुकून मिलता है … मेरे जीवन में एकमात्र यही सुख का साधन है … इसी लिए इस जूते को मै नही बदलता… मिथ्या सुख के बड़े बड़े लक्ष्यों के पीछे अपने आत्मिक सौंदर्य को निहारना जैसे भूल ही जाते हैं… इसे ऐसे भी समझें कि “सुख, आनंद का शार्टकट बाईपास है" … आश्चर्य तो यह कि अधिकतर हमें अपनी वास्तविक प्राथमिकताओं का भान भी नहीं होता… जैसे कुत्ता सूखी हड्डी को चबाता है और अपने ही मसूड़े के खून से तृप्त होने का भ्रम पालता है, ऐसे ही मनुष्य महत्वाकांक्षाओं के फावड़े से अपनी आत्मा की कब्र खोदता रहता है और अंत में जब तक वस्तुस्थिति का भान होता है… कोई अवसर शेष नहीं होता… ये बात तो अंत में पता चलती है कि “जीवन में रीसेट का बटन नहीं होता"
“दुनिया जीतने की चाह में मनुष्य अपने आप को हार जाता है"
अंत में कबीरदास का एक निर्गुण जो शायद सारे भ्रम तोड़ कर वास्तविकता के धरातल पर ला पटकता है….
भंवरवा के तोहरा संग जाई,
आवे के बेरियां सभे केहू जाने,
दु्अरा पे बाजे बधाई,
जाइ की बेरियां, केहू ना जाने,
हंस अकेले उड़ जाई....
भंवरवा के तोहरा संग जाई,
देहरी पकड़ के मेहरी रोए,
बांह पकड़ के भाई,
बीच अंगनवां माई रोए,
बबुआ के होवे बिदाई,
भंवरवा के तोहरा संग जाई,
कहत कबीर सुनो भाई साधो,
सतगुरु सरन में जाई,
जो यह पढ़ के अरथ बैठइहें,
जगत पार होई जाई,
भंवरवा के तोहरा संग जाई।
……….. आपका पद्म सिंह
(चित्र-गूगल से साभार)
आशा है मेरी पिछली पोस्टों आज़ाद पुलिस संघर्ष गाथा-१, आज़ाद पुलिस संघर्ष गाथा- २ और आज़ाद पुलिस (संघर्ष गाथा –३) के माध्यम से आज़ाद पुलिस से आप पर्याप्त परिचित होंगे …नहीं हैं तो कृपया उक्त पोस्टें पढ़ें…. इन पोस्टों को पढ़ कर मीडिया और ब्लॉगजगत से जुड़े हुए बहुत से लोगों द्वारा प्रतिक्रियाएं मिली थीं… कुछ संस्थाओं और लोगों ने स्वयं ब्रह्मपाल से मिल कर उनके संघर्ष और जज्बे को समझा-जाना … कुछ ने आर्थिक सहायता भी दी… लेकिन इस सहायता राशि को भी अपने व्यक्तिगत खर्च के लिए न रख कर समाज सेवा में अर्पित कर दिए गए…. तीन दिन पहले कहीं रास्ते में फिर से ब्रह्मपाल से मेरा मिलना हो गया… बातें होती रहीं… आज़ाद पुलिस के अगले मिशन के बारे में पूछने पर पता चला कि निकट भविष्य में आजाद पुलिस द्वारा एक गुटखे पर तिरंगे झंडे की तस्वीर और नाम का बेजा इस्तेमाल करने से तिरंगे का अपमान होता है. इस कंपनी के विरोध में जैसा कि ब्रह्मपाल ने अनेक बार प्रशासन को आगाह दिया था प्रशासन तक बात बखूबी पहुँच भी चुकी थी लेकिन ब्रह्मपाल की आवाज़ नक्कारखाने में तूती की आवाज़ ही साबित हुई और उस कंपनी के खिलाफ कोई कार्यवाही नहीं की गयी… इस कंपनी के विरोध में शीघ्र धरने पर बैठने हेतु उच्च प्रशासनिक अधिकारियों को सूचना भेजी जा रही है…
इसके अतिरिक्ति जिस पुलिस और प्रशासन ने कभी ब्रह्मपाल की सुध नहीं ली... उसकी आवाज़ बंद करने के लिए सिरफिरा करार देते हुए बेवजह बार बार जेल में ठूंसती रही उसी पुलिस की कार्यप्रणाली के सुधार के सपने देखने वाला ब्रह्मप्रकाश(आज़ाद पुलिस) कुछ ही महीने में मुंबई पुलिस की खबर लेने मुंबई जाने वाला है… बताया कि २१ मई २०११ को अपने रिक्शे सहित मुंबई जाकर मुंबई पुलिस में व्याप्त भ्रष्टाचार और मौलिक कमियों को उजागर करने का प्रयास करेगा … इसके लिए आज़ाद पुलिस का अनोखा तरीका है पुलिस का चालान करना… ये जुनूनी वन मैन आर्मी अपनी स्वयं की चालान बुक रखता है… जहाँ कहीं पुलिस की कमियाँ देखता है… तुरंत चालान काटता है … चालान पर उस पुलिस वाले के हस्ताक्षर भी करवाता है और चालान एस एस पी अथवा उनसे उच्चतर अधिकारी को बकायदा कार्यवाही करने के अनुरोध के साथ प्रस्तुत किया जाता है… इस प्रयास में कई बार पुलिस का कोप-भाजन बनने, मार खाने, हवालात जाने के बावजूद उसके जज्बे में कोई कमी नहीं आती और अपना संघर्ष जारी रखता है, मुंबई जाने के सम्बन्ध में दिल्ली पंजाब केसरी समाचार पत्र ने दिनांक ०१-१२-१० के अंक में खबर को प्रमुखता दी है…
यहाँ अवगत कराना चाहूँगा कि ब्रह्मपाल के अनुसार किसी सहायता अथवा अनुदान राशि का एक पैसा अपनी जीविका के लिए प्रयोग नहीं करता… आज़ाद पुलिस को भ्रष्टाचार और अनियमितताओं को उजागर करने के लिए उसे एक कैमरे की आवश्यकता थी … जय कुमार झा जी की सलाह पर इस तरह के ईमानदार और आम जनता के लिए होने वाले संघर्ष पर छोटी-छोटी सहयोग राशि के लिए hprd के लिए अपने वेतन से प्रतिमाह ५० रूपए का एक छोटा सा फंड बनाना शुरू कर दिया था… आशा है इस प्रयास के लिए मेरे फंड से शीघ्र ही एक कैमरा लिया जा सकेगा…
आज़ाद पुलिस की मुहिम और संघर्ष के प्रति ब्लॉग जगत में भी कई मित्रों का सहयोग लगातार प्राप्त होता रहा है…हाल ही में ब्लॉग जगत के कुछ सक्षम मित्रों की संवेदनाएं ब्रह्मपाल के प्रति शिद्दत से दिखी … इस बात से आज़ाद पुलिस की नगण्य सी मुहिम परवान चढेगी ऐसा विश्वास है… इस पोस्ट के माध्यम से आप सब से अपील है कि आज़ाद पुलिस की मुंबई मुहिम पर यथा संभव यथा योग्य सहयोग करें…
आज़ाद पुलिस की आगे की गतिविधियों के लिए नया ब्लॉग बना दिया गया है जिससे लोग आसानी से आज़ाद पुलिस और उसकी मुहिम से सीधे जुड़ सकें… ब्लॉग पर जाने के लिए क्लिक करें <आज़ाद पुलिस> पर
आपका पद्म सिंह ९७१६९७३२६२