संस्मरण
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न जाने तुमने ऊपर वाले से क्या क्या कहा होगा ...
न जाने क्या हुआ है हादसा गमगीन मंज़र है
शहर मे खौफ़ का पसरा हुआ एक मौन बंजर है
फिजाँ मे घुट रहा ये मोमबत्ती का धुआँ कैसा
बड़ा बेबस बहुत कातर सिसकता कौन अन्दर है
सहम कर छुप गयी है शाम की रौनक घरोंदों मे
चहकती क्यूँ नहीं बुलबुल ये कैसा डर परिंदों मे
कुहासा शाम ढलते ही शहर को घेर लेता है
समय से कुछ अगर पूछो तो नज़रें फेर लेता है
चिराग अपनी ही परछाई से डर कर चौंक जाता है
न जाने जहर से भीगी हवाएँ कौन लाता है
ये सन्नाटा अचानक भभक कर क्यूँ जल उठा ऐसे
ये किसकी सिसकियों ने आग भर दी है मशालों मे
सड़क पर चल रही ये तख्तियाँ किसकी कहानी हैं
पिघलती मोमबत्ती की शिखा किसकी निशानी है\
न जाने ज़ख्म कब तक किसी के चीखेंगे सीने मे
न जाने वक़्त कितना लगेगा बेखौफ जीने मे
न जाने इस भयानक ख्वाब से अब जाग कब होगी
न जाने रात कब बीते न जाने कब सुबह होगी
न जाने दर्द के तूफान को कैसे सहा होगा
न जाने तुमने ऊपर वाले से क्या क्या कहा होगा
बहुत शर्मिंदगी है आज ख़ुद को आदमी कह कर
ज़माना सर झुकाए खड़ा ख़ुद की बेजुबानी पर
मगर जाते हुए भी इक कड़ी तुम जोड़ जाते हो
हजारों दिलों पर अपनी निशानी छोड़ जाते हो
अगर आँखों मे आँसू हैं तो दिल मे आग भी होगी
बहुत उम्मीद है करवट हुई तो जाग भी होगी
.....पद्म सिंह
मगर जाते हुए भी इक कड़ी तुम जोड़ जाते हो
जवाब देंहटाएंहजारों दिलों पर अपनी निशानी छोड़ जाते हो
अगर आँखों मे आँसू हैं तो दिल मे आग भी होगी
बहुत उम्मीद है करवट हुई तो जाग भी होगी...........
2013 se badalav ki ummeed
वह दिन दूर नहीं जब
जवाब देंहटाएंदेश का युवा जागेगा
ढिबरी की रोशनी से
अंधेरे का साया भागेगा
बहुत सटीक-
जवाब देंहटाएंअभी इस राख में चिन्गारियाँ आराम करती हैं - ब्लॉग बुलेटिन आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
जवाब देंहटाएंबहुत उम्मीद है करवट हुई है, तो जाग होगी
जवाब देंहटाएंउजाला होगा गर ढिबरी में इतनी आग होगी...
बढ़िया....
जवाब देंहटाएंसटीक अभिव्यक्ति..
अनु
प्रभावी ... अंदर की आग सुलग जाती है ...
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना ...
इस 'ढिबरी' से निकलती किरणों ने अभिभूत कर दिया - लगा अँधेरों को झकझोर रही हैं!
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