यद्यपि इस विषय पर लिखते लिखते लेखनियां घिस गयीं पर इन्हें शर्म न आई ........ और आएगी भी नहीं शायद ...... पर फिर भी लिखना पड़ता है --
ऐसा ये जनतंत्र है जैसी कोई रेल
नेता कुर्सी के लिए करते ठेलमपेल
करते ठेलामपेल करो अबकी कुछ ऐसा
छीलें जाकर घास चरावें अपना भैंसा
क्षेत्र वाद, भाषा वाद इस तरह के नासूर हैं जो अपने ही तन को काट देने को आतुर दीखते हैं ... क्या सोचेंगे ऐसी सोच वालों को --
अपनी अपनी ढपलियाँ अपना अपना राग
क्षेत्रवाद के नाम पर, भाल लगाया दाग
भाल लगाया दाग, भारती मैया रोती
इस से अच्छा होता यदि मै बांझन होती
भारत जैसे संप्रभुता संपन्न और एशिया की एक महाशक्ति होने के बावजूद इस के पडोसी जब देखो हमारी सहिष्णुता का मजाक उड़ाते हैं और ओछी हरकतें करने से बाज नहीं आते ... बंगला देश और पाकिस्तान तो जग जाहिर है ... आजकल माओवादी नेपाल भी भारत को तिरछी नज़र से देखता है और श्रीलंका चाइना को अपने सागर में पोस्ट बनाने देने की दिशा में बढ़ सकता है ... क्या ये ढुलमुल नीति हमेशा कारगर रहेगी ...? या फिर कुछ इस तरह होना चाहिए ......
एक बांग्ला देश है, दुसरा पाकिस्तान
चीन और नेपाल भी, खींचा करें कमान
खींचा करें कमान, सिरी लंका क्या कम है
एक बार अजमा लो जिसमे जितना दम है
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मौसम ने बसंत और होली दोनों की मस्ती की खबर दे दी है .... होली अभी दूर है पर मन अभी से मस्त होने लगे तो क्या करिये ... सो उतर पड़े कुछ छंद बसंत और होली दोनों से संबद्द कर के मज़े लीजिए
रुत बासंती देख कर, वन में लग गयी आग
धरती बदली से कहे, आजा खेलें फाग
आजा खेलें फाग, भाग जागे मनमौजी
रंगों जिसे पाओ मत खोजो औजी भौजी
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ऐसा सुघड़ बसंत है, रंगा चले सियार
मन सतरंगी हो चले, बिना किसी आधार
बिना किसी आधार, बुजुर्गी ऐसी फड़की
बुढिया भी दिखने लगती है कमसिन लड़की
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फागुन आया भाग से भर ले दो दो घूट
दो दिन की है जिंदगी फिर जायेगी छूट
फिर जायेगी छूट, अभी मस्ती में जी ले
फिर फागुन का पता नहीं है पी ले पी ले
Posted via email from हरफनमौला
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