कहाँ जाने खो गयी हैं आँधियाँ
क्यों नपुंसक हो गयी हैं आंधियाँ
युवा मन मे सो गयी हैं आंधियाँ मुट्ठियाँ सब बुद्धिजीवी हो गयीं
और तनहा हो गयी हैं आँधियाँ आज घर मे शान्ति है धोका न खा
अभी कल ही तो गयी हैं आंधियाँ शक्ति, साहस, और लड़ने की ललक
जाने क्या क्या बो गयी हैं आंधियाँ "पद्म" सच मे बदलना है दौर तो
जगाओ जो सो गयी हैं आंधियाँ
पद्म सिंह 02/05/20012
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