23 अग 2010
तीन चार दिन पूर्व मेरे कवि मित्र सुमित प्रताप सिंह जी का ई-मेल मिला कि चौसठवें स्वतन्त्रता दिवस के उपलक्ष्य मे शोभना वेलफेयर सोसाइटी के तत्वाधान एक कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया है जिसमे मुझे आमंत्रित किया गया है…एक तो कवि सम्मलेन और फिर मित्र का आमंत्रण था तो मुझे कौन रोक सकता था जाने से …पूरे रास्ते बारिश के बावजूद मै जब मंडावली दिल्ली स्थित नालंदा कैम्ब्रिज स्कूल पहुंचा तो काव्य संध्या का शुभारंभ हो चुका था… नदीम अहमद काविश जी ने जैसे ही अपना कलाम पढ़ना शुरू किया बारिश तेज हो गयी जिससे काव्य सभा की व्यवस्था बदलते हुए स्कूल के एक क्लासरूम मे ही काव्य पाठन और श्रोताओं के लिए व्यवस्था की गयी और काव्य संध्या आरोहण की ओर बढ़ चली…
नदीम जी से पूर्व कुछ अन्य उदीयमान रचनाकार अपना काव्यपाठ कर चुके थे जिन्हें न सुन पाने का खेद है जिनके नाम इस प्रकार हैं
१ – अनुराग अगम २ -जयदेव जोनवाल
नदीम अहमद काविश जी ने पुनः पढ़ना प्रारम्भ किया… कम उम्र के बावजूद इनकी शायरी की सजीदगी ने काफी देर तक श्रोताओं को बांधे रखा और वाह वाह करने को मजबूर कर दिया ….
देखता हूँ कैसा कैसा ख्वाब मे
तेरी खुशबू तेरा जलवा ख्वाब मे
तेरी आँखें तेरा चेहरा तेरे लब
ख्वाब ने भी ख्वाब देखा ख्वाब मे
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कंकड़ समेट कर कभी पत्थर समेट कर
हमने मकाँ बनाया है गौहर समेट कर
नाकामियों ने जब हमें जीने नहीं दिया
हमने भी रख दिया है मुकद्दर समेट कर
टुकड़ों मे बाँट देता हूँ तस्वीर आपकी
फिर उनको चूम लेता हूँ अक्सर समेट कर
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गुलों को गुलची सितारों को खा गया सूरज
खैर साये की मियाँ सर पे आ गया सूरज
तमाम दुनिया की हस्ती पे छा गया सूरज
और औकात भी सब की दिखा गया सूरज
जैसे अहबाब के सीने से लिपटता है कोई
अब्र के सीने मे ऐसे समा गया सूरज
अब तो आ जाओ कि मै इंतज़ार करता हूँ
अब न शर्माओ कि कब का गया गया सूरज
गुरूर इसका भी ‘काविश’ खुदा ने तोड़ दिया
आओ कोहरे से वो देखो दबा दबा सूरज
इसके बाद नवोदित कवि श्री जितेन्द्र प्रीतम जी ने अपनी शिल्प और भाव से परिपक्व रचनाओं से बहुत प्रभावित किया -
पूरी हिम्मत के साथ बोलेंगे जो सही है वो बात बोलेंगे
आखिर हम भी कलम के बेटे हैं दिन को हम कैसे रात बोलेंगे
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दिल को छूने वाले सारे ही सामान चले आयेंगे
शब्दों के ये भोले भाले कुछ मेहमान चले आयेंगे
मंच मिले न मिले मुझे इसकी परवाह नहीं है कोई.
मेरे गीत तुम्हारे दर तक कानो कान चले आयेंगे
दिल्ली पुलिस मे इंस्पेक्टर और उदीयमान कवि श्री राजेन्द्र कलकल जी ने हिंदी और हरियाणवी मे अपनी हास्य रचनाओं से माहौल को हल्का फुल्का कर दिया..
चांदी की दीवार न तोड़ी प्यार भरा दिल तोड़ दिया
अब इन टुकड़ों को भी लेजा इन्हें यहाँ क्यों छोड़ दिया
कवि प्रतुल वशिष्ठ जी
के पाकिस्तान और भारत के रिश्तों पर व्यंग्यात्मक अपडेट रचना प्रस्तुत करने के बाद शोभना वेलफेयर सोसाइटी के कोषाध्यक्ष और युवा कवि सुमित प्रताप सिंह जी ने अपने छंद रुपी तड़कों से खूब रंग जमाया
जूते खाने से बचे दुनिया के सिरमौर
अगला जूता कब पड़े बुश फरमाते गौर
बुश फरमाते गौर बात अब बहुत बढ़ गयी
सारी दुनिया हाथ धोय के पीछे पड़ गए
विश्व सँवारे पूरा जो जिनके बूते
उस देश के मुखिया के किस्मत हाय जूते
तत्पश्चात मंच का संचालक कर रहे श्री रंजीत चौहान जी ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को खूब भाये -
ये खूने तमन्ना मुझसे अब देखा नहीं जाता
आ जिंदगी तुझे कातिल के हवाले कर दूँ
इसके बाद मान्यवर श्री रमेशबाबू शर्मा ‘व्यस्त’ जी ने अपनी प्रेरक रचनाओं की संजीदगी से श्रोताओं को मुग्ध किया
पंजाब हिमाचल तथा आसाम यहाँ है केरल तमिलनाडु राजस्थान यहाँ है
कोई भी प्रांत दर्द मेरा बांटता नहीं मै पूंछता हूँ मेरा हिन्दुस्तान कहाँ है
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काग के कोसे पशु मरते नहीं
ईर्ष्या से मधुर फल झरते नहीं
व्यर्थ मत फूंको कुढन मे जिंदगी ऐ सत्पुरुष
सत्पुरुष पर-नींद को हरते नहीं
काव्य सभा के मुख्य अतिथि श्री जगदीश चन्द्र शर्मा जी (अध्यक्ष हिंदी साहित्य कला प्रतिष्ठान दिल्ली) ने रचना से पूर्व अपने अमूल्य वचनों से नवोदित रचनाकारों का पथ प्रदर्शन करते हुए कहा कि रचना करते समय व्यंजनाओं का आलम्ब लेना आवश्यक है परन्तु इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी पर व्यक्तिगत कटाक्ष से बचना चाहिए, जैसे आज के मीडिया चैनल खबर देने की जगह खबर लेने मे लगे हुए हैं … जबकि खबर जनता को लेना चाहिए ….. महाकवि कालिदास के नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम का उद्धरण देते हुए बताया कि किस तरह रचनाकारों को किसी पर तंज किये बिना अपनी बात कहने का प्रयास करना चाहिए… अर्थात धनात्मक और सृजनात्मक दिशा मे रचनाएँ की जाएँ तो उत्तम है… यद्यपि प्रत्येक रचनाकार अपनी रचनाओं के लिए स्वतंत्र है.
मान्यवर श्री जगदीश चन्द्र शर्मा जी ने अपनी सहज लेकिन अंतस को पोसती हुई एक रचना प्रस्तुत की—-
मैंने अपने मित्र से कहा तुम इस जलते दीप को लेकर कहाँ जा रहे हो तुम्हारा घर तो प्रकाश से भरा है….. मेरे अँधेरे घर को इसका प्रकाश चाहिए…… इसे मुझे दे दो … किन्तु अज्ञान के आवरण मे लिपटे मित्र ने कहा….. मै अपने अंतस के अन्धकार को मिटाने के लिए मै इसे गंगा माँ को अर्पित करना चाहता हूँ ……और उसने अपना दीप गंगा की लहरों मे प्रवाहित कर दिया….. देखते देखते एक नहीं दो नहीं असंख्य दीप निष्प्रयोजन ही गंगा की लहरों मे समाहित हो गए और मेरी कुटिया मे अँधेरा हैइस बीच काव्य सभा के विशिष्ट अतिथि श्री तेजपाल सिंह जी, जो नगर निगम पार्षद हैं, ने अपने विचार व्यक्त किये… संस्था के प्रति अपने यथा संभव सहयोग करने का आश्वासन देते हुए उन्होंने सोसाइटी को सरकार से मिलने वाले अनुदानों को दिलाने का प्रयास करने का आश्वासन भी दिया और संस्था को प्रोत्साहित किया ..
अंत मे काव्य सभा के अध्यक्ष श्री दीपकशर्मा जी (वरिष्ठ कवि एवं गीतकार) ने सभी कवियों को धन्यवाद देते हुए अपने अशआरो से श्रोताओं को मुग्ध किया—
न हिंदू न सिख ईसाई न मुसलमान हू
कोई मज़हब नहीं मेरा फकत इंसान हूँ
मुझको मत बांटिये कौमों ज़बानों मे
मै सिर से पाँव तलाक हिन्दोस्तान हूँ
यद्यपि मौसम की स्थिति और समयाभाव के कारण कुछ निकटतम मित्रवत कवियों ने काव्य पाठ नहीं किया परन्तु काव्य संध्या मे उदीयमान नवोदित कवियों को मंच पर लाने प्रयास सफल प्रतीत हुआ.. काव्य-संध्या के समापन पर शोभना वेलफेयर सोसाइटी की अध्यक्षा सुश्री शोभना तोमर जी ने सभी कवियों को स्मृति चिन्ह भेट किया …मुझे विशेष रूप से आमंत्रित “अपनों” के रूप मे स्मृति चिन्ह भेंट किया गया … रात काफी हो चुकी थी … फिर मिलने और मिलते रहने के आश्वासनों के बीच सभी मित्रों, कवियों और श्रोताओं -ने विदा ली ….
यहाँ यह भी उल्लेख करना चाहूँगा कि शोभना वेलफेयर सोसाइटी निर्धन बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी आवश्यकताओं के लिए कार्य करती है… सोसाइटी का कुछ विवरण निम्न प्रकार है -
कार्यालय- २४४/10 त्रिपथ स्कूल ब्लाक मंडावली, दिल्ली
फोन- 011-22474775
श्री अयोध्या प्रसाद वशिष्ठ – संरक्षक
सुश्री शोभना तोमर – अध्यक्ष
श्री सुमित प्रताप सिंह- कोषाध्यक्ष
श्री रंजीत सिंह – संयोजक
Posted via email from हरफनमौला