शनिवार, 27 फ़रवरी 2010

Invitation to connect on LinkedIn

LinkedIn

Padm Prakash सपनों का राजक requested to add you as a connection on LinkedIn:

Arjun,

I'd like to add you to my professional network on LinkedIn.

- Padm Prakash

Accept View invitation from Padm Prakash सपनों का राजक


DID YOU KNOW your LinkedIn profile helps you control your public image when people search for you?
Setting your profile as public means your LinkedIn profile will come up when people enter your name in leading search engines. Take control of your image!

© 2010, LinkedIn Corporation

Posted via email from हरफनमौला

शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

लागल झुलनिया के धक्का बलम कलकत्ता निकरि गए ...

हाँ तो भईया
भंग कर रंग जमा हो चकाचक फिर लो पान चबाय
ऐसा झटका लगे जिया पे पुनर्जनम होई जाय .........
केवल पान खाने से ??
और नहीं तो क्या.......
होली है कि जानती नहीं
और तमन्ना है कि मानती नहीं
होली भी मनानी है और मेहमानों को होली मिलन भी करवाना है ....
मंहगाई इतनी कि पान खाने से ही पुनर्जनम हो जाय
होली मनाएं भी तो कैसे ??
तो भईया सरकार के मंहगाई बढाने से क्या होता है
आज समानांतर सरकार जैसी समानांतर बाज़ार भी तो है हमारे पास..... मंहगाई
से निपटने के लिए
असली खोया(मावा) महगा हो ........ तो पाउडर का मिल जाएगा
असली दूध महगा हो ............. तो सिंथेटिक दूध है
रंग महगा हो ............. तो केमिकल है, जला मोबिल है.
सब्जी चाहिए............ तो दूध उतारने वाला इंजेक्शन लगा कर रातों रात
लंबी की हुई सब्जियां हैं
पिचकारी महगा हो ............तो सेकंड प्लास्टिक की टोक्सिक रंगों पिचकारियाँ हैं
और अगर होली खेलने को यार चाहिए तो ..........अपन है न (एकदम सस्ता टिकाऊ
और ओरिजिनल)
चलिए तो होली का जश्न शुरू हो चुका है ...
हुआ यूँ कि मेरी कालोनी में बहुत से श्याने लोग हैं ... जो होली खेलने
को अच्छा नहीं मानते
होली के नाम पर घर में घुस जाते हैं और बीवी के कहने पर भी दरवाज़ा नहीं
खोलते ..... कहते हैं आज तुम पर भी भरोसा नहीं ..
तीन साल पहले की बात है ......उस साल होली कि सुबह हुई तो सब कुछ नीरस सा
था .......लोग निकले ज़रूर पर बस अबीर का टीका लगाया और फार्मेल्टी कर
अपने घर में घुस गए ..... पर अपन का मन नहीं भरा था, अब हमारे कुछ मित्र
और पडोसी ऐसे भी थे जिनके मज़हब में होली खेलना मना है ... लेकिन हम लोग
आपस में बहुत खुले हुए हैं .. इस लिए वे भी उत्सुकता से हमारे
क्रियाकलाप देख रहे थे और मन उनका भी हुडक रहा था .......
सलीम, अतहर, रोशन के साथ साथ और भी बहुत से दोस्त और पडोसी ये समझ कर
मेरे घर आ गए कि अब तो रंग खतम हो चुका है .... पर मैंने कुछ और इंतज़ाम
कर रखा था ... और फिर जब शुरू हुई देसी होली तो बिना रंग के ऐसा रंग जमा
कि जो लोग कभी होली नहीं खेलते थे वो शाम चार बजे तक होली खेलते रहे और
शाम को इतने खुश...... बोले भईया ऐसी होली तो जिंदगी में नहीं खेली .....
ऐसा मज़ा कभी नहीं आया ...... तो आज आपको उस की कुछ झलकियाँ दिखा रहा हूँ
..... पसंद आये तो आप भी आजमायें पर इसकी कीमत थोड़ी ज्यादा हो सकती है
और वो है ------ आपका लान ...... चलिए होली का मज़ा लीजिए इसी पर एक
कजरी(होली गीत) पेश है -

लागल झुलनिया के धक्का
बलम कलकत्ता निकरि गए ...

आवल फगुनवा के रुत मतवारी
कोयल कुकुहरे उछरि डारी डारी
गमके लागल पत्ता पत्ता ......
बलम कलकत्ता निकरि गए ...
लागल झुलनिया के धक्का
बलम कलकत्ता निकरि गए ...

हमरे बलमुआ के कातिल नजरिया
इत उत लूटेंला पटना बजरिया
अइसन भुलाइ गए रस्ता
बलम कलकत्ता निकरि गए ...
लागल झुलनिया के धक्का
बलम कलकत्ता निकरि गए ...

कौनो संदेसवा न भेजेला पइसा
तोड़े कमर मंहगाई बा अइसा
हालत भई हमरी खस्ता
बलम कलकत्ता निकरि गए ...
लागल झुलनिया के धक्का
बलम कलकत्ता निकरि गए ...

सहर जाइ बलमू के भाव बढ़ी गइले
ब्लागर भए कछु अऊर चढ़ी गइले
अबकी लिआउबे कौनो सस्ता
बलम कलकत्ता निकरि गए
लागल झुलनिया के धक्का
बलम कलकत्ता निकरि गए ...

निकरीलागल झुलनिया के धक्का
बलम कलकत्ता निकरि गए ...

आवल फगुनवा के रुत मतवारी
कोयल कुकुहरे उछरि डारी डारी
गमके लागल पत्ता पत्ता ......
बलम कलकत्ता निकरि गए ...
लागल झुलनिया के धक्का
बलम कलकत्ता निकरि गए ...

हमरे बलमुआ के कातिल नजरिया
इत उत लूटेंला पटना बजरिया
अइसन भुलाइ गए रस्ता
बलम कलकत्ता निकरि गए ...
लागल झुलनिया के धक्का
बलम कलकत्ता निकरि गए ...

कौनो संदेसवा न भेजेला पइसा
तोड़े कमर मंहगाई बा अइसा
हालत भई हमरी खस्ता
बलम कलकत्ता निकरि गए ...
लागल झुलनिया के धक्का
बलम कलकत्ता निकरि गए ...

सहर जाइ बलमू के भाव बढ़ी गइले
ब्लागर भए कछु अऊर चढ़ी गइले
अबकी लिआउबे कौनो सस्ता
बलम कलकत्ता निकरि गए
लागल झुलनिया के धक्का
बलम कलकत्ता निकरि गए ...

Posted via email from हरफनमौला

मंगलवार, 23 फ़रवरी 2010

हिन्दी ब्लोग्स का नया एग्रीगेटर "ब्लोग्नमा"

हिन्दी चिट्ठों के नए एग्रीगेटर "ब्लोग्नामा" पर आपका स्वागत है ... कृपया अपना ब्लॉग रजिस्टर करें ...
http://blognama.feedcluster.com/

Posted via email from हरफनमौला

सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

दिलकश नज़ारे गाँव में

2 comments:

Ismat Zaidi said...

mubarak ho, bahut umda ghazal hai sachchai alfaz ka jama pahan kar hamare saamne hai.

October 25, 2009 12:03 AM

इस्मत ज़ैदी said...

shahid sahab ji chahta hai is ghazal par kuchh aur likhoon
शहर की रंगीनियों से सादगी अच्छी लगी
हमने ओहदों के लबादे जब उतारे गाँव में

साजिश-ऐ-तकदीर ने दोनों को तनहा कर दिया
बेसहारा मै यहाँ, मेरे सहारे गाँव में

लौटने की कोशिशें करता रहा ''शाहिद'' मगर
रह गए अपने सभी बांहें पसारे गाँव में

itne khoobsoorat ashaar ,kya bat hai sbhan allah ,aankhen bhar aayeen

January 21, 2010 8:57 AM

वाह........ आज दिल को सुकून आया मुझे ...... अब लगा कि ब्लॉग जगत आबाद है ..... ऐसे ऐसे हीरे हैं इसमें ... इसका तो अंदाजा ही न था .. शहीद साहब की गज़ल और ... जैदी साहब आपके भी अलफ़ाज़ और एहसास को सलाम ...

Posted via web from हरफनमौला

My First Blog Post

हरिद्वार की हर की पौड़ी (प्रायोगिक पोस्ट)

Posted via email from हरफनमौला

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

अ र र र र झम !.... लो जी आ गया वो....

अ र र र र झम !
.... लो जी आ गया वो .... अरे वो ही .... जिसने खिला दिए हैं चमन में नए
नए फूल... और खींच मारे हैं दिल के बीचो बीच विरह के शूल .... भाई ये वही
है जो सब ऋतुओं के राजा बसंत के सर चढ कर बोलता हैं और ले जाता है एक नई
दुनिया में .... मस्ती और शरारत से भरी दुनिया से रंग और गुलाल से सजी
दुनिया तक ... मोहक तरुणाई से मादक अंगडाई तक...और इसका आना जैसे हर सोच
का जवां हो जाना ... आते ही इसके कुछ ऐसा होता हैं जैसे प्रेम की चाशनी
में उमंग की खुशबू मिला दी हो ... जैसे सजग बसन्त को भंग पीला दी हो ..
ये है मस्त मस्त फाग का मौसम ......और इसके आने का पता देती हैं आज की ये
पंक्तियाँ -

मन में उड़े पतंग तो समझो कि फाग है
हुलसाए अंग अंग तो समझो कि फाग है
दुनिया लगे रंगीन, दिन गुलाल सा उडें
बिन पिए चढ़े भंग तो समझो कि फाग है
**

फागुन के आने के आभास मात्र से ही पुराने पत्ते झरते लगते हैं और नए
पत्ते नव सृजन का सन्देश देते हैं ...मौसम गुलाबी होने लगता हैं ......
सर्दी की बोझिल हवाएं नव तरुणी सी मदमस्त हो कुलांचें भरने लगती हैं
...नए पत्ते अपनी कोमल और बालसुलभ अटखेलियों के साथ कसमसाते हैं और टेसू,
ढाक के फूल मौका पा कर जैसे वन में आग सी लगा देते हैं .... धरती अपने नए
कलेवर में सजने संवरने लगती है.. और सुन्दर कलेवर में सुहागिन सी दीखती
है .......

पात झरे ज्यूँ चांदनी, दिन सुलगाये आग
टेसू फूले बन जरे जैसे लग गयी आग
नवल पुष्प नव पांखुरी नूतन मधुप पराग
धरती ने धारण किये सुभग सुहास सुहाग
**

ये मौसम अपने मदमस्त चरित्र के लिए जाना जाता है पर जो अपने जोड़े से दूर
हैं उनके लिए ये मौसम विछोह की कसक से भरा और विरह की पीड़ा से अधीर करने
वाला है ...इसकी मस्ती ही प्रियतम की याद को झंझावत की तरह उमड़ घुमड़ कर
ऐसा लाती है कि कोई रसिक विकल हुए बिना न रहे

मन बौराया सा रहे, मस्ती सकल सरीर
कसक जगाए डोलती पुरवा मलय अधीर
टिहुक टिटिहरी मारती विरह बान गंभीर
बेकल सा तन डोलता,चित्त धरे नहीं धीर
**
और तो और काम देव ने बसंत में जो कुछ तैयारी की है उसकी परिणति का समय भी
आ पहुंचा है .. चारों और जैसे सम्मोहन सा खिंच रहा हैं ..... काम अपनी
कुटिलता से बाज़ नहीं आता और तन मन कुमार्ग पर भी ले चले तो अचरज नहीं
....और फागुन की यही मस्ती उम्र के पड़ाव भूल अपनी तरुणाई में ही विचरता
है .......

मोहनि मन मोहित करे मदन मंद मुसुकाय
काम कुटिल कल ना रहे करत कुमारग काय
ऋतु बसंत के रथ चढा ऐसा आया फाग
ले अंगडाई जागते मन के सोये राग

....... आज इतना ही ...अभी तो प्रारंभ हुआ है ....
रंग चढेगा धीरे धीरे ..
चटकेगी नित नयी कली रे
मनवा मत हो बहुत अधीरे .....
श्याम मिलेंगे यमुना तीरे
...........

Posted via email from हरफनमौला

सोमवार, 15 फ़रवरी 2010

ओ माँ....... (अजन्मा संवाद )

ओ माँ .....
पिता तो फिर पिता
तुमने भी न जाना
दर्द मेरा
रोशनी से पूर्व ही
विधि में लिखा मेरे अँधेरा
क्या नहीं मै,
प्यार का परिणाम
या बस वासना का
क्या नहीं फल एक माँ की
साधना का
बिम्ब हूँ
प्रतिरूप रूप तेरी कामना का
दीप हूँ मै
भक्ति का आराधना का
बंद कर आँखे
मुझे देखो
मुझे छू लो
तुम्हारा अंश हूँ माँ
दृष्टि को बदलो
मुझे सोचो
तुम्हारा वंश हूँ माँ
है नहीं भाषा
कि मै तुमको पुकारूँ
तन सजग भी नहीं
मै खुद को बचा लूँ
शक्ति हूँ
पर अभी तो अव्यक्त हूँ मै
तुम्हरी मज्जा
तुम्हारा रक्त हूँ मै
मै हजारों साल
तुमको खोजती
बहती गगन में
आज जब पाने चली
तन का घरोंदा
रोक लो माँ
मत मुझे मारो
ज़रा सोचो
तुम्हारा स्वप्न हूँ मै

करो अब साकार
देखो तुम्हारा
प्रतिबिम्ब हूँ मै
हर कठिन पल का
अडिग आलम्ब हूँ मै
बड़ी हो कर जो
कहोगी वो करुँगी
तुम कहो पानी भरो
पानी भरूंगी
तुम कहो अम्बर
धरा पर खींच दूंगी
स्वप्न तुम बोना
मै उन को सींच दूंगी
प्रेम, करुणा हूँ सदय हूँ
बुद्धि से ज्यादा हृदय हूँ
रण अगर जीवन बने तो
हार में निश्चय विजय हूँ
और ये सब रूप हैं
प्रतिरूप तेरे
रुक सके कब तक भला
तम से सवेरे
तोड़ कर प्राचीर
नव युग का सृजन कर
मलिन पूर्वाग्रहों का
पल में शमन कर
और मुझको
प्यार् का आभास दे माँ
मुझे जीवन के लिए
एक आस दे माँ
यही अभिलाषा
तुम्हारा रूप पाऊं
रश्मि बन छिटकूं
धारा को जगमगाऊं
किन्तु यदि
किंचिद समय से डर रही हो
कहीं तुम भी
भ्रूण में ही मर रही हो

किन्तु जननी हो
करो यह धारणा माँ
अंश हूँ तेरा
मुझे मत मारना माँ
रूप हूँ तेरा
मुझे मत मारना माँ

Posted via email from हरफनमौला