एक भटकन..... जो जन्म के इस पार से मृत्यु के उस पार तक भी हमारा पीछा नहीं छोडती है ...
मन प्राण आत्मा इस भटकाव के जाल से निकल नहीं पाती है ...उसे भान भी नहीं होता अपनी पराधीनता का
आशाएं हैं कि हमें भटकने के लिए मजबूर करती हैं और हम अपनी निजता से दूर एक अनजान खोज में भटकते हैं यायावर बन कर ...
कहीं तो थिर मिले-
हे यायावर....!
खोजता है कुछ
भटकता है,
कि है संधान कोई
समय के आवर्त में
या खोजता है अर्थ कोई
क्यों व्यथित है पथिक
सांसें और अंतः प्राण तेरे
रुलाते है तुझे क्या परिवेश
जीवन के कथानक
पांव के व्रण
या कि तम के
घन घनेरे...
कल्पना संसार
नातों के भंवर से
मृत्यु के उस पार
आशाएं सबल है
स्वप्न का शृंगार कर
छद्म का परिवेश धर
लक्ष्य पाने की त्वरा में
प्राण का पंछी विकल है
क्षिप्त अभिलाषा
तृषा का करुण क्रंदन
क्षितिज से आगे
क्षितिज-नव का निबंधन
भर रहे अस्तित्व में
संवेग प्रतिपल
यान से बिछड़े हुए खग
दंभ तज
आ लौट घर चल
क्या कभी पैठा नहीं
उतरा नहीं
अन्तः अतल में
या कि वर्तुल वेग में आविष्ट
झंझावात का
वर्जन किया है ?
ठहर जा दो पल..
बुझा कर दग्ध आँखें
विचारों को मौन कर ले
भ्रंश हों सब मान्यताएं
और पूर्वाग्रहों का
कण कण बिखर ले
नाद अनहद सुन
ह्रदय आनंद से संतृप्त
सरिता प्रेम की अविरल बहे
मन प्राण को स्वच्छंद कर
निर्भय अमिय का पान कर ले
और निजता में अवस्थित
आत्म साक्षात्कार कर
बस मौन हो जा
मौन हो जा
हे यायावर ......
{आज मै ब्लॉग जगत के दरबार में अपनी वो रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसे किसी प्रतिष्ठित साईट ने छापने लायक नहीं समझा, कृपया अपनी अमूल्य टिप्पणी अवश्य दें ताकि मुझे और बेहतर करने कि शक्ति मिले और मेरा मार्ग प्रशस्त हो }
Posted via email from हरफनमौला
man k antardwand ko yayawar ne sudrad shabdawali se sajaya hai..badhayi.
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