फिर से घनघोर घाटा छाई है अमराई मे
कहाँ हो आन मिलो शाम की तनहाई मे
कहाँ हो आन मिलो शाम की तनहाई मे
विरह की आग पे छींटे न दे अरे बादल
कहीं धुआँ न उठे फिर कहीं रुसवाई मे
चाँद बेज़ार भटकता रहा सरे मंज़र
चाँदनी खोई बादलों की तमाशाई मे
रूठने और मनाने को बहुत हैं मौसम
आज तो चूड़ियाँ मचलने दो कलाई मे
पद्म खिलने लगे हैं झील मे कंवल ऐसे
जैसे केसर का रंग घुल गया मलाई मे
-.... पद्म सिंह- 04-07-2012
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