डूब कर पार निकल जाना है
बस मोहोब्बत का ये फ़साना है
हमने समझी है ज़िन्दगी कैसे
मौत का घर में आना जाना है
प्यार करना तो बहुत आसां है
कुछ है मुश्किल तो भूल पाना है
फिर मोहोब्बत पे लगे है पहरे
सच कहा फिर वही ज़माना है
अपने भीतर जिसे शैतां न मिले
संग पहले उसे उठाना है
एक तरफ़ इश्क है मोहोब्बत है
एक तरफ़ मौत है ज़माना है
डूब कर पार निकल जाना है
बस मोहोब्बत का ये फ़साना है
शनिवार, 31 अक्टूबर 2009
रविवार, 25 अक्टूबर 2009
हियरा के पीर

ये मौसम जब भी आता है मुझे जाने क्या होने लगता है....
गर्मी जाने वाली है गुलाबी ठण्ड आ रही है ... सबकुछ अच्छा लगता है...
दीपावली पर गाँव जाते समय मन की उमंग कुछ और ही थी ... रस्ते में कार रोक कर मेले में चल रही नौटंकी का मज़ा भी लिया। संगीत चल रहा था ... छोटी छोटी दुकाने सजी हुई थी । ज्यादातर लोग मध्यम या निम्न आर्थिक वर्ग के ही रहे होंगे । समाज का एक बड़ा वर्ग आज भी मॉल और मल्टीप्लेक्स की संस्कृति से बहुत दूर है ... आजीविका की कशमकश और आभाव के झंझावातों मेंघिरा हुआ ये वर्ग कहीं न कहीं इन मेलों में अपने दबे कुचले सपनों एवं तथाकथित वासनाओं की चिंगारी को हवा दे लेता है...
बहुत से लोग शहरों में ऐसे भी हैं जिनके पास अपना गाँव नही है ... उन्हें संभवतः पता भी न हो की गाँव की फिजा , गाँव की महक क्या होती है । ये तो उसी को पता होगा जो अपना बचपन के गाँव की छाछ मक्खन छोड़ कर मॉल का पिज्जा बर्गर, चाऊमीन सेवन कर रहे हैं । आज इस मौसम में मुझे अपनी एक पुरानीरचना याद आ गई।
लोक भाषा में लोक गीत ----
घुंघटा माँ छुपी तकदीर मोरी सजनी
कब मिटिहैं हियरा के पीर मोरी सजनी
होइहैं मिलन चितचोर मोरे सजना
घुंघटा माँ छुपी तकदीर मोरी सजनी
कब मिटिहैं हियरा के पीर मोरी सजनी
होइहैं मिलन चितचोर मोरे सजना
चन्दा के होई दा अंजोर मोरे सजना
ढुलके ला मंद मंद पागल बयरिया
ढुलके ला मंद मंद पागल बयरिया
बदरा माँ छुपिछुपि जाला अंजोरिया
जियरा धरे नाही धीर मोरी सजनी
कब मिटिहैं हियरा के पीर मोरी सजनी
कैसे बताई पिया जियरा की बतिया
लागे है लाज मोहे धडके है छतिया
मनवा पे चले नही जोर मोरी सजना
चंदा के होई दा अंजोर मोरे सजना
तोहरा जो पल भर के प्यार मिलि जाला
तो मरते को जिनगी उधार मिलि जाला
देखा न नैनन के नीर मोरी सजनी
कब मिटिहैं हियरा के पीर मोरी सजनी
हमारी पिरितिया है चंदा चकोर की
तोहरी सुरतिया किरिनिया है भोर की
छोड़ा न अंचरा के कोर मोरे सजना
चंदा के होई दा अंजोर मोरे सजना
१०-०१-१९९५ इलाहाबाद
शुक्रवार, 23 अक्टूबर 2009
राम करे .....

राम करे मै बनूँ चुनरिया
चढ़ कंधे लहराऊं
या फ़िर होठों की लाली बन
धन धन भाग मनाऊं
चोटी का गजरा बन जाऊं
महकूँ और रिझाऊं
या फ़िर पावों की पायल बन
छम छम नाचूं गाऊं
बन जाऊं कानों के कुंडल
गालों को सहलाऊं
लौंग नाक का बनू
तडित बिजली सा तुझे सजाऊं
मै बन जाऊं पहली चाहत
तुझे खूब तडपाऊ
या बन जाऊं साजन तेरा
तेरा ही हो जाऊं
एक गीत आपके लिए आंचलिक जबान में-
मन अगनैया में तोहरी पायलिया
रुनक झुन नाचे हे सजनी
तोहसे हमार पिरीति के बंधन्वा
जनमवै के सांचे हे सजनी
तोहरा जो एक अंकवार मिली जाला
तो रतिया के जैसे भिनसार मिलि जाला
चंदा के पतिया पे जैसे चकोर
तोहार गुन बांचे हे सजनी
तोहरा से फूलों के बहार मिलि जाला
तोहरा से सावन के फुहार मिलि जाला
तोहरी सुरतिया निरखते तितिलिया के
पखना के सोरहों सिंगार मिलि जाला
तोहरी सुरतिया निरिखी के बिधाता
जिनगिया संवांचे हे सजनी
गरीबी की मार से मुरुकी जाला जिनगी
मन माँ मुचुकी जाला बात मोरे मन की
एक तो पियास रानी तोहसे मिलन के
दूजे मरजाद नही बिना अन धन के
तोहरा चरण परते चहुँ और
लछमी घर नाचे हे सजनी
........... ये लोक गीत मैंने २८-०१-२००० को लिखा था पुरानी डायरी में कही पड़ा था
अंतस के झरोखों से: एक हो जायें
http://rajanmeripasand.blogspot.com/2009/10/blog-post.htmlअंतस के झरोखों से: एक हो जायें
बुधवार, 21 अक्टूबर 2009
ग़ज़ल
दीपावली की शुभ कामनाएं सभी पाठकों को ....... आज आपको कई दिन बाद अपनी ग़ज़ल पेश कर रहा हूँ ...... आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है ,, जल्द ही आप मुझे चिटठा जगत पर पढ़ सकते है....
ये सफर काट दो मौजों की रवानी बन कर
बीत जायेगी उमर एक कहानी बन कर
हसीन मयकदा-ऐ-इश्क मस्तियाँ ओ शबाब
सब एक बार ही आते है जवानी बन कर
रुखसत ऐ यार के ग़म को भी कहाँ तक सोचें
वो भी कब तक रहेगा आँख का पानी बन कर
ज़िन्दगी चिलचिलाती धूप के सिवा क्या है
प्यार आता है मगर शाम सुहानी बन कर
इस कदर ग़म की घटाओं से न घबरा प्यारे
ये भी बरसेंगे तो बह जायेंगे पानी बन कर
आज दुनिया को मेरे ज़ज्बों की परवाह नही
खाक हो जाऊं तो ढूंडेगी दीवानी बन कर
ये सफर काट दो मौजों की रवानी बन कर
बीत जायेगी उमर एक कहानी बन कर
हसीन मयकदा-ऐ-इश्क मस्तियाँ ओ शबाब
सब एक बार ही आते है जवानी बन कर
रुखसत ऐ यार के ग़म को भी कहाँ तक सोचें
वो भी कब तक रहेगा आँख का पानी बन कर
ज़िन्दगी चिलचिलाती धूप के सिवा क्या है
प्यार आता है मगर शाम सुहानी बन कर
इस कदर ग़म की घटाओं से न घबरा प्यारे
ये भी बरसेंगे तो बह जायेंगे पानी बन कर
आज दुनिया को मेरे ज़ज्बों की परवाह नही
खाक हो जाऊं तो ढूंडेगी दीवानी बन कर
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