शुक्रवार, 11 मार्च 2011

जीवन अकथ कहानी

बिधना बड़ी सयानी रे
जीवन अकथ कहानी रे

तृषा भटकती पर्वत पर्वत
समुंद समाया पानी रे

दिन निकला दोपहर चढी
फिर आयी शाम सुहानी रे
चौखट पर बैठा मैदेखूं
दुनिया आनी जानी रे

रूप नगर की गलियां छाने
यौवन की नादानी रे
अपना अंतस कभी न झांके
मरुथल ढूंढें पानी रे

जो डूबा वो पार हुआ
डूबा जो रहा किनारे पे
प्रीत प्यार की दुनिया की
ये कैसी अजब कहानी रे

मै सुख चाहूँ तुमसे प्रीतम
तुम सुख मुझसे
दोनों रीते दोनों प्यासे
आशा बड़ी दीवानी रे



तुम बदले संबोधन बदले
बदले रूप जवानी रे
मन में लेकिन प्यास वाही
नयनों में निर्झर पानी रे


कविता अर्चना चावजी जी की मधुर आवाज़ मे -

6 टिप्‍पणियां:

  1. इसे भी कर लिया रिकार्ड...शुक्रिया..

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  2. दिन निकला दोपहर चढी
    फिर आयी शाम सुहानी रे
    चौखट पर बैठा मैदेखूं
    दुनिया आनी जानी रे
    बहुत सुंदर लेकिन एक सत्य, धन्यवाद

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  3. सुन्दर व भावपूर्ण रचना..आभार
    स्वागत है आपका मेरे ब्लाग पर..

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  4. बिधना बड़ी सयानी रे
    जीवन अकथ कहानी रे

    बहुत सुंदर रचना ...अकथ कहानी कहती हुई जीवन कथा ...मर्मस्पर्शी ...
    सुमधुर वाणी भी अर्चना चावजी की ..
    बधाई इस प्रस्तुति के लिए ...
    //anupamassukrity.blogspot.com/http:

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  5. जीवन ऐसा ही है...
    बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!

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