मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

छलिया

तुम संकुचित पुष्प हो या फीर
तुम अधखिली कली हो
लुक छिप जादू चला रही हो
कितनी हाय छली हो

सूने पन ने
मेरे मन ने
कितना ही उकसाया
पर मेरी आंखों ने तेरे
दिल का हाल न पाया
रूप नगर की रानी
किस मिटटी में हाय ढली हो
लुक छिप जादू...........
तुम कोई सपना हो या फ़िर
मई ही हूँ सौदाई
आंखों के तो पास खड़ी पर

हाथ न मेरे आयी
अब तो ये भी शक है तुम
असली हो या नकली हो
लुक छिप जादू....................
तुम अलमस्त बिखेर रही हो
यौवन की अंगडाई
क्या जाने तेरे कारण
कितनों को नींद न आयी
चैन छीन कर खुश होंगी
समझोगी बहुत भली हो
लुक छिप जादू...........

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