मंगलवार, 13 अक्तूबर 2009

धरा का सिंगार

महक उठे हर शज़र का पत्ता
चमन को ऐसी बहार दे दो
जो आसमा को भी जगमगा दे
धरा को ऐसा सिंगार दे दो

जो नफरतों की मशाल बाले
अमन की कलियाँ कुछल रहे है
जो रहनुमा बन के गुलिश्तां को
उजाड़ने को मचल रहे है
तुम्हे कसम है मिटा दो उन को
ग़मे जिगर को करार दे दो

हम अपनी आहों के दायरे से
युगों युगों तक निकल न पाए
अजब अंधेरे की रात आई
चलो अमन के दिए जलाएं
बुझा सके आतिश-ऐ- जुनून को
वो भाई भाई का प्यार दे दो

चलो कसम खाएं इस ज़मीं पर
झुके न परचम कभी अमन का
न हम रहें हम न तुम रहो तुम
हम एक है की पुकार दे दो
..... जो आसमान को ........

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