सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

पाती

२-

पाती के संग बहते आंसू
पहुंचे तेरे पाँव में
परदेसी परदेस छोड़ कर
वापस आ जा गाँव में

दिल में लावा उबल रहा है
प्यासे रेगिस्तान है
कुछ बिरहा की याद सताए
कुछ दिल के अरमान है
मुझे झुलसता छोड़ बेदर्दी
जा बैठे तुम छाओं में
परदेसी परदेस छोड़ कर
वापस आ जा गाँव में

छोड़ा क्यों साथ मेरा माही
दुःख के सागर की बाँहों में
तुम उडे प्रीती का पिंजरा ले
मे बंधी पड़ी थी आहों में
टूट गया पतवार नाव का
छेद्द हो गए नाव में
परदेसी परदेस छोड़ कर.....

कुछ घर से कुछ बाजारों से
कुछ गलियों से चौबारों से
भेड़िये झांकते हैं अक्सर
इज्ज़त के ठेके दारों से
कुछ से बच कर बच पाई हूँ
कुछ छिपे खड़े है दाँव में
परदेसी परदेश छोड़ कर
वापस आ जा गाँव में

4 टिप्‍पणियां:

  1. पाती के संग बहते आंसू
    पहुंचे तेरे पाँव में...

    क्या खूब शब्द चित्र है...

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  2. कुछ घर से कुछ बाजारों से
    कुछ गलियों से चौबारों से
    भेड़िये झांकते हैं अक्सर
    इज्ज़त के ठेके दारों से

    बहुत खूब पद्म सिंह ....शुभकामनायें आपको !!

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  3. कुछ घर से कुछ बाजारों से
    कुछ गलियों से चौबारों से
    भेड़िये झांकते हैं अक्सर
    इज्ज़त के ठेके दारों से
    कुछ से बच कर बच पाई हूँ
    कुछ छिपे खड़े है दाँव में
    परदेसी परदेश छोड़ कर
    वापस आ जा गाँव में...
    बहुत अच्छा गीत

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