बुधवार, 14 अक्तूबर 2009

एक हो जायें

चलो एक दूसरे में खो जायें
हम हमेशा को एक हो जाएँ
भटकती उम्र थक गयी होगी
यादों की धुंध पट गई होगी
मन की दीवार से सुकून जडी
कोई तस्वीर हट गई होगी
आओ अब परम शान्ति अपनाएं
हम हमेशा को एक हो जाएँ
पहाड़ से उरोज धरती के
उगे है ज्यों पलाश परती के
कसे है आसमान बाँहों में
बसे है सूर्य की निगाहों में
आओ हम मस्त पवन हो जाएँ
सारी दुनिया में प्रेम छितराएं
कई बादल झुके है घाटी में
शिशु सा लोट रहे माटी में
लगा है काज़ल सा अंधियारा
शाम की शर्मीली आंखों में
एक स्वर एक तान हो जाएँ
साथ मिल झूम झूम कर गायें
हम हमेशा को एक हो जाएँ

1 टिप्पणी:

  1. हरफन मौला जी यहाँ कुछ अनजान लोग भी रहते हैं अपने ब्लाग पर कमेन्ट खौ खूछः आसान बनयें कई जगह क्लिक कर के नई पोस्ट तक जाना पडता है । समय बहुत लगता है । शुभकामनायें। अगर शब्द पुश्टिकरण को हटा लें तो और भी आसान रहेगा।

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