सोमवार, 13 फ़रवरी 2012

भेरी आवाज़ लगाती है

Anna_anshan_25-08-11_10

अब जाग उठो अब कमर कसो आहुति की राह बुलाती है

ललकार रही दुनिया हमको भेरी आवाज़ लगाती है


भारत माता के वीर सपूतो धारा की पहचान करो
नावों के बंधन को खोलो पतवार उठा प्रस्थान करो
फिर नए लक्ष्य की चाह विजय की राह तुम्हें दिखलाती है

ललकार रही दुनिया हमको भेरी आवाज़ लगाती है

तंद्रा छोड़ो आँखें खोलो अब नए लक्ष्य संधान करो
तम की कारा को तोड़ फोड़ जगती का नव उत्थान करो
जब अपनी बाहों मे बल हो तो दुनिया पलक बिछाती है
ललकार रही दुनिया हमको भेरी आवाज़ लगाती है


अब प्रण की बारी आई है अब रण की बारी आई है
तन मन को जो दूषित कर दे वो रात दुधारी आई है
भारत माँ अपने बेटों को सत्पथ की राह बुलाती है
ललकार रही दुनिया हमको भेरी आवाज़ लगाती है

Posted via email from पद्म सिंह का चिट्ठा - Padm Singh's Blog

बुधवार, 8 फ़रवरी 2012

बस यही रात सोचने के लिए बाकी है

कल उत्तर प्रदेश मे चुनावी घमासान की शुरुआत है... फेसबुक पर अनगढ़ चिन्तन  करते करते कुछ अनगढ़ विचार पंक्तियों मे उतर आए....  पोस्ट के कमेन्ट के रूप मे भाई सलिल वर्मा जी ने कविता को आगे बढ़ाया और एक रचना ने रूप पाया... जिसे ब्लॉग पर डालने का लोभ संवरण नहीं कर सका...यह कविता मेरी और सलिल वर्मा जी के विचारों का फ्यूजन है...


बस यही रात सोचने के लिए बाकी है
कल सुबह लाने की अपनी ही ज़िम्मेदारी है
एक तरफ सुबह का उजाला है
एक तरफ स्याह अन्धेरे की हवस तारी है
वक्त क्या वेश धर के आएगा
कोई बिरला ही समझ पाएगा
असली चेहरा कहीं छुपा होगा
एक मुखौटा ही मुस्कुराएगा
कुछ समझ पाने की दुश्वारी है
बस यही रात सोचने के लिए बाकी है
कल सुबह लाने की अपनी ही ज़िम्मेदारी है ...

रात सोते में ही इस शहर के लोग,
अपनी आँखों को गंवा बैठे हैं
सुबह जब निकलेगा सूरज तो नहीं जानेंगे
उनके आगे ये अन्धेरा है या वो नींद में हैं
आँख पर पर्दा पड़ा है जो ज़ात मजहब का
या कि केसरिया-सब्ज़ परचम का
उनको मालूम कहाँ अंधे हैं कि परदे हैं.
कौन समझाए भला  कौन उन्हें समझाए,
बस यही रात सोचने के लिए बाकी है
कल सुबह लाने की अपनी ही जिम्मेदारी है!!