शनिवार, 28 जनवरी 2012

नेता स्त्रोत ...


सदा श्वेत वस्त्रम, खुंसे अंग शस्त्रम, च वाहन विशालादि सत्ता सुखम ...
चमचा कृपालम, विरोधस्य कालम, सुवांगी श्रुतम चैव लारम भजे...
नमो भ्रष्ट पोषी, च स्विस बैंक कोशी, न जांचम, न दोषी, समेटाsधनम
अनर्गल प्रलापम, च वादा खिलाफम, बकम रात्रि दिवसम अनापम शनापम
निपोराणि खीसम, निर्लज्जमीशम, सुरा सुन्दरी भोग गम्यम भजे
नमो कष्टकारी, च गुंडाधिकारी, सदा लूटकारी, शिकारी धनम
खलस्यादि मित्रम, दुधारी चरित्रम, चुनावे पवित्रम, कुचक्री परम
सदा दुष्ट संगम, च पिस्तौल बंबम, जगन्नापदा, विघ्नकारी परम
त्वया सत्ता धीशम, महामंडलीशम तु नक्कार खानाय तूती वयं

*****नेता वन्दन**** 

सपरिवार निंदउं तुम्हें हे नेता गद्दार..... तरसो वोटन के लिए सुखी रहे संसार
हे गरीब के पेट पर रोटी सेंकनहार, जिस दिन तुम मंत्री बनो गिर जाये सरकार
बोल न फूटे जब तुम्हें हार्टअटैक ड़ि जाय,लूटा धन स्विस बैंक मे पड़े पड़े सड़ि जाय
पाठक जो पढ़ के इसे हाथ पैर मुंह धोय...सात जनम घर ताहि के नेता कबहुँ न होय 

बोलो सत्तानन्द सटोरी धन-आनंद बटोरी नेता भ्रष्टानंद की क्षय  !!!

हे वीणा शोभायनी

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हे वीणा शोभायनी, हे विद्या की खान
मेरी भव बाधा करो, बाँह धरो अब आन
माँ तुमसे क्या छुपा है तू कब थी अनजान
तुम्हीं सँवारो काज सब, तुम्हीं बचाओ मान
आन बान सब छाँणि के आया मै नादान
पत राखो वागेश्वरी, शत शत तुम्हें प्रणाम
..............
वसन्त पंचमी के पावन पर्व पर माँ वीणापाणि के चरणों मे प्रणाम करते हुए
आप सब को बहुत बहुत मंगल कामनाएँ ....


मंगलवार, 24 जनवरी 2012

जूता पचीसी

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कई बार मज़ाक मे लिखी गयी दो चार पंक्तियाँ  अपना कुनबा गढ़ लेती है... ऐसा ही हुआ इस जूता पचीसी के पीछे... फेसबुक पर मज़ाक मे लिखी गयी कुछ पंक्तियों पर रजनीकान्त जी ने टिप्पणी की कि इसे जूता बत्तीसी तक तो पहुँचाते... बस बैठे बैठे बत्तीसी तो नहीं पचीसी अपने आप उतर आई... अब आ गयी है तो आपको परोसना भी पड़ रहा है... कृपया इसे हास्य व्यंग्य के रूप
मे ही लेंगे ऐसी आशा करता हूँ।

जूता मारा तान के लेगई पवन उड़ाय
जूते की इज्ज़त बची प्रभु जी सदा सहाय ।1।

साईं इतना दीजिये दो जूते ले आँय
मारहुं भ्रष्टाचारियन जी की जलन मिटाँय ।2।

जूता लेके फिर रही जनता चारिहुं ओर
जित देखा तित पीटिया भ्रष्टाचारी चोर ।3।

कबिरा कर जूता गह्यो छोड़ कमण्डल आज
मर्ज हुआ नासूर अब करना पड़े इलाज ।4।

रहिमन जूता राखिए कांखन बगल दबाय
ना जाने किस भेस मे भ्रष्टाचारी मिल जाय ।5।

बेईमान मचा रहे चारिहुं दिसि अंधेर
गंजी कर दो खोपड़ी जूतहिं जूता फेर ।6।

कह रहीम जो भ्रष्ट है, रिश्वत निस दिन खाय
एक दिन जूता खाय तो जनम जनम तरि जाय ।7।

भ्रष्टाचारी, रिश्वती, बे-ईमानी, चोर
खल, कामी, कुल घातकी सारे जूताखोर ।8।

माया से मन ना भरे, झरे न नैनन नीर
ऐसे कुटिल कलंक को जुतियाओ गम्भीर ।9।

ना गण्डा ताबीज़ कुछ कोई दवा न और
जूता मारे सुधरते भ्रष्टाचारी चोर 10।

जूता सिर ते मारिए उतरे जी तक पीर
देखन मे छोटे लगें घाव करें गम्भीर ।11।

भ्रष्ट व्यवस्था मे चले और न कोई दाँव
अस्त्र शस्त्र सब छाँड़ि के जूता रखिए पाँव ।12।

रिश्वत खोरों ने किया जनता को बेहाल
जनता जूता ले चढ़ी, गाल कर दिया लाल ।13।

रहिमन काली कामरी, चढ़े न दूजो रंग
पर जूते की तासीर से भ्रष्टाचारी दंग ।14।

थप्पड़ से चप्पल भली, जूता चप्पल माँहिं
जूता वहि सर्वोत्तम जेहिं भ्रष्टाचारी खाहिं ।15।

रहिमन देखि बड़ेन को लघु न दीजिये डारि
काम करे जूता जहां नहीं तीर तरवारि ।16।

जूता मारे भ्रष्ट को, एकहि काम नासाय
जूत परत पल भर लगे, जग प्रसिद्ध होइ जाय ।17।

भ्रष्ट व्यवस्था मे कभी मिले न जब अधिकार
एक प्रभावी मन्त्र है, जय जूतम-पैजार ।18।

जूता जू ताकत फिरें भ्रष्टाचारी चोर
जूते की ताकत तले अब आएगी भोर ।19।

रिश्वत दे दे जग मुआ, मुआ न भ्रष्टाचार
अब जुतियाने का मिले जनता को अधिकार ।20।

भ्रष्टाचार मिटे तभी जब जीभर जूता खाय
एक गिनो तब जाय के जब सौ जूता हो जाय।21।

इब्ने बतूता बगल मे जूता पहने तो बोले चुर्र
हाथ मे लेके देखिये, भ्रष्टाचारी फुर्र ।22।

पनही, जूता, पादुका, पदावरण, पदत्राण
भ्रष्टाचारी भागते नाम सुनत तजि प्राण ।23।

जूते की महिमा परम, जो समझे विद्वान
बेईमानी के लिए जूता-कर्म निदान ।24।

बेईमानी से दुखी रिश्वत से हलकान
जूत पचीसी जो पढ़े, बने वीर बलवान ।25।

सोमवार, 2 जनवरी 2012

जनमानस स्तब्ध है लोकतन्त्र लाचार

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जनता सड़कों पर खड़ी मांग रही कानून
मनमानी सरकार की बना नहीं मजमून
भय है भ्रष्टाचार पर लग ना जाय नकेल
भ्रष्टाचारी       खेलते     उल्टे    सीधे   खेल
उल्टे   सीधे    खेल   काम जैसे भी बनता
नहीं बने कानून    भाड़ मे जाये जनता
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संसद की सर्वोच्चता सत्ता का यह खेल
कैसी   अंधाधुंध     है    कैसी    रेलमपेल
राजनीति की नसों  मे पसरा भ्रष्टाचार
जनमानस   स्तब्ध है लोकतन्त्र लाचार
लोकतन्त्र  लाचार ठनी नौटंकी हद की
फिर नंगी तस्वीर उभर आई संसद की
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जनता जब से जगी है ऐसी पड़ी नकेल
हुए उजागर बहुत से राजनीति के खेल
कहने को सब चाहते लोकपाल मजबूत
पर सपनों मे डराए  लोकपाल का भूत
लोकपाल का भूत  नहीं कुछ कहते बनता
अन्ना,बाबा, स्वामी पीछे सारी जनता
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मंहगाई सर पे चढ़ी फिर उछला पेट्रोल 
सरकारी वादे सभी  बने ढ़ोल के पोल
भूखा मारे गरीब और सड़ता रहे अनाज
देश नोच कर खा रहे  सत्ताधारी बाज़
सत्ताधारी बाज़    कयामत    जैसे  आई
जीना दूभर हुआ चढ़ी सर पे मंहगाई
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यह रचना  मेरे अन्य ब्लॉग  पद्मावलि पर भी प्रकाशित है... क्षमा  करें !