गुरुवार, 10 मार्च 2011

पान और ईमान... दोनों फेरते रहिए

एक प्रसिद्ध कहानी है ...

एक साधु नदी मे स्नान कर रहा था, उसने देखा एक बिच्छू पानी मे डूब रहा था और जीवन के लिए संघर्ष कर रहा था। साधु ने उसे अपनी हथेली पर उठा कर बाहर निकालना चाहा...लेकिन बिच्छू ने साधु के हाथ मे डंक मारा, जिससे साधु का हाथ हिल गया और बिच्छू फिर पानी मे गिर गया... साधु बार बार उसे बचाने का प्रयत्न करता रहा और जैसे ही साधु हथेली पर बिच्छू को उठाता बिच्छू डंक मारता...लेकिन अंततः साधु ने बिच्छू को बचा लिया.... घाट पर खड़े लोग इस घटना को देख रहे थे... किसी ने पूछा... बिच्छू आपको बार बार डंक मार रहा था फिर भी आप उसे बचाने के लिए तत्पर थे... ऐसा क्यों...

साधु मुस्कराया और बोला... बिच्छू अपना धर्म निभा रहा था... और मै अपना... वो अपना स्वभाव नहीं छोड़ सकता तो एक साधु अपना स्वभाव क्यों छोड़े... फर्क इतना है कि उसे नहीं पता कि उसे क्या करना चाहिए... जब कि मुझे पता है मुझे क्या करना चाहिए...

images (1)दूसरी प्रसिद्ध कहानी है... दो साधु जंगल मे एकांतवास कर रहे थे ... उन्होंने देखा कि कुछ शिकारी एक साही(एक जानवर) का पीछा कर रहे थे... साही ने आत्म रक्षार्थ अपने काँटे फुला रखे थे जिससे शिकारियों के मारने का कोई असर उसपर नहीं हो रहा था... साधु दूर से यह तमाशा देख रहे थे... साथी साधु ने दूसरे से कहा... ये साही तो मर नहीं रहा है... शिकारी कितनी देर से परेशान हैं...इन्हें कोई उपाय बताइये... इस पर साधु बोला..... "साही मरे मूड (सिर) के मारे, लेकिन हम संतों को क्या पड़ी".... यह बात इतने ज़ोर से बोली गयी थी, कि बात शिकारियों तक के कानों मे पड़ जाये... शिकारियों ने झट उसपर अमल किया और सिर पर चोट करते ही साही मर गया....

किसी का चरित्र उसके व्यवहार पर कहीं न कहीं छाप अवश्य छोडता है। किसी परिस्थिति विशेष मे कोई कैसा व्यवहार करता है, किसी अवसर विशेष पर किसी की क्या प्रतिक्रिया होती है, यही उसके चरित्र की वास्तविक तस्वीर होती है। इसको जाँचने का एक यंत्र है ज़मीर... किसी का ज़मीर कब जागता है और कब सोता रह जाता है यही उसके चरित्र की मूल पहचान होती है। किसी की मूल वृत्ति उसके व्यवहार को कहीं न कहीं प्रभावित अवश्य करती है।

परोपदेशकुशलाः दृश्यन्ते बहवो जनाः ।
स्वभावमतिवर्तन्तः सहस्रेषु अपि दुर्लभाः ॥

दूसरों को उपदेश करने में अनेक लोग कुशल होते हैं, पर उसके मुताबिक व्यवहार करनेवाले हज़ारों में एकाध भी दुर्लभ होता है

दूसरों को अच्छी अच्छी बातें बताना... अच्छी सलाहें देने का कार्य सब करते हैं ... लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो लाभ का अवसर मिलते ही थोड़ी देर के लिए अपने ज़मीर को थपकी दे कर(या अफीम पिला कर) सुला देते हैं... और ताज्जुब तो यह कि कई लोग इस घटना को अनजाने(बनकर) ही करते हैं... अक्सर यह बेटे का दहेज लेने के अवसर पर स्पष्ट दिखाई देता है....

पान और ईमान को ठीक रखने के लिए फेरते रहना जरूरी होता है... अपने ईमान, अपने धर्म, अपने चरित्र की परीक्षा अवसर पड़ने पर जरूर की जानी चाहिए....

.......... पद्म सिंह padm singh

12 टिप्‍पणियां:

  1. दूसरों को उपदेश करने में अनेक लोग कुशल होते हैं, पर उसके मुताबिक व्यवहार करनेवाले हज़ारों में एकाध भी दुर्लभ होता है

    -सार्थक पोस्ट.

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  2. निर्मला कपिला जी की टिप्पणी मेल पर-

    पदम जी दोनो बोध कथायें जीवन का अर्थ सिखाती हैं बहुत अच्छी लगी दोनो कथायें। धन्यवाद।

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  3. चरित्र से तो व्यवहार निर्धारित होता ही है,स्वयं चरित्र का निर्माण भी व्यवहार से ही होता है।

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  4. बहुत ही उम्दा--बात पते की.....सबको सुनाना है, अनुमति मिलेगी पॉडकास्ट की ?

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  5. कमाल का लिखा है पद्मसिंह ! बहुत प्रभावित किया इस लेख ने यार ! बधाई !
    पर उपदेश कुशल बहुतेरे .....
    आज इस कदर जीवन में रम गया है कि लगता है इसे स्वीकारने में ही भलाई है अथवा लोग पागल समझेंगे ! आपका यह मित्र उन्हीं पागलों में से एक है !
    पुत्र विवाह एवं बेटे और बेटी में कोई फर्क न करना शामिल है और विरोध हँसते हुए सह रहा हूँ !
    जब तक पद्मसिंह जैसे लोग हैं एक शक्ति महसूस करता रहूँगा !
    बढ़िया ब्लॉग बनाने के लिए एक और बधाई
    सादर

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  6. @अर्चना जी - ये मेरी खुशकिस्मती होगी... आभार

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  7. परोपदेशकुशलाः दृश्यन्ते बहवो जनाः ।
    स्वभावमतिवर्तन्तः सहस्रेषु अपि दुर्लभाः ॥


    सही कहा आप ने उपदेश देना आसना है पर उसपर अमल करना मुश्किल है ......

    दोनों कहानियाँ भी प्रेरणा दायक है ...

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  8. पॉडकास्ट आपको सुनावाना है ..आपका ID??

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  9. ह्म्म्म तो बबुआ अब जोगी हो गये हैं? परम गुरुदेव श्री श्री१०००००८ श्री पद्मानंद जी महाराज की जय हो.ये १०८,या १००८ क्यों लिखते है,मुझे नही मालूम.कोई ना कोई कारन तो होगा ही न गुरुदेव इसके पीछे? इसलिए हमने इतने शून्य बीच में जोड़ दिए अपनी ओर से.
    हमने भी शिक्षा ले ली, साधू और बिच्छु की कहानी से.हम भी डंक मारना सीख रहे हैं पर....आप जैसा कोई डूबने से बचाने वाला मिले तो...........वरना ऊ तो हमे पत्थर से कुछल ही देगा न? हा हा हा जियो और....यूँ ही 'मोटिवेट' करते रहो.जिंदगी बीत जायेगी और शायद 'उस' साधू का कुछ अंश गुण हम में भी आ जाये.

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