एक अरसा हो गया है, बेधड़क सोता नहीं
दिल भरा बैठा हुआ है टूट कर रोता नहीं
किसे कहते हाले दिल किसको सुनाते दास्ताँ
कफ़स का पहलू कोई दीवार सा होता नहीं
दूर हो कर भी मरासिम इस तरह ज़िंदा रहे
मै इधर जागूँ अगर तो वो उधर सोता नहीं
इश्क हो तो खुद-ब-खुद हस्सास लगती है फिजाँ
कोई दरिया, पेड़, बादल चाँदनी बोता नहीं
तुम हमें चाहो न चाहो हम तुम्हारे हैं सदा
ये कोई सौदा नहीं है कोई समझौता नहीं
...... पद्म सिंह =Padm singh 9716973262
तुम हमें चाहो न चाहो हम तुम्हारे हैं सदा
जवाब देंहटाएंये कोई सौदा नहीं है कोई समझौता नहीं
वाह जी बहुत खुब, बहुत सुंदर, धन्यवाद
चर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी प्रस्तुति मंगलवार 08-03 - 2011
जवाब देंहटाएंको ली गयी है ..नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.uchcharan.com/
पद्मसिंह जी!
जवाब देंहटाएंआपने बहुत सुन्दर और सशक्त रचना लिखी है!
महिला दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
केशर-क्यारी को सदा, स्नेह सुधा से सींच।
पुरुष न होता उच्च है, नारि न होती नीच।।
नारि न होती नीच, पुरुष की खान यही है।
है विडम्बना फिर भी इसका मान नहीं है।।
कह ‘मयंक’ असहाय, नारि अबला-दुखियारी।
बिना स्नेह के सूख रही यह केशर-क्यारी।।
तुम हमें चाहो न चाहो हम तुम्हारे हैं सदा
जवाब देंहटाएंये कोई सौदा नहीं है कोई समझौता नहीं
बहुत खूब .. लाजवाब ग़ज़ल कही है .. बहुत ही गज़ब के तेवर हैं पद्म जी इस ग़ज़ल में ...
ये शेर तो कमाल का है ...
lajawaab gazal.
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया गज़ल... कल आपकी यह पोस्ट नुक्कड़ से चर्चामंच पर होगी... आप चर्चामंच पर और अमृतरस ब्लॉग पर आ कर अपने विचारों से हमें अनुग्रहित करें ! धन्यवाद
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