जीवन अकथ कहानी रे
तृषा भटकती पर्वत पर्वत
समुंद समाया पानी रे
समुंद समाया पानी रे
दिन निकला दोपहर चढी
फिर आयी शाम सुहानी रे
चौखट पर बैठा मैदेखूं
दुनिया आनी जानी रे
रूप नगर की गलियां छाने
यौवन की नादानी रे
अपना अंतस कभी न झांके
मरुथल ढूंढें पानी रे
जो डूबा वो पार हुआ
डूबा जो रहा किनारे पे
प्रीत प्यार की दुनिया की
ये कैसी अजब कहानी रे
मै सुख चाहूँ तुमसे प्रीतम
तुम सुख मुझसे
दोनों रीते दोनों प्यासे
आशा बड़ी दीवानी रे
तुम बदले संबोधन बदले
बदले रूप जवानी रे
मन में लेकिन प्यास वाही
नयनों में निर्झर पानी रे
कविता अर्चना चावजी जी की मधुर आवाज़ मे -
इसे भी कर लिया रिकार्ड...शुक्रिया..
जवाब देंहटाएंदिन निकला दोपहर चढी
जवाब देंहटाएंफिर आयी शाम सुहानी रे
चौखट पर बैठा मैदेखूं
दुनिया आनी जानी रे
बहुत सुंदर लेकिन एक सत्य, धन्यवाद
सुन्दर व भावपूर्ण रचना..आभार
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका मेरे ब्लाग पर..
बिधना बड़ी सयानी रे
जवाब देंहटाएंजीवन अकथ कहानी रे
बहुत सुंदर रचना ...अकथ कहानी कहती हुई जीवन कथा ...मर्मस्पर्शी ...
सुमधुर वाणी भी अर्चना चावजी की ..
बधाई इस प्रस्तुति के लिए ...
//anupamassukrity.blogspot.com/http:
बहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंजीवन ऐसा ही है...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति!