बुधवार, 30 दिसंबर 2009

कैक्टस, गुलाब और गुलाब जामुन.


आज वर्ष २००९ का अंतिम दिन है, लोग आज से ही शुरू हो जायेंगे। मैसेज भेजेंगे, मेल करेंगे, और भी बहुत से खेल होंगे नए वर्ष के नाम पर. कुछ नया करने के इरादे, कुछ नया पाने का लक्ष्य, कुछ नया पन, नया परिवर्तन लाने का संकल्प। सब के अपने अपने लक्ष्य होंगे नए वर्ष पर पर असली नया वर्ष तो युवा वर्ग मानते है , दिल्ली के कनाट प्लेस में डी जे की बीट पर थिरकने, कभी पीने वाले भी दो घूट... के आलावा, और भी बहुत से तरीके अपनायेगे ये आज के होनहार नया वर्ष मानाने के लिए पार्क भरे होंगे( खास कर पार्कों के दुर्गम कोने), सारी फिजा प्रेम मय होगी... देख कर नहीं लगता की दुनिया से प्यार कम हो गया है .. किसी के एक्स्ट्रा क्लास होंगे, किसी को ज़रूरी नोट्स लेने दोस्त के घर जाना होगा, किसी के दोस्त की बर्थडे पार्टी होगी.... यानि सारे हथकंडे अपनाये जायेंगे घर से निकलने के(नया साल मानाने के).... और फिर हो भी क्यों .... नया साल कोई रोज़ थोड़े ही आता है? पूरा एक साल बाद ही आएगा ……….शायद पता हो कि इस युग में जिसके बॉय या गर्ल फ्रैंड हो उनका स्टेटस झुण्ड से निकाले गए बन्दर जैसा होता इस लिए नया साल बहुत सारी नयी संभावनाओं के साथ फिर हाज़िर है.... जो फायदा नहीं उठा पाया तो समझो अगला नया साल पूरे एक साल बाद आएगा और पता नहीं तथाकथित पुराने लोग अगले साल ???.... जिनके अपने आत्मीय लोग है उनको तो सलाह नहीं दूंगा, पर जिनके नहीं है उनके लिए मौका है …..इस सम्बन्ध में अपने एक गुरु टाइप मित्र से चर्चा भी की थी ... उनकी फिलासफी नायाब है जिसे ब्लॉग दुनिया के समाज सेवियों तक पहुचने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहा हूँ ... बताया कि प्रबुद्ध और सु-समाज में संबंधों को तीन श्रेणियों में बाटा जा सकता है... कैक्टस, गुलाब, और गुलाब जामुन....मेरी उत्सुकता कुछ और बढ़ी.... वो कैसे भाई ये श्रेणियां तो पहली बार सुनने में आई है ... किसी समाज शास्त्री ने नहीं लिखा, नेट पर भी नहीं मिली ये परिभाषा... जी हाँ यही तो है विशुद्ध फिलोसफी ... समाज में संबंधों को तीन श्रेणियों में बाँट सकते है कैक्टस, गुलाब और गुलाब जामुन. .. भाई वोकैसे? तो थोड़ी देर ध्यान मग्न रहने के बाद गुरु ने उवाचना शुरू किया .... कैक्टस के रिश्ते वो होते है जो हम राह चलते कही भी बना लेते है... जैसे कैक्टस की ख़ास बात देखने में बहुत सुन्दर होता है ... उसे छू नहीं सकते....कांटे होते है उसमे….. छुआ नहीं कि... सूंघ नहीं सकते .... खा भी नहीं सकते .......लेकिन देख सकते है ... देखने में सुन्दर होते है और बड़े घर की शान होते है.... आम आदमी की पहुच से दूर.... छूते ही...... !!! और गुलाब? ....... गुलाब ??...........गुलाब को छू सकते है , देख सकते है.... खाना वर्जित है (ये बात अलग है की लोग इस नियम का पूरी तरह से पालन नहीं करते) मै कुछ और उत्साहित हुआ .... मेरे प्रिय मित्र और तीसरा सम्बन्ध??? .... वो तो जी गुलाबजामुन वाला होता है .... जैसे गुलाबजामुन देखने में तो काली होती है सुन्दर भले लगे .......... पर उसे छू सकते है.... सूंघ सकते है.... चख सकते है......और तो और खा भी सकते है ... मेरा तो दिमाग घूम गया ये क्या फिलासफी हुई .... मेरी शंका या यूँ कहें आशंका थोड़ी बलवती हुई ..... थोडा और पास खिसक आया और पूछ ही लिया ... आपने परिभाषा तो बता दी थोडा उदाहरण भी बता दें तो ..... मित्र उवाच .... पहला सम्बन्ध कैक्टस ... राह चलते नज़रों -ही - नजरों में बना लेते है….. देखने में अच्छा लगता है पर छूना, चखना,..... सब वर्जित है, ऊँचे घरों में पाए जाते है ... आम आदमी की पहुच से दूर.... छूते ही...... !!! और गुलाब? ....... गुलाब ...... जैसे प्रेमिका प्रेमी का रिश्ता गुलाब को छू सकते है , देख सकते है.... खाना वर्जित है (ये बात अलग है की लोग इस नियम का पूरी तरह से पालन नहीं करते) और तीसरा?? गुलाब जामुन?? .......हाँ जी ये सरकारी मान्यता प्राप्त रिश्ता है..... जैसे पति पत्नी का ..... देखने में काली बदसूरत भले ही लगे.... पर गुलाब जामुन देख सकते है .... चख सकते है.... छू सकते है......और खा भी सकते है...... इतना कह गुरु जी अंतर्ध्यान हो गए और मै ध्यान मग्न हो गया..........." नया वर्ष मंगलमय हो"

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रविवार, 27 दिसंबर 2009

ग़ज़ल....

फिजां रंगीन होगी मस्त तराने होंगे
थी तमन्ना कभी अपने भी फ़साने होंगे

यूँ तो सोचे थे मोहोब्बत न करेंगे लेकिन
क्या पता था तेरी आँखों के निशाने होंगे

एक नहीं हम ही तलबगार तेरी आँखों के
तेरे मयख़ाने में कुछ रिंद पुराने होंगे


वो मुस्करा के मिले कोई तो वजह होगी
उन्हें भी दिल के कई ज़ख्म छुपाने होंगे

हम न समझे थे गोया ये मुकाम आयेगा
क़त्ल होंगे तो मोहोब्बत के बहाने होंगे

मरने वाले की कोई आरज़ू रही होगी
उसकी आँखों में भी कुछ सपने सुहाने होंगे

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दौलत गाड़ी

अब बहुत ज़माना बदल गया
मै चला किया तुम ठहर गयी
तुम प्रेम रह में बैठी थी
मेरी दौलत गाड़ी निकल गयी

तुम मुझे याद कर रोते थे
हा चादर ताने सोते थे
जब फसल पकी तब काट लिया
तुम जिसे दिनों दिन बोते थे
मै सम्हाल सम्हाल कर निकल गया
तुम प्रेम रह में फिसल गयी

हमने दुनिया को खूब छाला
तुम छलती रही ज़माने से
हमने तो अपना स्वार्थ गढ़ा
बस किसी न किसी बहाने से
मै गड्डी गड्डी ले भगा
तेरी चिल्लर पूंजी बिखर गयी

ये दुनिया है इस दुनिया में
दिल मत फेको मत प्यार करो
मत पत्थर के बाज़ारों में
शीशे का कारोबार करो
अब प्रीती प्यार समता ममता की
दुनिया जाने किधर गयी

तुम प्रेम राह में बैठी थी
मेरी दौलग गाड़ी निकल गई
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सोमवार, 14 दिसंबर 2009

रिश्ता एक बुना था मैंने

रिश्ता एक बुना था मैंने

नयी डिजाइन, नए रंग में
पश्चिम जैसे नए ढंग में
कुछ उलटे कुछ सीधे फंदे
उलझे हुए शिकंजे फंदे
पर अनजाने बीच बीच में
कुछ फंदे जो छूट गए थे
या फिर धागे टूट गए थे
छेद दिखाई देते है,
(मतभेद दिखाई देते है)
जहाँ जहाँ टूटन जोड़ी थी
गांठें सी चुभती रहती है