बुधवार, 25 अगस्त 2010

काव्य,वेलफेयर और बारिश की एक शाम …


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तीन चार दिन पूर्व मेरे कवि  मित्र सुमित प्रताप सिंह जी का ई-मेल मिला कि चौसठवें स्वतन्त्रता दिवस के उपलक्ष्य मे शोभना वेलफेयर सोसाइटी के तत्वाधान एक कवि सम्मलेन का आयोजन किया गया है जिसमे मुझे आमंत्रित किया गया है…
nimantran patra for kavi sammelanएक तो कवि सम्मलेन और फिर मित्र का आमंत्रण था तो मुझे कौन रोक सकता था जाने से …पूरे रास्ते बारिश के बावजूद मै जब मंडावली दिल्ली स्थित नालंदा कैम्ब्रिज स्कूल पहुंचा तो काव्य संध्या का शुभारंभ हो चुका था…  नदीम अहमद काविश जी ने जैसे ही अपना कलाम पढ़ना शुरू किया बारिश तेज हो गयी जिससे काव्य सभा की व्यवस्था बदलते हुए स्कूल के एक क्लासरूम मे ही काव्य पाठन और श्रोताओं के लिए व्यवस्था की गयी और काव्य संध्या आरोहण की ओर बढ़ चली…
नदीम जी से पूर्व कुछ अन्य उदीयमान रचनाकार अपना काव्यपाठ कर चुके थे जिन्हें न सुन पाने का खेद है जिनके नाम इस प्रकार हैं
१ – अनुराग अगम २ -जयदेव जोनवाल
P220810_19.38_[01]नदीम अहमद काविश जी ने पुनः पढ़ना प्रारम्भ किया… कम उम्र के बावजूद इनकी शायरी की सजीदगी ने काफी देर तक श्रोताओं को बांधे रखा और  वाह वाह करने को मजबूर कर दिया ….

देखता हूँ कैसा कैसा ख्वाब मे
तेरी खुशबू तेरा जलवा ख्वाब मे
तेरी आँखें तेरा चेहरा तेरे लब
ख्वाब  ने  भी ख्वाब देखा ख्वाब मे
……………………………………….
कंकड़ समेट कर कभी पत्थर समेट कर
हमने मकाँ बनाया है गौहर समेट कर
नाकामियों ने जब हमें जीने नहीं दिया
हमने भी रख दिया है मुकद्दर समेट कर
टुकड़ों मे बाँट देता हूँ तस्वीर आपकी
फिर उनको चूम लेता हूँ अक्सर समेट कर
——————————————-
गुलों को गुलची सितारों को खा गया सूरज
खैर साये की मियाँ सर पे आ गया सूरज
तमाम दुनिया की हस्ती पे छा गया सूरज
और औकात भी सब की दिखा गया सूरज
जैसे अहबाब के सीने से लिपटता है कोई
अब्र के सीने मे ऐसे समा गया सूरज
अब तो आ जाओ कि मै इंतज़ार करता हूँ
अब न शर्माओ कि कब का गया गया सूरज
गुरूर इसका भी ‘काविश’ खुदा ने तोड़ दिया
आओ कोहरे से वो देखो दबा दबा सूरज

इसके बाद नवोदित  कवि श्री जितेन्द्र प्रीतम जी ने अपनी शिल्प और भाव से परिपक्व रचनाओं से बहुत प्रभावित किया -
पूरी हिम्मत के साथ बोलेंगे जो सही है वो बात बोलेंगे
आखिर हम भी कलम के बेटे हैं दिन को हम कैसे रात बोलेंगे
***
दिल को छूने वाले सारे ही सामान चले आयेंगे
शब्दों के ये भोले भाले कुछ मेहमान चले आयेंगे
मंच मिले न मिले मुझे इसकी परवाह नहीं है कोई.
मेरे गीत तुम्हारे दर तक कानो कान चले आयेंगे

दिल्ली पुलिस मे इंस्पेक्टर और उदीयमान कवि श्री  राजेन्द्र कलकल जी ने हिंदी और हरियाणवी मे अपनी हास्य रचनाओं से माहौल को हल्का फुल्का कर दिया..
चांदी की दीवार न तोड़ी प्यार भरा दिल तोड़ दिया
अब इन टुकड़ों को भी लेजा इन्हें यहाँ क्यों छोड़ दिया


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कवि  प्रतुल वशिष्ठ जी
के पाकिस्तान और भारत के रिश्तों पर व्यंग्यात्मक अपडेट रचना प्रस्तुत करने के बाद शोभना वेलफेयर सोसाइटी के कोषाध्यक्ष और युवा कवि सुमित प्रताप सिंह जी ने अपने छंद रुपी तड़कों से खूब रंग जमाया
जूते खाने से बचे दुनिया के सिरमौर
अगला जूता कब पड़े बुश फरमाते गौर
बुश फरमाते गौर बात अब बहुत बढ़ गयी
सारी दुनिया हाथ धोय के पीछे पड़ गए
विश्व सँवारे पूरा जो जिनके बूते
उस देश के मुखिया के किस्मत हाय जूते

P220810_21.31_[01] तत्पश्चात मंच का संचालक कर रहे श्री रंजीत चौहान जी ने अपनी रचनाओं से श्रोताओं को खूब भाये -
ये खूने तमन्ना मुझसे अब देखा नहीं जाता
आ जिंदगी तुझे कातिल के हवाले कर दूँ
इसके बाद मान्यवर श्री रमेशबाबू शर्मा ‘व्यस्त’ जी ने अपनी प्रेरक  रचनाओं की संजीदगी से श्रोताओं को मुग्ध किया
पंजाब हिमाचल तथा आसाम यहाँ है केरल तमिलनाडु  राजस्थान यहाँ है
कोई भी प्रांत दर्द मेरा बांटता नहीं मै पूंछता हूँ मेरा हिन्दुस्तान कहाँ है
****
काग के कोसे पशु मरते नहीं
ईर्ष्या से मधुर फल झरते नहीं
व्यर्थ मत फूंको कुढन मे जिंदगी ऐ सत्पुरुष
सत्पुरुष पर-नींद को हरते नहीं

काव्य सभा के मुख्य अतिथि श्री जगदीश चन्द्र शर्मा जी (अध्यक्ष हिंदी साहित्य कला प्रतिष्ठान दिल्ली)    ने रचना से पूर्व अपने अमूल्य वचनों से नवोदित रचनाकारों का पथ प्रदर्शन करते हुए कहा कि रचना करते समय व्यंजनाओं का आलम्ब लेना आवश्यक है परन्तु इस बात का भी  ध्यान रखना चाहिए कि  किसी पर व्यक्तिगत कटाक्ष से बचना चाहिए, जैसे आज के मीडिया चैनल खबर देने की जगह खबर लेने मे लगे हुए हैं … जबकि खबर जनता को लेना चाहिए ….. महाकवि कालिदास के नाटक अभिज्ञान शाकुंतलम का उद्धरण देते हुए बताया कि किस तरह रचनाकारों को किसी पर तंज किये बिना अपनी बात कहने का प्रयास करना चाहिए… अर्थात धनात्मक और सृजनात्मक दिशा मे रचनाएँ की जाएँ तो उत्तम है… यद्यपि प्रत्येक रचनाकार अपनी रचनाओं के लिए स्वतंत्र है.
मान्यवर श्री जगदीश चन्द्र शर्मा जी ने अपनी सहज लेकिन अंतस को पोसती हुई एक रचना प्रस्तुत की—-
मैंने अपने मित्र से कहा तुम इस जलते  दीप को लेकर कहाँ जा रहे हो तुम्हारा घर तो प्रकाश से भरा है….. मेरे अँधेरे घर को इसका प्रकाश चाहिए…… इसे मुझे दे दो … किन्तु अज्ञान के आवरण मे लिपटे  मित्र ने कहा….. मै अपने अंतस के अन्धकार को मिटाने के लिए मै इसे गंगा माँ को अर्पित करना चाहता हूँ ……और  उसने अपना दीप गंगा की लहरों मे प्रवाहित कर दिया….. देखते देखते एक नहीं दो नहीं असंख्य दीप  निष्प्रयोजन ही गंगा की लहरों मे समाहित हो गए और मेरी कुटिया मे अँधेरा है
P220810_21.08 इस बीच काव्य सभा के विशिष्ट अतिथि श्री तेजपाल सिंह जी, जो नगर निगम पार्षद हैं, ने अपने विचार व्यक्त किये…   संस्था के प्रति अपने यथा संभव सहयोग करने का आश्वासन देते हुए उन्होंने सोसाइटी को सरकार से मिलने वाले अनुदानों को दिलाने का प्रयास करने का आश्वासन भी  दिया और संस्था को प्रोत्साहित किया  ..
P220810_21.31

अंत मे काव्य  सभा के अध्यक्ष श्री दीपकशर्मा जी  (वरिष्ठ कवि एवं गीतकार)  ने सभी कवियों को धन्यवाद देते हुए अपने  अशआरो से श्रोताओं को मुग्ध किया—
न हिंदू न सिख  ईसाई न मुसलमान हू
कोई मज़हब नहीं मेरा फकत इंसान हूँ
मुझको मत बांटिये कौमों ज़बानों मे
मै सिर से पाँव तलाक हिन्दोस्तान हूँ
P010108_07.06 यद्यपि मौसम की स्थिति और समयाभाव के कारण कुछ निकटतम मित्रवत कवियों ने काव्य पाठ नहीं किया परन्तु काव्य संध्या मे उदीयमान नवोदित कवियों को मंच पर लाने प्रयास सफल प्रतीत हुआ.. काव्य-संध्या के समापन पर  शोभना वेलफेयर सोसाइटी की अध्यक्षा  सुश्री शोभना तोमर जी ने सभी कवियों को स्मृति चिन्ह भेट किया …मुझे विशेष रूप से आमंत्रित  “अपनों” के रूप मे स्मृति चिन्ह भेंट किया गया … रात काफी हो चुकी थी … फिर मिलने और मिलते रहने के आश्वासनों के बीच सभी मित्रों, कवियों और श्रोताओं -ने विदा ली ….

यहाँ यह भी उल्लेख करना चाहूँगा कि शोभना वेलफेयर सोसाइटी निर्धन बच्चों की शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी आवश्यकताओं के लिए कार्य करती है… सोसाइटी का कुछ विवरण निम्न प्रकार है -
कार्यालय- २४४/10 त्रिपथ स्कूल ब्लाक मंडावली, दिल्ली
फोन- 011-22474775
श्री अयोध्या प्रसाद वशिष्ठ – संरक्षक
सुश्री शोभना तोमर – अध्यक्ष
श्री सुमित प्रताप सिंह- कोषाध्यक्ष
श्री रंजीत सिंह – संयोजक

रोना हज़ार रोते हैं (व्यंहज़ल)


 
 
लिखते लिखते सोच रहा था ये क्या लिख रहा हूँ मै ? गज़ल का शिल्प, हास्य का रस, और व्यंग्य की तासीर का मिलाजुला स्वरुप देख कर मन मे आया कि इसे क्या कहूँ .. और फिर शायद एक नयी विधा या शब्द का जन्म हुआ  ऐसा लगता है….
व्यंग्य+हास्य+गज़ल=(व्यंहज़ल)
तो व्यंहज़ल अर्ज़ है……..हल्के फुल्के मन से मुस्कुराते हुए स्वीकारिये …
अंतिम शेर संजीदा एहसासों की शिद्दत से अभिव्यक्ति है…

रोना    हज़ार   रोते  रहे देश काल के
फेंके  न आस्तीं के संपोले निकाल के

चारों तरफ़ बिछी है सियासत की गंदगी
यारों कदम बढ़ाना  जरा  देख भाल  के

भेजा वही है,   सोच वही,   आदतें वही
बदले हैं कलर लल्ला ने सिर्फ बाल के

मिलते ही सुकन्या ने हाइ गाइ! यूँ कहा
आसार  नज़र आने लगे चाल ढाल के

लहसुन  पेयाज़ मसाले  का  त्याग देखिये
साहब ने मछली खाई तो वो भी उबाल के

कुछ भी न दिया हो विकास ने यहाँ मगर
झुरऊ  मज़े लेते  हैं  सरे-शाम   मॉल   के 

इस दौर फर्ज-ओ-फन की  खैर बात क्या करें
ईमान  खरीदे गए सिक्के  उछाल   के
 

……… आपका पद्म २२-०८-२०१०

भटकती आत्मा से साक्षात्कार (संस्मरण)


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mix जाने क्यों और कैसे … बचपन में मुझे ऊंचाइयों से गिरने और अजीब अजीब सायों  के बहुत से सपने आया करते … शायद इन्हीं के प्रभाव से धीरे धीरे ऊंचाई से एक डर की  भावना अंदर कहीं घर कर गयी थी .. अगर किसी छत से भी नीचे देखता तो ऐसा लगता कि जैसे अचानक ही नीचे गिर जाऊँगा… या फिर अक्सर सपनों में किसी अँधेरे गहरे कुंए में मुक्त गिरने जैसे सपने देखता …अक्सर घबरा कर उठ बैठता और फिर सो नहीं पाता था … मै जितना भी इन सपनों से बचना चाहता ऐसे  सपने और भी सजीव हो कर   मेरे पीछे पड़ जाते…ऐसे सपनों की वजह से जान कितनी सांसत में होती थी उस समय, ये आज सोच कर हँसी भी आती है…
कुछ बड़ा होने पर मैंने जाने किस अन्तःप्रज्ञा अथवा सहज बुद्धि के कारण डर से जीतने का मन बना लिया…. मुझे अच्छी तरह याद है कि जब भी मुझे कुंए या ऊंचाई से गिरने जैसे सपने आते… मैंने उसे ध्यान से देखना और स्वीकार करना प्रारम्भ किया… अर्द्धचेतन अवस्था में मैंने अपने आपको कई बार गहरे कुँए में गिर जाने दिया और डरते हुए भी साहस कर के गिरते हुए देखता रहा… किसी साए के दिखने पर भी मैंने उसके प्रति हिम्मत से काम लेते हुए देखता रहता… लेकिन इसकी तैयारियां जागने के दौरान ही करता…कई बार तो प्रतीक्षा भी करता इस तरह के सपने आने की .. अपनी छत की तीन इंच चौड़ी मुंडेर पर कांपते पैरों से लेकिन सप्रयास  चलने  की कोशिश करता… जानबूझ कर छत से नीचे देखता रहता… या मन ही मन ऐसी परिस्थितियों से लड़ने की कोशिश करता … धीरे धीरे मुझमे  हिम्मत आती गयी और  इस तरह के सभी सपने आने पूरी तरह से बंद हो गए… अब तो  मुझे यदा कदा ही सपने आते हैं.. आज  किसी भी अँधेरे, भूत या ऊंचाई आदि के डर से एकदम मुक्त हूँ…. किसी भी अँधेरी सुनसान या भुतहा जगह पर आधी रात चले जाना मेरे लिए मामूली बात है… कई बार तो शर्त लगा कई किलोमीटर दूर  भयानक पुरानी खंडहर  मंदिरों में रात बारह एक बजे बेहिचक हो कर आया हूँ… पर अब मुझे इन सब से डर नहीं लगता कभी … यद्यपि सतर्कता और सावधानी के प्रति लापरवाह भी नहीं हूँ …. इस तरह के सपनों का कारण कहीं न कहीं असुरक्षा की भावना से सम्बंधित होती है … बच्चों के कोमल मन मे कब कैसी चीज़ें घर कर जाती हैं, माता पिता या परिवार जान भी नहीं पाता.. और न बच्चा उसे अभिव्यक्त कर पाता है … और अकेले घुटता है…  बचपन की ये भावनाएं और अनुभव पूरे जीवन उसके साथ चलते हैं और कहीं न कहीं उसके व्यवहार और सोच को प्रभावित करते हैं…
index इसी क्रम में मुझे छह सात वर्ष पुरानी एक सत्य घटना याद आती है… जब मेरा साक्षात्कार एक भटकती आत्मा से हुआ… मुझे गाज़ियाबाद आये हुए कुछ ही वर्ष हुए थे … बिजली पानी  की चौबीस घंटे सुविधा को देखते हुए मैंने किराए पर न रह कर विभागीय आवास में ही रहना ठीक समझा… मेरा उक्त  आवास अन्य आवासों से हट कर है दोनों ओर घास के लान और किचेन गार्डन के लिए जगह होने के कारण अलग थलग सा लगता है… उस दिन पहली बार मै अपना कम्प्युटर(डेल का पेंटियम-3) खरीद कर लाया था… नए कम्प्युटर के प्रति उत्सुकतावश मै बाहर वाले कमरे में खिड़की के पास कम्प्युटर ले कर बैठा था… घर में सब सो गए थे … कम्प्युटर पर आँखें गड़ाए हुए मुझे रात काफी देर हो गयी थी…  बाहर की लाईट खराब होने के कारण धुप अँधेरा पसरा हुआ था … मै खिड़की के एकदम पास बैठा था … अचानक मुझे ऐसा लगा जैसे कोई मेरी खिड़की पास से दबे पाँव गुज़रा हो…. पहले तो मैंने नज़रंदाज़ कर दिया कि मेरा वहम हो सकता है …. आधे मिनट में ही खिड़की की मच्छर जाली से बाहर किसी की साँसों की आवाज़ सुनाई दी ….. और फिर से कोई दबे पाँव खिड़की को पार कर गया … अंदर लाईट जल रही थी … इस लिए बाहर के अँधेरे में कुछ भी नहीं दिख रहा था …. मैंने कम्प्युटर से नज़र हटाये बिना उस आहट के प्रति सजग हो गया था….आहट इतनी स्पष्ट थी कि एक बार तो मेरे शरीर में झुरझुरी सी दौड़ गयी … मैंने उसी समय उस आहट से निपटने का मन बना लिया …. धीरे से उठा और अंदर की लाईट बंद कर ली … जिससे मेरी किसी हरकत का पता बाहर वाले को न लगे …. अंदर अँधेरा होने पर मै उठा और दरवाजे तक दबे पाँव गया… चटकनी हौले से खोला और अचानक दरवाजा खोल कर बाहर आ गया … बाहर धुप अँधेरा फैला था … ऊपर से कम्प्युटर स्क्रीन पर घंटों आँखें गड़ाए होने के कारण  आँखों के आगे चमकीला धब्बा सा बन गया था,…. मै कुछ भी नहीं देख पा रहा था … चूंकि आहट आवास के बगल वाली तरफ की खिड़की के पास थी इस लिए मै अँधेरे में अपनी आँखे फाड़े बगल के कनेर के पेड़ के झुरमुट हटाते हुए गौर से देखने का प्रयास किया…. आप यकीन मानिए जो मंज़र था उसे देख कर कोई भी कमज़ोर दिल का इंसान गश खा कर गिर सकता था … मुझे हल्का हल्का दिखने लगा था … मैंने देखा कि बड़े बड़े खुले बाल कन्धों पर बिखराये … कुर्ते पायजामे में एक साया दीवार से सटा…. दीवार के मोड़ के कोने में चुपचाप दोनों हाथ ऊपर उठाये खड़ा था … इतना देखते ही एक बार तो जैसे बिजली सी कौंध गयी पूरे शरीर में … सेकेण्ड के पौने हिस्से में एक एक रोम सिहर गया … पर अगले ही पल मैंने अपने आपको सम्हाला और उसके थोड़ा और नज़दीक गया … और डाट कर पूछा … “कौन है वहाँ?” ………साया अब भी बिना  हिले डुले चुपचाप  बुत की तरह खड़ा था… मै एक दो कदम और आगे बढाए और फिर चीख पर पूछा “कौन है उधर?”….. अब मेरी और उसकी दूरी पांच फिट की रही होगी…. अचानक साया उछला और मेरे एकदम पास आ कूदा और मेरी आँखों में घूरते हुए स्त्री आवाज़ में बोला… “मै भटकती आत्मा हूँ” … अब आप अंदाज़ा लगाइए कि ऐसी स्थिति में एक इंसान की क्या हालत हो सकती है…. मै भी उसी फुर्ती से एक कदम पीछे हटते हुए अपने आप को हर परिस्थिति से निपटने के लिए तैयार कर चुका था … मैंने फिर पूछा “यहाँ क्यों आई हो” … आत्मा मुझे पहले की तरह घूरती रही … फिर रहस्यमय आवाज़ में बोली …. मेरे गुरु का आदेश था … मै इधर से गुजर रही थी … पेड़ की पत्तियां छूते ही मुझे पता चल गया कि कमरे में कुछ हो रहा है …. उसके इतना बोलने तक मै अपने आपको सम्हाल चुका था …. और फिर आगे बढ़ा और आत्मा की कलाई पर अपने पंजे जकड़ दिए …. लगभग घसीटते हुए उसे झाडियों में से आवास के सामने ले आया जहाँ इतनी रौशनी थी कि गौर से कुछ देखा जा सके … देखा तो पाया कि इस भटकती आत्मा की  उम्र लगभग पच्चीस से तीस साल की रही होगी …. सफ़ेद कुरता पायजामा, गंदे और बिखरे हुए बाल के साथ साथ खड़ी और अच्छी हिंदी में वार्तालाप करती हुई आत्मा के बारे में तय हो चुका था कि ये फिलहाल इंसानी शरीर ही है … उसके बाद मै जो कुछ पूछता उसका ऊल जलूल उत्तर देती … मुझे जाने क्यों झुंझलाहट में क्रोध आया और मैंने झन्नाटेदार एक तमाचा उसके गाल पर रसीद कर दिया (जिन्होंने खाया है वो कहते हैं मेरा एक तमाचा कई मिनट के लिए सुन्न कर देने के लिए काफी होता है) … तमाचा खा कर काफी देर तो उसकी आँखों के सामने अँधेरा छा गया… और फिर जब बोली तो कुछ इस दुनिया जैसे अंदाज़ में …. मैंने अब भी उसकी कलाई जोर से पकड़ रखी थी …. कुछ सोच कर उसे रौशनी में देखने के लिए उसे  लगभग दो सौ फिट दूर गैया वाली आंटी के घर के सामने तक ले गया… आंटी बाहर ही सो रही थीं … मेरे बुलाने पर बाहर की लाईट जलाई तो वो भी अचंभित हो गयीं कि रात दो बजे मेरे साथ ये कौन थी … फिर पूछताछ का दौर चला …. आत्मा जी अच्छी खासी हिंदी बोल रही थी … बीच बीच में अंग्रेजी के शब्द… कम्प्युटर वगैरह की भी जानकारी थी उसे  …  नाम भी कुछ अच्छा सा बताया था उसने… इंदौर की रहने वाली थी …. उसने बात चीत के दौरान कई बार आंटी से पूछा कि बताओ इसने मुझे मारा क्यों ?  मैंने इसे छेड़ा था?, या इसे आँख मारी थी, मै तो कम्प्युटर देख रही थी…देखो मेरी पेशाब निकल गयी है …
scary अब स्पष्ट हो चुका था कि उस लड़की का मानसिक संतुलन ठीक नहीं था … यह जान लेने पर मुझे भी अपने ऊपर ग्लानि होने लगी …. उसे समझाने बुझाने का प्रयास भी किया लेकिन वो तो अपनी धुन में थी … मैंने सोचा उसे पुलिस के हवाले कर दूँ …हो सकता है किसी की बेटी हो अपने घर पहुच जाय … लेकिन उसने बताया पुलिस वाले ही तो उसे लाये हैं यहाँ … मेरे लाख कहने के बावजूद आंटी ने मुझे उसे छोड़ने नहीं जाने दिया और खुद ही हाथ पकड़ कर उसे कालोनी के मेन गेट के बाहर छोड़ आईं …
मै घर लौट आया …. पत्नी बच्चे घटना से अनभिज्ञ सो रहे थे … मुझे भी सोचते हुए कब नींद आ गयी पता नहीं… सुबह देर से उठा तो कालोनी और उस से बाहर तक चर्चा फ़ैल गयी थी …. रात मोहल्ले मे चुड़ैल घूम रही थी… किसी ने कहा मेरा दरवाजा खटखटाया… किसी ने कहा मेरे घर प्याज रोटी मांग रही थी … जितने मुँह उतनी तरह की बातें …. पर मुझे अब भी ग्लानि होती है कि किसी की बेटी इस तरह से बेसहारा घूम रही थी… मै प्रयास करता तो शायद उसके घर तक पहुंचा सकता था  ….

अजब गज़ब का सोफ्टवेयर (तकनीकी पोस्ट)


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computer-animated लीक से फिर हटते हुए आज इंटरनेट की एक  तकनीक “रिमोट सपोर्ट" से सम्बंधित एक अच्छे सोफ्टवेयर  पर बात करना चाहता हूँ… अगर कभी  हजार किलोमीटर दूर से  आपके किसी मित्र का फोन आये कि यार मेरी तबियत ठीक नहीं है मै बोलता हूँ तुम मेरी एक पोस्ट टाइप कर दो जरा, या ..मै सोने जा रहा हूँ .. मेरी रचना पढ़ कर कम्प्युटर बंद कर देना, या … जरा मुझे सिखाना कि नया ब्लॉग कैसे बनाते हैं और कैसे सजाते हैं इसे.. तो कोई कह सकता है कैसे संभव है ये सब… हज़ार किलोमीटर से कैसे संभव है ?.. लेकिन ये सब संभव किया है एक सोफ्ट वेयर ने जिसके बारे में आपको भी बताना चाहता हूँ ..
img3 मेरे आफिस और मेरे जानने वाले मित्र और रिश्तेदार मुझे कम्प्युटर  का जानकार मानते हैं …कई तो मुझे गलत फहमी में कम्प्युटर  इंजीनियर मानते है, :-) …   कम्प्युटर ही  नहीं किसी भी तरह की तकनीकी जानकारी जैसे मोबाइल,कार, या बिद्युत उपकरण आदि खरीदने से पहले मेरी सलाह लेना बेहतर समझते हैं… जबकि सत्य यह है कि मेरे पास किसी तरह की तकनीकी डिग्री नहीं है…सिर्फ पन्द्रह दिन कम्प्युटर सीखने गया हूँ कभी ग्यारह साल पहले …. प्रैक्टिकल करने का नम्बर आता इससे पहले ही छोड़ दिया… लेकिन मुझे किसी भी तकनीक के बारे में जानने की उत्सुकता ने मुझे बहुत कुछ सीखने में मदद की …और जो कुछ जानता हूँ किसी को हेल्प करने को हमेशा तत्पर रहता हूँ…
कई मित्र पहले मुझसे किसी कम्प्युटर की समस्या के सम्बन्ध में फोन पर पूछते तो फोन पर किसी प्रक्रिया को बताने में बहुत परेशानी होती थी …. और मुझे यह भी पता नहीं चलता कि उधर बैठा मित्र वास्तव में कैसे मेरी बात समझ रहा है ….इसी बीच मुझे एक सोफ्टवेयर मिला जिसने मेरी इस तरह की तमाम परेशानियों का हल दिया .. आज आपको इसी सोफ्टवेयर के बारे में बताना चाहता हूँ …’
teamviewer
ये सोफ्टवेयर है “टीम व्यूअर” … टीम व्यूअर अपने आप में दूर बैठ कर कम्प्युटर सपोर्ट और अभिव्यक्ति का बहुत अच्छा और उपयोगी सोफ्टवेयर है … इस सोफ्टवेयर की खास बात है कि इसके माध्यम से आप लाखों किलोमीटर दूर भी बैठ कर किसी के कम्प्युटर पर हो रही हर हलचल को तत्काल देख सकते हैं…जैसे आप उसी कम्प्युटर पर बैठे हों … कुछ बिंदु इस सोफ्टवेयर के बारे में और -
  1. दुनिया के किसी कोने में बैठ कर आप किसी मित्र के कम्प्युटर पर चल रही गतिविधि को अपने स्क्रीन पर  लाइव देख सकते हैं,
  2. दूर अपने किसी मित्र को अपने कम्प्युटर पर हो रही हर हलचल को तत्काल(लाइव) दिखा सकते हैं. इसमें लाइव प्रेजेंटेशन या फोटो फिल्म कुछ भी हो सकता है …  
  3. दूर बैठ कर किसी मित्र के कम्प्युटर को आप ऐसे ही आपरेट कर सकते हैं जैसे आप अपना कम्प्युटर यूज कर रहे हों. दूर बैठ कर अपने मित्र के कम्प्युटर को निर्देश दे सकते हैं और हर तरह की सपोर्ट दे सकते हैं.
  4. इसके माध्यम से किसी मित्र या पार्टनर से लाइव वोइस चैट अथवा वीडियो चैट कर सकते हैं
  5. अपने कम्प्युटर का नियंत्रण किसी मित्र को दे सकते हैं, अथवा किसी मित्र कम्प्युटर का नियंत्रण अपने हाथों में ले सकते हैं.
  6. अपने कम्प्युटर से मित्र के अथवा मित्र के कम्प्युटर से अपने कम्प्युटर पर किसी फ़ाइल को ट्रांसफर कर सकते हैं … इतनी आसानी से जैसे आप अपने कम्प्युटर पर एक जगह से दूसरी जगह फ़ाइल ट्रांसफर करते हैं
  7. वेबकैम और हेडफोन आदि के साथ आप साथ साथ  बैठ कर एक ही कम्प्युटर पर किसी कार्य को करने जैसा सुखद एहसास पा सकते हैं.
  8. दुनिया के किसी कोने में बैठ कर आप पहले से निश्चित परमानेंट पासवर्ड के द्वारा अपना कम्प्युटर ऐसे आपरेट कर सकते हैं जैसे सामने ही बैठे हों.
वैसे तो ये सोफ्टवेयर कामर्शियल यूज़ के लिए है और तय मूल्य दे कर क्रय किया जाता है. किन्तु व्यक्तिगत प्रयोग के लिए सोफ्टवेयर एकदम मुफ़्त है जिसे यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं…
Capture डाउनलोड करने पर जब इसे चलाएंगे तो आपको नीली स्क्रीन दिखेगी जिसपर आपका आईडी और पासवर्ड दिखेगा आईडी आपकी परमानेंट होगी लेकिन पासवर्ड हर बार बदल जाता है (यदि आप चाहें तो सेटिंग में अपना पासवर्ड भी एक ही सेट कर सकते हैं). किसी मित्र जिसके कम्प्युटर पर भी टीम व्यूअर चल रहा हो इस आईडी और पासवर्ड के जरिये लगभग हर तरह से सूचनाओं का आदान प्रदान कर सकते हैं अथवा अपने या उसके कम्प्युटर का नियंत्रण एक दुसरे को दे सकते हैं …
टीम व्यूअर डॉट कोम् पर साइनअप कर के आप अपने मित्रों और पार्टनर्स की लिस्ट भी  बना सकते हैं जिसमे उनका आईडी आदि सुरक्षित रख सकते हैं …और जब चाहें आमने सामने मिलिए अपने मित्रों से,…
किसी भी तरह की यथासंभव सहायता के लिए तत्पर …
शुभकामनाओं सहित आपका पद्म सिंह
टीम व्यूअर आईडी- 148 946 444
(यद्यपि बहुत से मित्र इसके बारे में जानते होंगे लेकिन ये उनके लिए है जो इसके बारे में नहीं जानते… नए ब्लोगर्स अथवा कम्प्युटर इस्तेमाल करने वालों को सपोर्ट करने के लिए सोफ्टवेयर उपयोगी हो सकता है.)

हंसना मुस्काना खुश रहना झूठा लगता है

हंसना मुस्काना खुश रहना झूठा लगता है

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Capture1233

हंसना मुस्काना खुश रहना झूठा लगता है

जैसे कोई सपना थक कर टूटा लगता है

महल चुने, दीवारें तानी चुन चुन जोड़ा दाना पानी

लाखों रिश्तों में अपनी सूरत ही लगती है अनजानी

कर्तव्यों की कारा में मन का पंछी बिन पंख हो गया

अनजाने अनचाहे पथ पर चलते जाना भी बेमानी

मन उपवन का नकली हर गुल बूटा लगता है

हंसना मुस्काना खुश रहना झूठा लगता है


सोने की दीवारें भी बंदी की पीर न हर पाती हैं

यादों की दस्तक पर, अनजाने आँखें भर आती है

पीछे मुड़ कर देखो तो कल अभी अभी सा लगता है

आगे जीवन के दीपक की बाती चुकती जाती है

आईने का मंजर लूटा लूटा लगता है

हंसना मुस्काना खुश रहना झूठा लगता है

जीने का पाथेय चुकाना होता है हर धड़कन को

साँसे देकर पल पल पाना होता है जीवन धन को

जीना भी व्यापार हुआ पाना है तो देना भी है

जैसे तैसे समझाना पड़ जाता है पागल मन को

ऊपर वाले का भी खेल अनूठा लगता है

हंसना मुस्काना खुश रहना झूठा लगता है

आज़ाद पुलिस (संघर्ष गाथा –३)


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ब्लॉगिंग केवल आभासी नहीं रह गयी है, इस बात का अनुभव मुझे उसी दिन से हो गया था जिस दिन मैंने अपनी पोस्ट “आज़ाद पुलिस” लिखा… पोस्ट नीरस थी और किसी के व्यक्तिगत
जीवन को प्रभावित नहीं करती थी इस लिए प्रतिक्रियाएँ भले ही कम मिलीं हों .. लेकिन जो भी प्रतिक्रियाएँ मिलीं वो मेरी पोस्ट और लेखन को सार्थक करने के लिए पर्याप्त थी. पोस्ट पढ़ कर यूँ तो कई लोगों की प्रतिक्रियाएँ आईं लेकिन इस सम्बन्ध में श्री जय कुमार झा जी की मेल मुझे लगातार आती रही…उन्होंने बार बार ब्रह्मपाल जी से मिलने की उत्कट इच्छा व्यक्त की … कई बार मोबाइल पर बात चीत होने के बाद दिनांक18/07/2010 को ब्रह्मपाल जी से मुलाकात करने की बात तय हो गयी …झा जी नरेला से आ रहे थे .. तय समय पर मैंने उन्हें आनंद विहार बस अड्डे से लिया और ब्रह्मपाल से मिलने निकल पड़े…  यहाँ मै यह उल्लेख भी करना चाहता हूँ कि श्री जय कुमार झा जी hprd से जुड़े हुए हैं और ईमानदारी और मानवता के प्रति कृतसंकल्प हैं … दिल्ली ब्लॉगर मीट में जो लोग रहे होंगे वो मिल चुके होंगे …  गर्मी इतनी भीषण, कि दोनों ही पसीने से पूरे के पूरे भीग    चुके थे… और आधे घंटे में हम ब्रह्मपाल जी(आज़ाद पुलिस) के पास थे ..
P180710_12.24ब्रह्मपाल जी हमें गली के बाहर ही मिल गए और अपने साथ अपने आशियाने ले गए… आशियाने के नाम पर नंदग्राम के बरात घर का बरामदा था, जहाँ उनका परिवार काफी दिनों से रहता है… बरात घर में घुसते ही आज़ाद पुलिस के पोस्टर बैनर आदि देख कर सहज ही अनुभव होता है कि ब्रह्मपाल जी अपने कार्यों के लिए कितने समर्पित हैं…. बाहर ही बोर्ड लगा था तिरंगा गुटखा राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करता है … जब हम खुले पड़े बरात घर के हाल में पहुंचे तो ब्रह्मपाल जी ने जमीन पर ही चटाई बिछा कर हमारा स्वागत किया (कुल दो प्लास्टिक की कुर्सियों में एक ही की चारों टाँगें सलामत थीं)… चटाई बिछा कर हम दोनों बैठ गए … ब्रह्मपाल जी ने मना करते हुए भी कोल्ड ड्रिंक आदि की व्यवस्था की P180710_11.59_[02]जय कुमार जी ने ब्रह्मपाल जी से उनके बारे में पूछना प्रारम्भ किया… झा जी ने ब्रह्मपाल के पारिवारिक जीवन, उनके संघर्ष से लेकर उनके अंतर्मन तक की थाह ली … जैसे जैसे पूछते गए हमारे सामने टिन के बक्से में से पेपर कटिंग और सरकार को अव्यवस्था और भ्रष्टाचार के लिए लिए लिखे गए पत्रों, फोटो, और पेपर कटिंग्स का अम्बार लगता गया …कहीं पुलिस की नाकारा व्यवस्था के खिलाफ धरने की बातें, कहीं जिलाधिकारी के आफिस पर ताला जड़ते हुए … कहीं सरकार की नीतियों के विरोध स्वरुप विकास P180710_12.22_[01] के दावे करते पोस्टरों पर कालिख पोतते हुए गिरफ्तारी देते हुए तो कभी पल्स पोलियो की सफलता के लिए अपने रिक्शे सहित स्कूली बच्चों की अगुवाई करते हुए ब्रह्मपाल जी की फोटुओं और पेपर कटिंग्स का अम्बार हमारे सामने था… शिकायत पत्रों की भाषा भले उतनी सटीक न रही हो पर भावना और संकल्प कूट कूट कर दिख रही थी एक एक कटिंग और पत्रों में  और सच कहें तो हमें इतना कुछ देखने सुनने में भी पसीने छूट रहे थे…
P180710_12.01 इसी बीच मोहल्ले के एक सज्जन और आज़ाद पुलिस के सक्रिय सहयोगी श्री मनोज जी (चित्र में सफ़ेद शर्ट में) भी हमसे मिलने आये और अपनी सोच और आगे की योजनाओं के बारे में बात की …आज़ाद पुलिस की सोच यह है कि अगर समाज का हर व्यक्ति समाज के उत्थान के लिए खुद पहल करे तो शायद कोई कारण नहीं कि परिवर्तन न हो कर रहे …. आज पुलिस और प्रशासन बहुत से दबावों के अधीन कार्य करती है … चाहे वो उच्च अधिकारी हो, अथवा नेताओं की जमात हो … इसी को चुनौती देते हुए आज़ाद पुलिस की सोच का उदय होता है … “आज़ाद पुलिस” जो हर इंसान हो सकता है … जो भी अपने सामाजिक परिवेश के प्रति सजग है … उसके सुधार के लिए पहल कर सकता है … वो ही  समाज का रखवाला है… आज़ाद पुलिस है … जिसपर किसी नेता या अधिकारी का दबाव नहीं होता …  “हर वो व्यक्ति आज़ाद पुलिस है जिसमे अपने देश समाज की रक्षा करने का जज्बा और संकल्प हो”
P180710_12.20_[01] जय कुमार झा जी ने मुझे जाते हुए बताया  था कि hprd किसी भी व्यक्ति को अपने स्तर से जांच करने के बाद ही मान्यता देता है इस लिए मुझे ठीक से इस व्यक्ति की मंशा और ईमानदारी  की जांच करनी होगी … और अंततः झा जी ने आश्वस्त होते हुए http://hprdindia.org/ की ओर से ब्रह्मपाल जी को एक प्रशस्ति पत्र और 500/- का अनुदान प्रदान किया … और आश्वासन दिया कि ब्रह्मपाल जैसे लोगों के लिए हम हमेशा कृतसंकल्प हैं और रहेंगे …
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ब्रह्मपाल जी हमसे मिल कर बहुत खुश लग रहे थे और बोलते हुए भावुक हो उठे कि पन्द्रह वर्षों में पहली बार आपकी तरह कोई बैठ कर मेरी बातें सुनने आया है मेरे पास … बीच में कई लोग जुड़े भी लेकिन खोखले आश्वासन के अलावा आजतक कुछ नहीं मिला कभी … अब मुझे कुछ मिले न मिले लेकिन इतना तो संतोष है कि मेरी बात किसी के कानों तक पहुंची तो सही ….अभी तो बहुत कुछ और बताने और दिखाने को था आज़ाद पुलिस के पास …हजारों पत्रों की प्रति और रिक्शा चला कर कमाए हुए पैसे से सैकड़ों रजिस्ट्रियों की रसीद  देख कर कोई इस इंसान को जुनूनी ही कहेगा… चिट्ठियों और पेपर कटिंग्स से भरी दूसरी गठरी खोलने से पहले ही हमने उन्हें मना कर दिया और आगे भी  मिलते जुलते रहने का आश्वासन दिया …
P180710_12.23_[01] हम लोगों ने आगे की योजनाओं के बारे में भी बहुत सी बातें कीं… कि किस तरह से कौन से मुद्दे पर किस स्तर का संघर्ष किया जाए … समाज के सीधे सादे और ईमानदार लोगों पर अत्याचार और अन्याय के लिए लड़ाई में धार कैसे लाई जा सकती है … हर संघर्ष के लिए धन की जरूरत होती है … इसके लिए जनता के सहयोग से एक फंड की स्थापना की जरूरत पर भी विचार किया गया जिस से पुलिस और प्रशासन से परेशान सीधे सादे लोगों का यथा योग्य सहयोग किया जा सके …
P180710_12.25 जय कुमार झा जी के साथ आज़ाद पुलिस से मुलाक़ात करना बहुत सुखद रहा … हम दोनों पसीने से भीग चुके थे …  हमने ब्रह्मपाल जी के साथ एक फोटो खिंचवाने और भविष्य में अन्य सकारात्मक संघर्षों में साथ रहने के आश्वासन के बाद विदा ली .. जाते जाते ब्रह्मपाल जी के आग्रह पर तीनों ने एक साथ फोटो भी खिंचवाई ..
इतनी भीषण गर्मी के बावजूद  ब्रह्मपाल के पास एक अदद टेबल फैन तक नहीं था … अन्य किसी सुविधा की क्या बात करना … जमीन पर सोना, अपने दो बेटों और पत्नी के साथ …. एक अदद रिक्शा ही जीविका और संघर्ष दोनों के लिए आर्थिक श्रोत है … अन्य कहीं से कोई सहायता नहीं मिली कभी … हाँ अगर कुछ है ब्रह्मपाल जी के पास तो वो है भ्रष्टाचार और शासन की लापरवाही के विरूद्ध लोहा लेने की उत्कट इच्छा शक्ति और परमार्थ कुछ कर गुजरने का जूनून …
P180710_12.20_[02]आम इंसान के हित में किसी भी प्रकार के सहयोग के लिए ब्रह्मपाल के नम्बर 09654829179  या मेरे नम्बर –9716973262 पर संपर्क कर सकते हैं …
किसी भी तरह के सहयोग के सम्बन्ध में इस पर मेल करना न भूलें …
azadpolice@gmail.com

आज़ाद पुलिस (संघर्ष गाथा-२)

गतांक से आगे –
निर्दोष ब्रह्मपाल लखनऊ की आठ महीने पन्द्रह दिन की जेल काट कर आया तो उसका मन प्रशासन और पुलिस के भ्रष्टाचार के प्रति विरक्ति से भर गया था… जेल मे रह कर उसने जो कुछ भी देखा सुना उसने उसे पुलिस के प्रति मानसिक रूप से विद्रोही बना दिया… लेकिन एक गरीब कर भी क्या सकता था … बूढ़ी माँ की जिद पर उसने ब्रह्मवती से विवाह कर लिया. और आजीविका के लिए मजदूरी करने लगा… मजदूरी कर के कुछ पैसे जुटाए और अपने लिए एक रिक्शा ले लिया और परिवार सहित हापुड कोतवाली मे डेरा डाल दिया … वहाँ भी इसने अपने साथ हुए अत्याचार के लिए न्याय मांगने के लिए जद्दोज़हद करता रहा… लेकिन उसे कभी दुत्कार तो कभी पुलिस हवालात तो कभी लात घूंसे भी खाने पड़े …  न्याय पाने के लिए उसने जिलाधिकारी,पुलिस अधीक्षक से लेकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल तक के सामने अपनी बात रखी लेकिन न् तो मामले की जाँच हुई और न् ही कोई कार्यवाही हुई… दूसरी क्लास तक पढाई करने के बावजूद ब्रह्मपाल मे लेखन की प्रतिभा और समाज के प्रति समर्पण की भावना कूट कूट कर भरी होने के कारण उसने पुलिस की कार्य प्रणाली के सम्बन्ध मे अधिकारियों को हजारों पत्र लिखे…लेकिन कोई हल नहीं निकला … आज वो अपने साथ हुए अन्याय की उम्मीद छोड़ चुका है… आज उसकी एक ही मांग है कि प्रशासन को लिखे गए उसके सारे पत्र वापस कर दिए जाएँ …

लचर पुलिस व्यवस्था के विरूद्ध  संघर्ष -

अपने साथ हुए अत्याचार का कोई न्याय मिलते न देख ब्रह्मपाल ने पुलिस  प्रशासन के प्रति विरोध का अनूठा तरीका अपना लिया … रिक्शा ही उसकी आजीविका का एक मात्र साधन था… उसने एक दिन खुद ही पुलिस की वर्दी पहन ली … और रिक्शे पर आज़ाद पुलिस के बोर्ड लगा लिए… अपने आपको आज़ाद पुलिस के रूप मे इस लिए बदल लिया कि इस पुलिस के पास नेताओं या अधिकारियों का कोई दबाव नहीं है ..आज़ाद पुलिस भ्रष्टाचार के प्रति बिना किसी लाग लपेट के लड़ाई जारी रखेगी … उसने रिक्शा चलाते हुए भी पुलिस का वेश धारण कर लिया और अपने कमाए पैसों से चालान बुक छपवा ली …
अब उसका मिशन है कि रिक्शा चलाते हुए जहाँ भी पुलिस के लोगों को अपनी ड्यूटी से दूर खड़े होते, नशे मे ड्यूटी करते, रिश्वत लेते,या बिना टोपी डंडे के ड्यूटी देते देखता है तुरंत रुक कर पुलिस वाले का चालान काट देता है … और चालान पर नाम सहित कमियों के उल्लेख करने के साथ साथ उस पुलिस वाले से चालान पर हस्ताक्षर भी ले लेता है … हस्ताक्षर न देने पर बवाल खड़ा कर देता है…
जिससे फजीहत के डर से पुलिस वाला हस्ताक्षर कर अपना पिंड छुड़ाता है … और ये चालान एक दो दिन मे एस एस पी आफिस मे बाकायदा कार्यवाही की प्रार्थना के साथ जमा करवा दिया जाता है … ऐसे मे भले पुलिस वाले पर कोई गंभीर कार्यवाही भले न हो लेकिन उसकी फजीहत होना तय  है …  और इसी लिए पुलिस वाले भी उसको देखते ही “राईट-टाइट” हो जाते हैं … जिस पुलिस वाले ने हेलमेट न पहना हो, जिसकी गाड़ी के प्रपत्र पूरे न होँ, या  तिहरी सवारी कर रहे होँ उनका चालान कटना तय है …
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उसका मिशन है कि जिस भ्रष्टाचार और अत्याचार का वो शिकार हुआ है…उसका शिकार कोई और गरीब न हो  इसके लिए उसका यथा-शक्ति संघर्ष लगातार चलता रहता है …
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जहाँ भी उसे लगता है कि व्यवस्था मे कुछ गलत हो रहा है उसके बारे मे प्रशासन को सचेत करने के लिए चिट्ठियाँ लिखना … सरकार की नीतियों के खिलाफ विकास के झूठे साइन बोर्डों पर कालिख पोतना, और अपने तरीके से विरोध दर्ज करवाना उसका रोज़ का काम है … इस सब के कारण अक्सर हवालात की हवा खाता रहता है …. कई बार तो बुरी तरह पीटा भी जाता है…इसी क्रम मे कुछ दिन पहले गाज़ियाबाद कलेक्ट्रेट मे मुख्यमंत्री के विकास सम्बन्धी दावों वाले पोस्टरों पर कालिख पोतने के जुर्म मे कविनगर पुलिस द्वारा अपराध संख्या 371/2010 के अंतर्गत जेल मे निरुद्ध किया गया और उसका रिक्शा भी थाने मे बंद कर दिया गया था जहाँ से अभी कुछ दिन पहले छूट कर आया है….
काफी मशक्कत के बाद रिक्शा भी छूट गया है… और पूर्व की भांति उसका संघर्ष अनवरत चल रहा है … यहाँ यह उल्लेखनीय है कि ब्रह्मपाल मे न्याय न् मिलने से निराशा अवश्य है लेकिन उसका जूनून आज भी वही है … फर्क सिर्फ इतना है कि पहले उसकी लड़ाई अपने लिए थी और आज वो गरीब जनता के लिए संघर्ष कर रहा है ….

तिरंगा का अपमान -

पिछले काफी समय से “तिरंगा” ब्राण्ड के एक गुटखा कंपनी के विरुद्ध संघर्ष कर रहा है… इसके अनुसार किसी ऐसी चीज़ का नाम तिरंगा होना… या इस पर तिरंगा छापना राष्ट्रीय ध्वज तिरंगे का अपमान है… इस सम्बन्ध मे नगर मजिस्ट्रेट गाज़ियाबाद द्वारा उसके प्रार्थना पत्र के आधार पर पुलिस अधीक्षक गाज़ियाबाद को उक्त के सन्दर्भ मे गुटखा कंपनी के विरुद्ध नियमानुसार कार्यवाही करने के निर्देश दिए गए हैं (कैम्प/एस टी -सी एम/०९ दिनांक २९-०९-२००९) लेकिन न् तो अभी इसकी जाँच पूरी हुई है और न् ही गुटखा कंपनी के विरूद्ध कोई कार्यवाही की गयी है.

और कारवाँ बनता गया

शुरुआत मे जब ब्रह्मपाल इस तरह के विरोध के कार्य करता तो पुलिस के लोग और अधिकारी उसे सरफिरा कह कर या “मानसिक संतुलन ठीक नहीं है” कह कर टाल देते थे… लेकिन धीरे धीरे लोगों और पत्रकारों की उत्सुकता का केन्द्र बनता गया और ब्रह्मपाल के बारे मे ख़बरें छपने लगीं … इससे उसे जानने वालों मे इजाफा हुआ और कुछ समाज सेवी लोग ब्रह्मपाल से मिले और इसके अभियान मे साथ देने की इच्छा प्रकट की …इस तरह ब्रह्मपाल ने स्थानीय लोगों की मदद से “आज़ाद पुलिस वेलफेयर समिति” का गठन किया गया जिसका संस्थापक ब्रह्मपाल को  और अध्यक्ष श्री बी.एस.गौतम को बनाया गया …

आज़ाद पुलिस वेलफेयर समिति -

आज़ाद पुलिस वेलफेयर समिति बन जाने से ब्रह्मपाल को लोगों का समर्थन और अधिक मिलने लगा …उक्त समिति के तत्वाधान मे बहुत से सामाजिक कार्यक्रम आयोजित किये गए और किये जाते हैं  …इस समिति के माध्यम से दो अनाथ और  गरीब लड़कियों का विवाह करवाया गया … प्रति वर्ष सावन माह मे कांवड के मेले मे इस समिति के माध्यम से कांवडियों के लिए मुफ्त भंडारे का आयोजन किया जाता है …वृक्षारोपण के कार्य करवाए गए जिसका उदघाटन स्वयं सिटी मजिस्ट्रेट ने अपने हाथों से किया …..इसके अतिरिक्त पल्स पोलियो जैसे सरकारी
कार्यक्रमों को भी  सफल बनाने के लिए रैलियाँ निकाली गयीं जिसके पीछे ब्रह्मपाल का जूनून और अथक संघर्ष रहा है … इसके अतिरिक्त गुजरात मे आये भूकम्प पीड़ितों के लिए अथक परिश्रम कर के चंदा इकठ्ठा किया गया और गुजरात भेजा गया…. इसके अतिरिक्त और भी बहुत से कार्य समय समय पर किये जाते रहते हैं… इस सम्बन्ध मे ब्रह्मपाल का कहना है कि जब लोग बुराई का दामन नहीं छोड़ते तो मै अच्छाई का दामन कैसे छोड़ दूँ … लोग कहते हैं क्रम ही पूजा है… लेकिन ब्रह्मपाल का कहना है कर्म तो बुरे भी हो सकते हैं इस लिए “सत्कर्म ही पूजा है” सब से पहले सत्कर्मों की शुरुआत अपने आप से करो … फिर किसी से इसकी अपेक्षा करो… समिति ने पुलिस की छवि सुधारने के लिए राज्य के 70 जिलों के जिलाधिकार्यों को पत्र लिखा है और आवश्यक सलाह दी है … देखना है कि प्रशासन इसे कितनी गंभीरता से लेती है ब्रह्मपाल को सामाजिक कार्यों के लिए कई बार आंबेडकर जन्मोत्सव समिति द्वारा सम्मानित भी किया जा चुका है … आज जब कि वह प्रशासन से नाराज़ है , उसने पिछले पन्द्रह सालों मे प्रशासन को लिखे गए अपने पत्रों को वापस माँगा है …
उल्लेखनीय है कि समाज के बारे मे ऐसी बातें करने वाले ब्रह्मपाल के पास सर छुपाने की भी जगह नहीं है और खुले आसमान के नीचे ही अपना आशियाना बना रखा है… परिवार के नाम पर ब्रह्मपाल की पत्नी और दो बेटे हैं … जिन्हें कभी किसी बरामदे मे तो कभी खुले आसमान के नीचे ले कर रहता है … दिन भर रिक्शा चलाना और इसी कमाई से समाज सेवा करना कितना कष्टसाध्य कार्य है इसे एसी मे बैठे अफसरशाह कैसे और क्यों समझेंगे … लोक सेवक हमारी प्रशासनिक व्यवस्था के आधार स्तंभ हैं … लेकिन भ्रष्टाचार के दलदल मे इस कदर डूबे हैं कि उन्हें स्वार्थ के अतिरिक्त कुछ भी नहीं दिखाई देता है … अगर कोई अपवाद आता भी है तो धीरे धीरे इसी भ्रष्टाचार रुपी सागर मे समा जाता है … अगर कोई बच भी गया तो स्थानांतरण आदेश की प्रति हमेशा उसका पीछा करती रहती है … ऐसे मे ब्रह्मपाल जैसा जज़्बा एक आम आदमी के लिए सीख से कम नहीं है… उसका कहना है कि कामयाबी अपनी जगह है और प्रयास करना अपनी जगह … जीते जी मेरा प्रयास चलता रहेगा … १९८८ से अकेला प्रशासन से लड़ जाने वाला यह शख्स प्रधानमन्त्री,लखनऊ सचिवालय,जिलाधिकारी, पुलिस अधिकारी से लेकर राष्ट्रपति तक अकेला संघर्ष कर चुका है .. और आज भी अपने जज्बे पर कायम है …
ब्रह्मपाल का वर्मान पता :
ब्रह्मपाल सिंह
लेखक : आज़ाद पुलिस
बरात घर, खुले आसमान के नीचे
नन्द ग्राम गाज़ियाबाद … फोन :9811394513 (PP)
और अन्त मे …… ब्रह्मपाल के दस्तावेज़ और संघर्ष की कहानी की ये बानगी भर है … बहुत संक्षिप्त और मूल मूल बातें लिखते हुए दो पोस्टें भर गयी हैं …पाठकों के समर्थन पर थोड़ा और प्रकाश डालना चाहूँगा ब्रह्मप्रकाश की व्यथा पर … पद्म सिंह