बुधवार, 25 अगस्त 2010

आज़ाद पुलिस (संघर्ष गाथा –३)


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ब्लॉगिंग केवल आभासी नहीं रह गयी है, इस बात का अनुभव मुझे उसी दिन से हो गया था जिस दिन मैंने अपनी पोस्ट “आज़ाद पुलिस” लिखा… पोस्ट नीरस थी और किसी के व्यक्तिगत
जीवन को प्रभावित नहीं करती थी इस लिए प्रतिक्रियाएँ भले ही कम मिलीं हों .. लेकिन जो भी प्रतिक्रियाएँ मिलीं वो मेरी पोस्ट और लेखन को सार्थक करने के लिए पर्याप्त थी. पोस्ट पढ़ कर यूँ तो कई लोगों की प्रतिक्रियाएँ आईं लेकिन इस सम्बन्ध में श्री जय कुमार झा जी की मेल मुझे लगातार आती रही…उन्होंने बार बार ब्रह्मपाल जी से मिलने की उत्कट इच्छा व्यक्त की … कई बार मोबाइल पर बात चीत होने के बाद दिनांक18/07/2010 को ब्रह्मपाल जी से मुलाकात करने की बात तय हो गयी …झा जी नरेला से आ रहे थे .. तय समय पर मैंने उन्हें आनंद विहार बस अड्डे से लिया और ब्रह्मपाल से मिलने निकल पड़े…  यहाँ मै यह उल्लेख भी करना चाहता हूँ कि श्री जय कुमार झा जी hprd से जुड़े हुए हैं और ईमानदारी और मानवता के प्रति कृतसंकल्प हैं … दिल्ली ब्लॉगर मीट में जो लोग रहे होंगे वो मिल चुके होंगे …  गर्मी इतनी भीषण, कि दोनों ही पसीने से पूरे के पूरे भीग    चुके थे… और आधे घंटे में हम ब्रह्मपाल जी(आज़ाद पुलिस) के पास थे ..
P180710_12.24ब्रह्मपाल जी हमें गली के बाहर ही मिल गए और अपने साथ अपने आशियाने ले गए… आशियाने के नाम पर नंदग्राम के बरात घर का बरामदा था, जहाँ उनका परिवार काफी दिनों से रहता है… बरात घर में घुसते ही आज़ाद पुलिस के पोस्टर बैनर आदि देख कर सहज ही अनुभव होता है कि ब्रह्मपाल जी अपने कार्यों के लिए कितने समर्पित हैं…. बाहर ही बोर्ड लगा था तिरंगा गुटखा राष्ट्रीय ध्वज का अपमान करता है … जब हम खुले पड़े बरात घर के हाल में पहुंचे तो ब्रह्मपाल जी ने जमीन पर ही चटाई बिछा कर हमारा स्वागत किया (कुल दो प्लास्टिक की कुर्सियों में एक ही की चारों टाँगें सलामत थीं)… चटाई बिछा कर हम दोनों बैठ गए … ब्रह्मपाल जी ने मना करते हुए भी कोल्ड ड्रिंक आदि की व्यवस्था की P180710_11.59_[02]जय कुमार जी ने ब्रह्मपाल जी से उनके बारे में पूछना प्रारम्भ किया… झा जी ने ब्रह्मपाल के पारिवारिक जीवन, उनके संघर्ष से लेकर उनके अंतर्मन तक की थाह ली … जैसे जैसे पूछते गए हमारे सामने टिन के बक्से में से पेपर कटिंग और सरकार को अव्यवस्था और भ्रष्टाचार के लिए लिए लिखे गए पत्रों, फोटो, और पेपर कटिंग्स का अम्बार लगता गया …कहीं पुलिस की नाकारा व्यवस्था के खिलाफ धरने की बातें, कहीं जिलाधिकारी के आफिस पर ताला जड़ते हुए … कहीं सरकार की नीतियों के विरोध स्वरुप विकास P180710_12.22_[01] के दावे करते पोस्टरों पर कालिख पोतते हुए गिरफ्तारी देते हुए तो कभी पल्स पोलियो की सफलता के लिए अपने रिक्शे सहित स्कूली बच्चों की अगुवाई करते हुए ब्रह्मपाल जी की फोटुओं और पेपर कटिंग्स का अम्बार हमारे सामने था… शिकायत पत्रों की भाषा भले उतनी सटीक न रही हो पर भावना और संकल्प कूट कूट कर दिख रही थी एक एक कटिंग और पत्रों में  और सच कहें तो हमें इतना कुछ देखने सुनने में भी पसीने छूट रहे थे…
P180710_12.01 इसी बीच मोहल्ले के एक सज्जन और आज़ाद पुलिस के सक्रिय सहयोगी श्री मनोज जी (चित्र में सफ़ेद शर्ट में) भी हमसे मिलने आये और अपनी सोच और आगे की योजनाओं के बारे में बात की …आज़ाद पुलिस की सोच यह है कि अगर समाज का हर व्यक्ति समाज के उत्थान के लिए खुद पहल करे तो शायद कोई कारण नहीं कि परिवर्तन न हो कर रहे …. आज पुलिस और प्रशासन बहुत से दबावों के अधीन कार्य करती है … चाहे वो उच्च अधिकारी हो, अथवा नेताओं की जमात हो … इसी को चुनौती देते हुए आज़ाद पुलिस की सोच का उदय होता है … “आज़ाद पुलिस” जो हर इंसान हो सकता है … जो भी अपने सामाजिक परिवेश के प्रति सजग है … उसके सुधार के लिए पहल कर सकता है … वो ही  समाज का रखवाला है… आज़ाद पुलिस है … जिसपर किसी नेता या अधिकारी का दबाव नहीं होता …  “हर वो व्यक्ति आज़ाद पुलिस है जिसमे अपने देश समाज की रक्षा करने का जज्बा और संकल्प हो”
P180710_12.20_[01] जय कुमार झा जी ने मुझे जाते हुए बताया  था कि hprd किसी भी व्यक्ति को अपने स्तर से जांच करने के बाद ही मान्यता देता है इस लिए मुझे ठीक से इस व्यक्ति की मंशा और ईमानदारी  की जांच करनी होगी … और अंततः झा जी ने आश्वस्त होते हुए http://hprdindia.org/ की ओर से ब्रह्मपाल जी को एक प्रशस्ति पत्र और 500/- का अनुदान प्रदान किया … और आश्वासन दिया कि ब्रह्मपाल जैसे लोगों के लिए हम हमेशा कृतसंकल्प हैं और रहेंगे …
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ब्रह्मपाल जी हमसे मिल कर बहुत खुश लग रहे थे और बोलते हुए भावुक हो उठे कि पन्द्रह वर्षों में पहली बार आपकी तरह कोई बैठ कर मेरी बातें सुनने आया है मेरे पास … बीच में कई लोग जुड़े भी लेकिन खोखले आश्वासन के अलावा आजतक कुछ नहीं मिला कभी … अब मुझे कुछ मिले न मिले लेकिन इतना तो संतोष है कि मेरी बात किसी के कानों तक पहुंची तो सही ….अभी तो बहुत कुछ और बताने और दिखाने को था आज़ाद पुलिस के पास …हजारों पत्रों की प्रति और रिक्शा चला कर कमाए हुए पैसे से सैकड़ों रजिस्ट्रियों की रसीद  देख कर कोई इस इंसान को जुनूनी ही कहेगा… चिट्ठियों और पेपर कटिंग्स से भरी दूसरी गठरी खोलने से पहले ही हमने उन्हें मना कर दिया और आगे भी  मिलते जुलते रहने का आश्वासन दिया …
P180710_12.23_[01] हम लोगों ने आगे की योजनाओं के बारे में भी बहुत सी बातें कीं… कि किस तरह से कौन से मुद्दे पर किस स्तर का संघर्ष किया जाए … समाज के सीधे सादे और ईमानदार लोगों पर अत्याचार और अन्याय के लिए लड़ाई में धार कैसे लाई जा सकती है … हर संघर्ष के लिए धन की जरूरत होती है … इसके लिए जनता के सहयोग से एक फंड की स्थापना की जरूरत पर भी विचार किया गया जिस से पुलिस और प्रशासन से परेशान सीधे सादे लोगों का यथा योग्य सहयोग किया जा सके …
P180710_12.25 जय कुमार झा जी के साथ आज़ाद पुलिस से मुलाक़ात करना बहुत सुखद रहा … हम दोनों पसीने से भीग चुके थे …  हमने ब्रह्मपाल जी के साथ एक फोटो खिंचवाने और भविष्य में अन्य सकारात्मक संघर्षों में साथ रहने के आश्वासन के बाद विदा ली .. जाते जाते ब्रह्मपाल जी के आग्रह पर तीनों ने एक साथ फोटो भी खिंचवाई ..
इतनी भीषण गर्मी के बावजूद  ब्रह्मपाल के पास एक अदद टेबल फैन तक नहीं था … अन्य किसी सुविधा की क्या बात करना … जमीन पर सोना, अपने दो बेटों और पत्नी के साथ …. एक अदद रिक्शा ही जीविका और संघर्ष दोनों के लिए आर्थिक श्रोत है … अन्य कहीं से कोई सहायता नहीं मिली कभी … हाँ अगर कुछ है ब्रह्मपाल जी के पास तो वो है भ्रष्टाचार और शासन की लापरवाही के विरूद्ध लोहा लेने की उत्कट इच्छा शक्ति और परमार्थ कुछ कर गुजरने का जूनून …
P180710_12.20_[02]आम इंसान के हित में किसी भी प्रकार के सहयोग के लिए ब्रह्मपाल के नम्बर 09654829179  या मेरे नम्बर –9716973262 पर संपर्क कर सकते हैं …
किसी भी तरह के सहयोग के सम्बन्ध में इस पर मेल करना न भूलें …
azadpolice@gmail.com

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