रविवार, 3 जनवरी 2010

नज़र की भाषा अदाओं का गणित

रात थी चांदनी सुहानी भी
लब पे थी अनकही कहानी भी

दिल में थी पाक मोहोब्बत की महक
मन के कोने में बेईमानी भी

वैसे तो चेहरे पे सब लिक्खा है
कुछ तो ज़ाहिर करो ज़ुबानी भी

नज़र की भाषा अदाओं का गणित
हल भी करता हूँ तर्जुमानी भी

फिर नयी बात ने दिया नश्तर
यूँ तो भूली न थी पुरानी भी

रेत सी उम्र फिसलती जाए
और सुलझे नहीं कहानी भी

ये जो दुनिया से कह रहा हूँ मै
वो किसी खास को सुनानी थी

जोश-ओ-मस्ती,बुलंदी-ए-ख्वाहिश
वाह क्या चीज़ है जवानी भी


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1 टिप्पणी:

  1. नज़र की भाषा अदाओं का गणित
    हल भी करता हूँ तर्जुमानी भी
    बहुत उमदा रचना है बधाई

    जवाब देंहटाएं

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