शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

मालो जर हो तो मुत्तहिद रहना, प्यार हो गर तो फिर बिखर जाना

एक बार गुरु नानक साहब किसी गाँव से गुजर रहे थे अपने शिष्यों और अनुगामियों के साथ, रात होने के कारण उसी गाँव में डेरा डाल दिया ... गाँव वालों ने उनका बहुत विरोध किया और गालियाँ दी ... सुबह जब गुरुनानक जी उस गाँव से चलने को हुए तो उनहोंने गाँव वालों से कहा कि तुम सब यहीं इकट्ठे रहो, संगठित रहो... और आगे बढ़ गए, कुछ आगे फिर किसी रात को  एक गाँव में रुके.... गांव वालों ने नानक जी और उनके शिष्यों की बहुत सेवा की... जितना उनकी सामर्थ्य थी उतना किया .... सुबह जब नानक साहब फिर सफर पर निकलने लगे तो गाँव वालों को बुला कर कहा ..... जाओ तुम लोग बिखर जाओ ... किसी शिष्य ने ये सब देखा सुना और उत्सुकतावश पूँछ बैठा ... कि आपने ऐसा क्यों किया ? जिस गाँव वालों ने आपका इतना अपमान किया उनको तो आपने इकट्ठे रहने का आशीर्वाद दिया ... और जिस गाँव वालों ने आपकी इतनी सेवा सूश्रुषा की उनके लिए  आपने कहा कि ये गाँव उजड जाए ... लोग बिखर जाएँ ..  ये बात समझ से परे है .... कृपया स्पष्ट कर के कृतार्थ  करें ... गुरु नानक देव हँसे और बोले ... वो इस लिए, कि बुरे लोगों का एक जगह रहना ही ठीक है ... जबकि अच्छे और प्यारे इंसानों का पूरी दुनिया में बिखर जाना श्रेयस्कर है ... जिससे दुनिया में प्रेम और करुणा का प्रकाश फ़ैल सके ....


आज हर अच्छाई के लिए यही पुकार है कि समाज में फैले और धनात्मक उत्कर्ष में अपना योगदान दें ... न्याय, सच्चाई और अच्छाई का आत्मकेंद्रित और निष्क्रिय  होना बुराई को बढ़ावा देने जैसा ही  है ---

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आज आपको फिर  एक गज़ल दे रहा हूँ .... यद्यपि मै गज़ल लिखता नहीं ... लेकिन कवि को किसी सीमा में भी नहीं बंधना चाहिए इस लिए प्रयोग के तौर पर चंद अशरार आपकी नज़र है ....गज़ल का अंतिम शेर ऊपर के प्रसंग से प्रभावित है ...


उनसे   बिछड़े  तो  आज ये जाना

कितना मुश्किल है दिल को समझाना

 

दिल की किस्मत है टूट कर मिलना

और फिर  टूट  कर   बिखर जाना


सर तो कहता था प्यार मत करना

दिल  ही पागल  था जो नहीं माना

 

मंजिलें  खुद   झुकी  हैं  सजदे में

जब  से  अपनी  खुदी को पहचाना

 

फिर  कोई  काम  निकल  आया है

उसने  फिर  आज   मुझे  पहचाना

 

मै  जो  कहता  हूँ  तुझे  पी  लूंगा 

और   हँसता  है   मुझपे   पैमाना

 

आज   भूखा  है   पडोसी    मेरा

आज   मंदिर  मुझे   नहीं   जाना

 

प्यार  के  बोल  मुफलिसी  के लिए

जैसे  तिनके  का   सहारा    पाना

 

रास्ते   तो   हजार   मिलते   हैं

बड़ा   मुश्किल   है हमसफर पाना

 

मालो  जर  हो  तो  मुत्तहिद रहना

प्यार हो गर, तो फिर  बिखर जाना

 

मुफलिसी=गरीबी

माल-ओ-जर = धन दौलत

मुत्तहिद= इकठ्ठा, संगठित

 

Posted via email from हरफनमौला

1 टिप्पणी:

  1. मंजिलें खुद झुकी हैं सजदे में

    जब से अपनी खुदी को पहचाना

    वाह...वाह....बहुत खूब ....!!

    जवाब देंहटाएं

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