सोमवार, 3 मई 2010

हम हमेशा को एक हो जाएँ

एक पुरानी रचना दे रहा हूँ ... शुरूआती दौर की रचना है .... पता नहीं कैसी लगे आपको ....

चलो एक दूसरे में खो जाएँ
हम हमेशा को एक हो जाएँ

भटकती उम्र थक गयी होगी
नज़र पे धुंध पट गयी होगी
मन की दीवार से सुकून जड़ी
कोई तस्वीर हट गयी होगी
आओ अब परम शान्ति अपनाएँ
हम हमेशा को एक हो जाएँ

पहाड़ से उरोज धरती के
उगे हैं ज्यूँ पलाश परती के
बसे हैं सूर्य की निगाहों में
कसे है आसमान बाहों में
आओ हम मस्त पवन हो जाएँ
सारी दुनिया में प्रेम छितारायें

कई बादल झुके हैं घाटी में
शिशु सा लोट रहे माटी में
लगा है काजल सा अंधियारा
शाम की शर्मीली आँखों में
एक स्वर एक तान हो जाएँ
साथ मिल झूम झूम कर गायें
हम हमेशा को एक हो जाएँ


Posted via email from हरफनमौला

4 टिप्‍पणियां:

  1. कई बादल झुके हैं घाटी में
    शिशु सा लोट रहे माटी में
    लगा है काजल सा अंधियारा
    शाम की शर्मीली आँखों में
    एक स्वर एक तान हो जाएँ
    साथ मिल झूम झूम कर गायें
    हम हमेशा को एक हो जाएँ

    क्या लिखा है भई!
    कुछ कहिये न ??????
    कहूँ??????
    बादल शिशु सा लोट रहा माटी में???
    धुल धूसरित हो गया
    माँ हो रही है नाराज
    उसे भी मनाये
    खुद नही नहायेगा
    आओ अब पकड़ कर नहलाएं.
    काले बादलों पर जमी है धरती के धुँए और धुल की परत
    थोडा सा धोएं,पोंछे,चमकाएं
    मिलो मुझसे फिर इन बादलों के तले
    दो बनकर रहे हम तुम
    आओ आज एक हो जाएँ.

    कवि महोदय!
    भई आप जैसी कविता तो रचनी नही आती पर................... सराहना आता है. बहुत खूब लिखते हो

    जवाब देंहटाएं
  2. कई बादल झुके हैं घाटी में
    शिशु सा लोट रहे माटी में
    लगा है काजल सा अंधियारा
    शाम की शर्मीली आँखों में
    एक स्वर एक तान हो जाएँ
    साथ मिल झूम झूम कर गायें
    हम हमेशा को एक हो जाएँ

    क्या लिखा है भई!
    कुछ कहिये न ??????
    कहूँ??????
    बादल शिशु सा लोट रहा माटी में???
    धुल धूसरित हो गया
    माँ हो रही है नाराज
    उसे भी मनाये
    खुद नही नहायेगा
    आओ अब पकड़ कर नहलाएं.
    काले बादलों पर जमी है धरती के धुँए और धुल की परत
    थोडा सा धोएं,पोंछे,चमकाएं
    मिलो मुझसे फिर इन बादलों के तले
    दो बनकर रहे हम तुम
    आओ आज एक हो जाएँ.

    कवि महोदय!
    भई आप जैसी कविता तो रचनी नही आती पर................... सराहना आता है. बहुत खूब लिखते हो

    जवाब देंहटाएं
  3. "कई बादल झुके हैं घाटी में
    शिशु सा लोट रहे माटी में
    लगा है काजल सा अंधियारा
    शाम की शर्मीली आँखों में"

    अरे वाह, सुन्दर चित्रण..

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कुछ कहिये न ..