किसी शायर ने कहा है-
तूफां के बाद बहर बदस्तूर हो गया
टकरा के एक सफीना मगर चूर हो गया
अंततः तमाम फजीहत के बाद बाबा रामदेव ने अपना अनशन तोड़ दिया…आखिरकार सत्ता ने शक्ति और कूटनीति के दम पर जनता की आवाज़ का निर्ममता से गला घोंट दिया… सरकार अपने दंभ और हठधर्मिता के सारे स्तर पार करते हुए नौ दिन से अनशन करते हुए बाबा रामदेव के प्रति जैसी उदासीनता दिखाई उसने काँग्रेस सरकार की कुटिल मानसिकता और प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया…
यह इस देश की वही सर्वोच्च सत्ता है जो अपनी नाक के नीचे सैयद अली शाह गिलानी को भारत की एकता और अखंडता के खिलाफ़ विषवमन करने की अनुमति देती है और भारत माता की जय बोलने वाले एक निहत्थे समूह को विश्राम करते हुए आधी रात में पुलिसिया बर्बरता का शिकार बनाती है. यह वही तथाकथित सेक्युलर समूह है जिसका एक भाग बाटला हाउस मुठभेड़ में शहीद हुए इन्स्पेक्टर एम् सी शर्मा का साथ खड़े न होकर मारे गए आतंकवादियों से सहानुभूति प्रकट करता नज़र आता है और पाकिस्तान में अमेरिका के हाथों ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद उसके मजहबी मानवाधिकारों की रक्षा की माँग उठाता नजर आता है जबकि वहीँ वन्देमातरम का उद्घोष करने वाले भूखे प्यासे सो रहे अनशनकारियों पर आधी रात को आँसू गैस और लाठियों के दम पर दरबदर ठोकरें खाने के लिए खदेड़ दिया जाता है…और उसपर एक जिम्मेदार मन्त्री का बयान… कि हमने तो सुप्रभात में सबको जगाया था. उन्हीं मन्त्री जी के द्वारा आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को जी कह कर संबोधित किया जाता है और भगवाधारी राष्ट्रभक्त को ठग कह कर संबोधित किया जाता है.
प्रश्न उठता है कि एक दिन पहले तक जिस भगवाधारी बाबा से घबरा कर देश की सर्वोच्च सत्ता के चार कैबिनेट मिनिस्टर उसे एयरपोर्ट पर लेने और मनाने जाते हैं, बंद होटल में पाँच घंटे तक वार्ता करते हैं, समझौते करते हैं उसी बाबा को चकमा न दे पाने पार एक दिन बाद ही आयकर और प्रवर्तन निदेशालय जैसी सरकार की जितनी भी एजेंसियाँ हैं बाबा के पीछे लगा दी गयीं. ट्रस्ट और कंपनियों की स्कैनिंग करने के लिए निर्देश दे दिए गए… सूचना मंत्रालय द्वारा एडवाइजरी जारी करवा कर मीडिया को भी दबाव में लिया जाता है और बाबा से सम्बंधित ख़बरों से बचने की सलाह दी जाती है…आचार्य बालकृष्ण की नागरिकता और पासपोर्ट सहित उनके द्वारा बनाई जा रही दवाइयों के विषय में दुष्प्रचार कर बदनाम करने की साजिश की जाती है. जहाँ कल तक सरकार बाबा को फुसलाने में लगी थी.. वहीं अपनी बात न बनते देख बाबा के पीछे संघ और बीजेपी का हाथ होने जैसे बेहूदे आरोप मढे जाने लगे …क्या यह सब इस लिए कि बाबा रामदेव देश को जोड़ने और देश द्रोहियों द्वारा जो देश की अकूत संपत्ति विदेशों में भेजी गयी है उसे वापस लौटाने की आवाज़ उठाते हैं? यदि बाबा रामदेव ठग हैं तो उनकी अगवानी करने चार केन्द्रीय मन्त्री हवाई अड्डा क्यों गए? यदि बाबा की नीति और नीयत ठीक नहीं थी तो उनसे तीन दिनों तक सरकार मंत्रणा क्यों करती रही. क्यों बाबा की सारी माँगें मान लेने का दावा किया गया? इससे पूर्व बाबा के धन साम्राज्य और चंदों की जाँच क्यों नहीं की गयी
वास्तविकता यह है कि कि अनशन की घोषणा करने के बाद से ही लगातार बाबा को फुसलाने धमकाने और यहाँ तक कि खरीदने तक का प्रयास किया जाता रहा.. ज्यों ही बाबा ने सरकारी दबाव के आगे झुकने से इंकार किया सरकार की गन्दी और घटिया प्रवृति हरकत में आ गयी.
इसी प्रकार अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान भी अन्ना की सभी माँगे मान लेने का झूठा आश्वासन दिया गया था… जनलोकपाल कमेटी बनते है तरह तरह की कुटिल चालें चली जाने लगीं..कभी फर्जी सीडी सामने लाकर तो कभी स्टैम्प का मुद्दा खड़ा कर के अधिवक्ता पिता पुत्र और अरविन्द केजरीवाल के छविभंजन का घृणित प्रयास किया गया, तो कभी मुख्य मंत्रियों से राय लेने के नाम पर लोकपाल बिल में रोड़े अटकाए गए.. यहाँ तक कि सिविल सोसाइटी द्वारा की जा रही मीटिंग की लाइव रिकार्डिंग या प्रसारण की माँग भी सिरे से खारिज कर दी गयी ताकि उनके द्वारा दी जा रही अनर्गल दलीलें और कमेटी को दिग्भ्रमित करने के हथकण्डे उजागर न हो जाएँ. अन्ना हजारे के मंच पर भारत माता की तस्वीर होने पर भी खूब आक्षेप लगाए गए और उनका रिश्ता संघ से जोड़ने का प्रयास किया गया.
चार जून 2011 को दिल्ली के रामलीला मैदान में जो कुछ हुआ उसको उचित और ज़रूरी बताने के लिए सरकार द्वारा बेशर्मी से तमाम बहाने गढे गए...लेकिन शायद लोकतन्त्र के इतिहास में यह घटना बेहद शर्मनाक घटना की तरह याद की जायेगी. यह इन्दिराकालीन आपातकाल की बर्बरता की ही याद दिलाता है.लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने पांच जून १९७५ को राष्ट्र नवनिर्माण के लिए सम्पूर्ण क्रान्ति का नारा दिया था. तत्कालीन सत्तासीन काँग्रेस ने उक्त जनांदोलन के दमन के लिए रातों रात आंदोलनकारियों को जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया. उनपर पुलिसिया जुर्म ढाए गए. लोकतन्त्र का गला घोटने के लिए प्रेस पर पाबंदी लगा दी गयी.. सरकारी तानाशाही चलने के लिए इंदिरागांधी ने देश पर आपातकाल थोप दिया. सरकार की यह निरंकुशता भारतीय लोकतन्त्र के इतिहास में कलंक है कई महत्वपूर्ण घटनाक्रमों पर काँग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी रहस्यमय चुप्पी साधे रहती हैं. रामलीला मैदान में हुए पुलिसिया अत्याचार पर भी वह मौन हैं, गुजरात दंगों के खिलाफ़ आईएएस की नौकरी छोड़ गुजरात सरकार विरोधी मुहिम में जुटे हर्ष मंदर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य हैं.जब सारा देश अन्ना के साथ खड़ा था तो मंदर ने लिखा था मंच पर भारत माता का चित्र होने और आंदोलन में स्वयं सेवक संघ के शामिल होने के कारण मै जंतर मंतर नहीं गया. एक बार फिर काँग्रेसी नेता बाबा रामदेव के आंदोलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक और और संघ परिवार के शामिल होने का प्रश्न खड़ा कर रहे हैं यह इस बात का द्योतक है कि इस आंदोलन को दबाने में दस जनपथ की चौकड़ी ही मुख्य भूमिका में है.
परंपरा और संविधान दोनों कहते हैं कि आंदोलन कारी जिस भी विचारधारा के हों उन्हें देश का नागरिक होने के कारण शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात कहने और विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है, दिग्विजय सिंह सरीखे काँग्रेसी नेता संघ परिवार को साम्प्रदायिक साबित करने के लिए भगवा आतंकवाद का झूठ स्थापित करने में लगे हुए हैं जबकि यही दिग्विजय सिंह सिमी जैसी राष्ट्रद्रोही और प्रतिबंधित संगठन के पक्ष में खड़े दीखते हैं, पहले से तयशुदा ओछी राजनीति के तहत काँग्रेस हमेशा की तरह देश में हो रहे किसी भी सार्थक प्रयास जो काँग्रेस को पसंद न हों, संघ या आर एस एस से जोड़ कर उसे बदनाम करने में लगी हुई है. यह भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी काँग्रेस की हताशा को ही रेखांकित करता है.काले धन की वापसी को लेकर आखिर इतनी बौखलाई हुई क्यों है.सुप्रीम कोर्ट की लगातार फटकार और जर्मनी सरकार द्वारा विदेशों में काला धन जमा करने वाले कर चोरों व् भ्रष्टाचारियों की सूची उपलब्ध कराने के बावजूद सरकार किन चेहरों को छिपाना चाहती है ? इन सवालों के पीछे ही काँग्रेसी तानाशाही का राज़ छुपा हुआ है, जो बोफोर्स दलाली काण्ड का मामला उठते ही अधीर हो उठती है,
अन्ना हजारे के बाद बाबा रामदेव के आंदोलन को मिल रहा अपार जन समर्थन सत्तासीनों द्वारा अलग अलग घोटालों में हुए सार्वजनिक धन की लूट के प्रति जन आक्रोश का प्रकटीकरण है, मन्त्री और नेताओं के मुखौटे लगाए ये लुटेरे देश को लूटने में इसलिए सफल हो रहे हैं क्योंकि व्यवस्था ने जिस प्रधान मन्त्री को सार्वजनिक हितों की रक्षा की जिम्मेदारी दी है उन्होंने अपनी जवाबदेही का निर्वाह नहीं किया, उत्तर प्रदेश के भट्टा परसौल पर हुए पुलिसिया अत्याचार के बाद राहुल गाँधी वहाँ के दौरे पर गए थे, राख के ढेर में उन्होंने मानव अस्थियाँ देखने का आरोप लगाया. हालाँकि बाद में यह निराधार साबित हुआ वही राहुल गाँधी रामलीला मैदान की घटना पर आश्चर्यजनक रूप से चुप्पी साध लेते हैं… प्रधान मन्त्री का बयान भी घटना के तीन दिन बाद आता है… और दिग्विजय सिंह लोग अनर्गल प्रलाप करने से बाज़ नहीं आ रहे,.
बाबा रामदेव ने संत समाज के प्रबल अनुरोध और सरकार की असंवेदनशीलता से व्यथित होकर अपना अनशन तोड़ दिया है… आगे उनकी मुहिम क्या रुख अख्तियार करती है पता नहीं लेकिन सरकार बाबा रामदेव पर विजय पाने के बाद उत्साहित है. प्रणव मुखर्जी ने बयान दे दिया कि जनलोकपाल कमेटी की बातें असंवैधानिक हैं और उनको मानना सरकार की मजबूरी नहीं है… इसे रामदेव के बाद अन्ना की मुहिम को कुचलने की अगली मुहिम के आगाज़ के रूप में देखा जाना चाहिए….
इन घटनाओं से एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि गाँधी के देश में गाँधीवादी कहलाने वाली सरकार ने जनान्दोलन और अनशन को मनमाने ढंग से कुचलने और किसी की परवाह न करने की हठधर्मिता पर क्यों अडी है…या तो ये निर्णय सरकार की अदूरदर्शिता का परिचायक है या फिर आत्ममुग्धि का… सरकार जानती है जनता बड़ी भुलक्कड़ है और चुनाव तक सब ठीक हो जाएगा… अब देखना है जनता किसे याद रखती है और किसे भुलाती है…
.......................पद्म सिंह
ज्वलंत मुद्दे आगे की दिशा देते हैं ,बशर्ते उनकी आग बनी रहे ,ये जरुरी है की जलना किसको है जलाना किसको है ज्ञात हो ,वर्ना आग ,अंधी होती है ..... / विवेकशील पोस्ट , बधाई .
जवाब देंहटाएंsaartha aur satic lekh.badhaai.
जवाब देंहटाएंplease visit my blog.thanks.
निसंदेह आँखें खोल देने वाली जानकारी है। आप का स्वागत है और आप मेरे ब्लॉग के समर्थक बने उसके लिए आप का बहुत-बहुत आभार !!
जवाब देंहटाएंधन्यवाद...
पहली बार आपके ब्लॉग पे आया हूँ. it's good. and it seems u r technically very sound.
जवाब देंहटाएंबाबा ने पिछले दिनों एक संबोधन में हम लोगों से पूछा की ...अगर मैं ये सब न करता तो क्या करता .........क्या करता ?????? और क्या कर लेता ....शादी कर के दो चार बच्चे पैदा कर लेता और फिर सारी जिंदगी उस एक बीवी और उन दो चार बच्चों को खुश रखने में बिता देता ...पर मैंने वो रास्ता न चुन के भारत देश के 121 करोड़ बच्चों को खुश देखने का रास्ता चुना है .....मुझे अपने AC आश्रम में बैठ के पाँव पुजवाना मंज़ूर नहीं ...पूरे देश में सड़कों पर धक्के खाते ...धूल फांकते......पुलिस की लाठी और सरकार की गालियाँ खाना...... ठग चोर कहाना मंज़ूर है .......बाबा की इस spirit को शत शत नमन
जवाब देंहटाएंतैमूर