रविवार, 5 फ़रवरी 2023

जैसी चादर ले कर आए

जैसी चादर लेकर आए
वैसी धर दी जस की तस ॥

अनगिन सम्बन्धों के चेहरे
ओढ़े स्वांग भरे दिन दिन
काँटे बोए जिसने उसकी
राहों दीप धरे गिन गिन
माना नहीं पराया कुछ भी
जो भी पाया यश अपयश ।।

बहुत पुकारा नील गगन ने
कभी भीड़ ने या निर्जन ने
भरी कुलाँचें भी यौवन ने
उकसाया भी पागल मन ने
दायित्वों की डोर कहीं से
बंधी हुई थी पर कस कस ।।

समझ न आया इस जीवन में
क्या खोया है क्या पाया
किस निमित्त आए थे जग मे
प्रश्न निरुत्तर ही पाया
रोते हुए हृदय को निस दिन
खूब छकाया है हँस हँस ।।

आयु चढ़ गई पौड़ी पौड़ी
साँसें हाँफ हाँफ कर दौड़ी
मन बौराया रहा जोड़ता
धन सुख वैभव कौड़ी कौड़ी
धड़कन एक दिन थक कर बैठी
बोली साथी अब तो बस ॥

जैसी चादर ले कर आये
वैसी धर दी जस की तस

पद्म सिंह (प्रतापगढ़) उत्तर प्रदेश 7011100247

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