इधर तमाम व्यस्तताओं के कारण कुछ लिखने का समय निकालना और एकाग्र होना दुष्कर रहा है…. ब्लॉग पर सक्रियता कई बार कम हो जाती है तो भीतर से बेचैनी सी होती है… आप सब से जुड़ने का लोभ जबरन ब्लॉग पर खींच लाता है. इस भीड़-मना दुनिया में सहृदय लोगों की स्मृति में बना रहूँ यही अभिलाषा है…
मै ही जाता हूँ गली उनकी दीवानों की तरह
वरना मालूम है मेरे जैसे हज़ारों हैं वहाँ
सीखने के दौर में एक नयी गज़ल आपकी नज़र करता हूँ….
आज कहता है वही शख्स भूल जाने को
मैंने जिसके लिए भुला दिया ज़माने को
दिल पे खाता है मगर फिर से दिल लगाता है
दिल्लगी मानता है दिल से दिल लगाने को
किसी दरिया को समंदर का पता क्या मालूम
इक जुनूं राह दिखाए किसी दीवाने को
हो न सैयाद दर्द-मंद मेरी जानिब से
जी नहीं करता के तोडूँ मै कैदखाने को
फसील सर की सुनेगा कि हुक्मरानों की
फ़र्ज़ मजबूर है हैवानियत दिखाने को
बड़ी बुलंदियों पे ताजदार यूँ पहुँचे
अवाम हो गयी मोहताज़ दाने दाने को
सैयाद =शिकारी
फसील= फाँसी देने का यंत्र
(चित्र नीहारिका बिटिया द्वारा स्केच किया गया है)
………पद्म सिंह ०५-अप्रैल-२०११
आनन्द आ गया.....वाह!!
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