बुधवार, 2 मई 2012

क्यों नपुंसक हो गयी हैं आंधियाँ

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कहाँ जाने खो गयी हैं आँधियाँ
क्यों नपुंसक हो गयी हैं आंधियाँ

हवाएँ पश्चिम से कुछ ऐसे चलीं
युवा मन मे सो गयी हैं आंधियाँ

मुट्ठियाँ सब बुद्धिजीवी हो गयीं
और तनहा हो गयी हैं आँधियाँ

आज घर मे शान्ति है धोका न खा
अभी कल ही तो गयी हैं आंधियाँ

शक्ति, साहस, और लड़ने की ललक
जाने क्या क्या बो गयी हैं आंधियाँ

"पद्म" सच मे बदलना है दौर तो
जगाओ जो सो गयी हैं आंधियाँ


पद्म सिंह 02/05/20012

Posted via email from पद्म सिंह का चिट्ठा - Padm Singh's Blog

4 टिप्‍पणियां:

  1. हम अगर जागेंगे तो भागेंगे वो,
    मौसम बदलने आ रही हैं आंधियां !!


    उम्मीद रखो,क्रांति ज़रूर आएगी !
    प्रभावशील रचना !

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  2. है आंधियों की टक्कर अब आंधियों से ही
    क्या जाने होगा क्या जब भिड़ेंगी आंधियां!

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  3. आपकी पोस्ट 3/5/2012 के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
    कृपया पधारें

    चर्चा - 868:चर्चाकार-दिलबाग विर्क

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  4. इतने थपेडों में उलझी हवाएं सियासत की ,उठेगा बवंडर जरूर
    उन्हीं की आंखों से ,जिनकी आंखों में रो गई हैं आंधियां ..


    सो इंतज़ार है तूफ़ान के आने का ,तैयार तो हो गई हैं आंधियां

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कुछ कहिये न ..