गुरुवार, 21 जुलाई 2011
बंदर बनाम टोपी वाले
मंगलवार, 14 जून 2011
टकरा के एक सफीना मगर चूर हो गया …
किसी शायर ने कहा है-
तूफां के बाद बहर बदस्तूर हो गया
टकरा के एक सफीना मगर चूर हो गया
अंततः तमाम फजीहत के बाद बाबा रामदेव ने अपना अनशन तोड़ दिया…आखिरकार सत्ता ने शक्ति और कूटनीति के दम पर जनता की आवाज़ का निर्ममता से गला घोंट दिया… सरकार अपने दंभ और हठधर्मिता के सारे स्तर पार करते हुए नौ दिन से अनशन करते हुए बाबा रामदेव के प्रति जैसी उदासीनता दिखाई उसने काँग्रेस सरकार की कुटिल मानसिकता और प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह की संवेदनहीनता को उजागर कर दिया…
यह इस देश की वही सर्वोच्च सत्ता है जो अपनी नाक के नीचे सैयद अली शाह गिलानी को भारत की एकता और अखंडता के खिलाफ़ विषवमन करने की अनुमति देती है और भारत माता की जय बोलने वाले एक निहत्थे समूह को विश्राम करते हुए आधी रात में पुलिसिया बर्बरता का शिकार बनाती है. यह वही तथाकथित सेक्युलर समूह है जिसका एक भाग बाटला हाउस मुठभेड़ में शहीद हुए इन्स्पेक्टर एम् सी शर्मा का साथ खड़े न होकर मारे गए आतंकवादियों से सहानुभूति प्रकट करता नज़र आता है और पाकिस्तान में अमेरिका के हाथों ओसामा बिन लादेन की मौत के बाद उसके मजहबी मानवाधिकारों की रक्षा की माँग उठाता नजर आता है जबकि वहीँ वन्देमातरम का उद्घोष करने वाले भूखे प्यासे सो रहे अनशनकारियों पर आधी रात को आँसू गैस और लाठियों के दम पर दरबदर ठोकरें खाने के लिए खदेड़ दिया जाता है…और उसपर एक जिम्मेदार मन्त्री का बयान… कि हमने तो सुप्रभात में सबको जगाया था. उन्हीं मन्त्री जी के द्वारा आतंकवादी ओसामा बिन लादेन को जी कह कर संबोधित किया जाता है और भगवाधारी राष्ट्रभक्त को ठग कह कर संबोधित किया जाता है.
प्रश्न उठता है कि एक दिन पहले तक जिस भगवाधारी बाबा से घबरा कर देश की सर्वोच्च सत्ता के चार कैबिनेट मिनिस्टर उसे एयरपोर्ट पर लेने और मनाने जाते हैं, बंद होटल में पाँच घंटे तक वार्ता करते हैं, समझौते करते हैं उसी बाबा को चकमा न दे पाने पार एक दिन बाद ही आयकर और प्रवर्तन निदेशालय जैसी सरकार की जितनी भी एजेंसियाँ हैं बाबा के पीछे लगा दी गयीं. ट्रस्ट और कंपनियों की स्कैनिंग करने के लिए निर्देश दे दिए गए… सूचना मंत्रालय द्वारा एडवाइजरी जारी करवा कर मीडिया को भी दबाव में लिया जाता है और बाबा से सम्बंधित ख़बरों से बचने की सलाह दी जाती है…आचार्य बालकृष्ण की नागरिकता और पासपोर्ट सहित उनके द्वारा बनाई जा रही दवाइयों के विषय में दुष्प्रचार कर बदनाम करने की साजिश की जाती है. जहाँ कल तक सरकार बाबा को फुसलाने में लगी थी.. वहीं अपनी बात न बनते देख बाबा के पीछे संघ और बीजेपी का हाथ होने जैसे बेहूदे आरोप मढे जाने लगे …क्या यह सब इस लिए कि बाबा रामदेव देश को जोड़ने और देश द्रोहियों द्वारा जो देश की अकूत संपत्ति विदेशों में भेजी गयी है उसे वापस लौटाने की आवाज़ उठाते हैं? यदि बाबा रामदेव ठग हैं तो उनकी अगवानी करने चार केन्द्रीय मन्त्री हवाई अड्डा क्यों गए? यदि बाबा की नीति और नीयत ठीक नहीं थी तो उनसे तीन दिनों तक सरकार मंत्रणा क्यों करती रही. क्यों बाबा की सारी माँगें मान लेने का दावा किया गया? इससे पूर्व बाबा के धन साम्राज्य और चंदों की जाँच क्यों नहीं की गयी
वास्तविकता यह है कि कि अनशन की घोषणा करने के बाद से ही लगातार बाबा को फुसलाने धमकाने और यहाँ तक कि खरीदने तक का प्रयास किया जाता रहा.. ज्यों ही बाबा ने सरकारी दबाव के आगे झुकने से इंकार किया सरकार की गन्दी और घटिया प्रवृति हरकत में आ गयी.
इसी प्रकार अन्ना हजारे के आंदोलन के दौरान भी अन्ना की सभी माँगे मान लेने का झूठा आश्वासन दिया गया था… जनलोकपाल कमेटी बनते है तरह तरह की कुटिल चालें चली जाने लगीं..कभी फर्जी सीडी सामने लाकर तो कभी स्टैम्प का मुद्दा खड़ा कर के अधिवक्ता पिता पुत्र और अरविन्द केजरीवाल के छविभंजन का घृणित प्रयास किया गया, तो कभी मुख्य मंत्रियों से राय लेने के नाम पर लोकपाल बिल में रोड़े अटकाए गए.. यहाँ तक कि सिविल सोसाइटी द्वारा की जा रही मीटिंग की लाइव रिकार्डिंग या प्रसारण की माँग भी सिरे से खारिज कर दी गयी ताकि उनके द्वारा दी जा रही अनर्गल दलीलें और कमेटी को दिग्भ्रमित करने के हथकण्डे उजागर न हो जाएँ. अन्ना हजारे के मंच पर भारत माता की तस्वीर होने पर भी खूब आक्षेप लगाए गए और उनका रिश्ता संघ से जोड़ने का प्रयास किया गया.
चार जून 2011 को दिल्ली के रामलीला मैदान में जो कुछ हुआ उसको उचित और ज़रूरी बताने के लिए सरकार द्वारा बेशर्मी से तमाम बहाने गढे गए...लेकिन शायद लोकतन्त्र के इतिहास में यह घटना बेहद शर्मनाक घटना की तरह याद की जायेगी. यह इन्दिराकालीन आपातकाल की बर्बरता की ही याद दिलाता है.लोकनायक जय प्रकाश नारायण ने पांच जून १९७५ को राष्ट्र नवनिर्माण के लिए सम्पूर्ण क्रान्ति का नारा दिया था. तत्कालीन सत्तासीन काँग्रेस ने उक्त जनांदोलन के दमन के लिए रातों रात आंदोलनकारियों को जेल की सलाखों के पीछे धकेल दिया. उनपर पुलिसिया जुर्म ढाए गए. लोकतन्त्र का गला घोटने के लिए प्रेस पर पाबंदी लगा दी गयी.. सरकारी तानाशाही चलने के लिए इंदिरागांधी ने देश पर आपातकाल थोप दिया. सरकार की यह निरंकुशता भारतीय लोकतन्त्र के इतिहास में कलंक है कई महत्वपूर्ण घटनाक्रमों पर काँग्रेस अध्यक्षा सोनिया गाँधी रहस्यमय चुप्पी साधे रहती हैं. रामलीला मैदान में हुए पुलिसिया अत्याचार पर भी वह मौन हैं, गुजरात दंगों के खिलाफ़ आईएएस की नौकरी छोड़ गुजरात सरकार विरोधी मुहिम में जुटे हर्ष मंदर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के सदस्य हैं.जब सारा देश अन्ना के साथ खड़ा था तो मंदर ने लिखा था मंच पर भारत माता का चित्र होने और आंदोलन में स्वयं सेवक संघ के शामिल होने के कारण मै जंतर मंतर नहीं गया. एक बार फिर काँग्रेसी नेता बाबा रामदेव के आंदोलन में राष्ट्रीय स्वयंसेवक और और संघ परिवार के शामिल होने का प्रश्न खड़ा कर रहे हैं यह इस बात का द्योतक है कि इस आंदोलन को दबाने में दस जनपथ की चौकड़ी ही मुख्य भूमिका में है.
परंपरा और संविधान दोनों कहते हैं कि आंदोलन कारी जिस भी विचारधारा के हों उन्हें देश का नागरिक होने के कारण शांतिपूर्ण ढंग से अपनी बात कहने और विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार है, दिग्विजय सिंह सरीखे काँग्रेसी नेता संघ परिवार को साम्प्रदायिक साबित करने के लिए भगवा आतंकवाद का झूठ स्थापित करने में लगे हुए हैं जबकि यही दिग्विजय सिंह सिमी जैसी राष्ट्रद्रोही और प्रतिबंधित संगठन के पक्ष में खड़े दीखते हैं, पहले से तयशुदा ओछी राजनीति के तहत काँग्रेस हमेशा की तरह देश में हो रहे किसी भी सार्थक प्रयास जो काँग्रेस को पसंद न हों, संघ या आर एस एस से जोड़ कर उसे बदनाम करने में लगी हुई है. यह भ्रष्टाचार में आकंठ डूबी काँग्रेस की हताशा को ही रेखांकित करता है.काले धन की वापसी को लेकर आखिर इतनी बौखलाई हुई क्यों है.सुप्रीम कोर्ट की लगातार फटकार और जर्मनी सरकार द्वारा विदेशों में काला धन जमा करने वाले कर चोरों व् भ्रष्टाचारियों की सूची उपलब्ध कराने के बावजूद सरकार किन चेहरों को छिपाना चाहती है ? इन सवालों के पीछे ही काँग्रेसी तानाशाही का राज़ छुपा हुआ है, जो बोफोर्स दलाली काण्ड का मामला उठते ही अधीर हो उठती है,
अन्ना हजारे के बाद बाबा रामदेव के आंदोलन को मिल रहा अपार जन समर्थन सत्तासीनों द्वारा अलग अलग घोटालों में हुए सार्वजनिक धन की लूट के प्रति जन आक्रोश का प्रकटीकरण है, मन्त्री और नेताओं के मुखौटे लगाए ये लुटेरे देश को लूटने में इसलिए सफल हो रहे हैं क्योंकि व्यवस्था ने जिस प्रधान मन्त्री को सार्वजनिक हितों की रक्षा की जिम्मेदारी दी है उन्होंने अपनी जवाबदेही का निर्वाह नहीं किया, उत्तर प्रदेश के भट्टा परसौल पर हुए पुलिसिया अत्याचार के बाद राहुल गाँधी वहाँ के दौरे पर गए थे, राख के ढेर में उन्होंने मानव अस्थियाँ देखने का आरोप लगाया. हालाँकि बाद में यह निराधार साबित हुआ वही राहुल गाँधी रामलीला मैदान की घटना पर आश्चर्यजनक रूप से चुप्पी साध लेते हैं… प्रधान मन्त्री का बयान भी घटना के तीन दिन बाद आता है… और दिग्विजय सिंह लोग अनर्गल प्रलाप करने से बाज़ नहीं आ रहे,.
बाबा रामदेव ने संत समाज के प्रबल अनुरोध और सरकार की असंवेदनशीलता से व्यथित होकर अपना अनशन तोड़ दिया है… आगे उनकी मुहिम क्या रुख अख्तियार करती है पता नहीं लेकिन सरकार बाबा रामदेव पर विजय पाने के बाद उत्साहित है. प्रणव मुखर्जी ने बयान दे दिया कि जनलोकपाल कमेटी की बातें असंवैधानिक हैं और उनको मानना सरकार की मजबूरी नहीं है… इसे रामदेव के बाद अन्ना की मुहिम को कुचलने की अगली मुहिम के आगाज़ के रूप में देखा जाना चाहिए….
इन घटनाओं से एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है कि गाँधी के देश में गाँधीवादी कहलाने वाली सरकार ने जनान्दोलन और अनशन को मनमाने ढंग से कुचलने और किसी की परवाह न करने की हठधर्मिता पर क्यों अडी है…या तो ये निर्णय सरकार की अदूरदर्शिता का परिचायक है या फिर आत्ममुग्धि का… सरकार जानती है जनता बड़ी भुलक्कड़ है और चुनाव तक सब ठीक हो जाएगा… अब देखना है जनता किसे याद रखती है और किसे भुलाती है…
.......................पद्म सिंह
बुधवार, 13 अप्रैल 2011
धूप ……. पद्म सिंह
यह रचना सर्दियों में लिखी गयी थी…पद्मावलि पर प्रकाशन भी किया गया था… लेकिन इस समय इसकी प्रासंगिकता कहीं बेहतर लग रही है इसी लिए ढिबरी पर इसका पुनः प्रकाशन कर रहा हूँ….
पूरे दिन का सवेरे मज़मून गढ़ जाती है धूप
एक सफहा जिंदगी का रोज़ पढ़ जाती है धूप
मुंहलगी इतनी कि पल भर साथ रह कर देखिये
पाँव छू, उंगली पकड़ फिर सर पे चढ जाती है धूप
लांघती परती तपाती खेत, घर ,जंगल, शहर
इस तरह से रास्ते पे अपने बढ़ जाती है धूप
अब्र हो गुस्ताख, शब हो, या शज़र चाहे ग्रहन
सब के इल्जामात मेरे सर पे मढ जाती है धूप
देख सन्नाटा समंदर पे हुकूमत कर चले
शहर से गुजरी कि बित्ते में सिकुड़ जाती है धूप
पूस में दुल्हन सी शर्माती लजाती है मगर
जेठ में छेड़ो तो इत्ते में बिगड़ जाती है धूप
धूप 16/01/2010 पद्म सिंह ----9716973262
रविवार, 10 अप्रैल 2011
नकटों का गाँव … पद्म सिंह
एक कहानी है….
एक गाँव में किसी व्यक्ति की नाक कट गयी थी…. पूरे गाँव के लोग उसे नकटा कह-कह कर दिन भर चिढ़ाया करते….सब नाक वालों को देख कर "’इनफीरियारिटी कोम्प्लेक्स' से ग्रसित हो गया था… नकटे को बहुत बुरा लगता और अपने आप को अकेला महसूस करता… एक दिन सुबह उठते ही वह नाचने लगा, गाने लगा… गलियों में हँसता हुआ मुस्कुराता हुआ और आत्म विभोर हो कर घूमने लगा…. पूरा गाँव सकते में था… आखिर इसे हुआ क्या?
किसी ने साहस कर के पूछा भाई क्या बात है आज तो बदले बदले से नज़र आ रहे हो… आनंद की सीमा नहीं है तुम्हारे, कोई खजाना हाथ लगा है? नकटा फिर भी नाचता गाता रहा कुछ नहीं बोला… पूरा गाँव इकठ्ठा हो गया… बहुत दबाव पड़ा तो इस आनंद का राज़ बताने को राज़ी हुआ…बोला मुझे रात ईश्वर के साक्षात दर्शन हुए हैं…अब भी मुझे स्वार्गिक अनुभव हो रहे हैं… लेकिन कैसे हुआ ये किसी को नहीं बताऊंगा… यह कह कर घर चला गया
चर्चा पूरे गाँव में फ़ैल गयी. लोग अकेले में मिल कर ईश्वर प्राप्ति का राज़ जानने की कोशिश में लग गए… गाँव का मुखिया भी अकेले में मिला और जैसे तैसे राज़ बताने पर राज़ी कर लिया… उसने बताया कि मेरी नाक कटने से ही ईश्वर के दर्शन हुए हैं… ईश्वर ने कहा है कि मेरे दर्शन वही पायेगा जिसकी नाक कटी हो…
गाँव का मुखिया लालच में आ गया और उसने भी नाक कटवा ली… नाक कटने पर कुछ भी नहीं हुआ तो उसने फिर पूछा… मुझे तो दर्शन हुए नहीं…. अब नकटा मुस्कराया… मुखिया जी… दर्शन हों या न हों…तुम भी यही कहना शुरू कर दो… बरना सारा गाँव तुम्हें नकटा और बेवक़ूफ़ कहेगा… मुखिया उसकी चाल में फँस चुका था… लेकिन नाक कट चुकी थी… सो … उसने भी नाचना और यही कहना शुरू कर दिया…
इस बात को कहने वाले अब दो लोग थे…. जैसी कि प्रथा है… बहुमत सत्य के रूप में देखा जाता है… बात की विश्वसनीयता और बढ़ गयी.
धीरे धीरे दो चार लोग और भी इनके चक्कर में पड़े और नाक कटवा ली… धीरे धीरे बात की विश्वसनीयता बढती गयी और पूरा गाँव नकटा हो गया… सब बराबर… समाजवाद आ गया हो जैसे… लेकिन एक आदमी उनमे सब से होशियार था जिसे इस बात पर विश्वास नहीं होता था… वो किसी भी तरह से नाक कटवाने को तैयार नहीं हो रहा था… हर तरफ से प्रलोभन और दबाव बढ़ने लगा लेकिन वो टस से मस नहीं हुआ….
आखिर नकटों की मीटिंग हुई… और अगले दिन से पूरा गाँव उसे “नक्कू" कह कर चिढ़ाने लगा… ओय नक्कू … वो देखो नक्कू आ रहा है… उसको बिरादरी से अलग कर दिया गया… हेय दृष्टि से देखा जाने लगा…
अंत में नक्कू परेशान हो गया… परेशान हो कर… उसने भी सब कुछ जानते हुए… न चाहते हुए भी नाक कटवा कर नकटों की ज़मात में शामिल हो गया…
इधर एक अनुभव हुआ कि आज देश प्रेम, ईमानदारी, भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर बात किया जाए तो लोग अजीब नज़रों से देखते हैं… इसी क्रम में मुझे भी कईयों ने व्यंग्य में देशभक्त जी जैसे विशेषणों से भी नवाजा है… कई बार लगता है कि इस विषय पर बात कर के मै कुछ गलत कर रहा हूँ…कुछ नक्कू जैसा भी महसूस करता हूँ, कि क्यों न नाक कटवा कर नकटों में शामिल हो जाऊं …आज के दौर में ईमानदारी, देशभक्ति, और नैतिकता जैसी बात करने वाले लोगों को नक्कू की तरह देखा जाना अप्रत्याशित नहीं है … और यह कटु सत्य है कि ईमानदारी आज अल्पमत में है और लोग नाक कटवा कर नकटों में शामिल होने को मजबूर है…. ऐसा नहीं है कि लोग व्यवस्था में सुधार नहीं चाहते… उन्हें प्रकाश की कोई किरण भी तो नहीं नज़र आ रही थी…
पिछले कुछ दिनों में भ्रष्टाचार के विरूद्ध अन्ना हजारे के साथ जंतर मंतर पर तीन दिन बिता कर जैसा महसूस किया वैसा तो वहाँ रह कर ही महसूस किया जा सकता है…. बाबा रामदेव जी और अन्ना तो एक जरिया हैं … प्रबुद्ध और पढ़े लिखे लोगों ने जिस तरह से भ्रष्टाचार और व्यवस्था के खिलाफ़ एक जुटता और आक्रोश दिखाया है उससे कम से कम समस्या का त्वरित हल न सही उम्मीदों को बल ज़रूर मिलेगा… कम से कम उन्हें एक दिशा और रौशनी की किरण ज़रूर मिलेगी जो नाक कटवा कर नकटों में शामिल होने को मजबूर हैं…
बुधवार, 6 अप्रैल 2011
आज़ादी के बाद की सबसे बड़ी जनक्रान्ति ?
अन्ना हजारे जी के आमरण अनशन का पहला दिन… पूरा दिन अन्ना के साथ जंतर मंतर पर बिताया… जय कुमार झा जी भी हमारे साथ रहे…. विशाल जनमानस बिना किसी राजनैतिक नेतृत्व के जिस तरह से पूरे देश में सड़कों पर उतर कर अन्ना के संघर्ष को समर्थन दिया वह अपने आप में आज़ादी के बाद सत्य के लिए सबसे बड़ी लड़ाई के रूप में देखी जा रही है.
क्या सब्र का घड़ा भर चुका है? क्या लोग उकता चुके हैं इस व्यवस्था से ? क्या इसे नयी क्रान्ति समझा जाए? पिछले कुछ दिनों से भ्रष्टाचार और अति के खिलाफ़ जनता जिस तरह आंदोलित होती दिखी है उसे क्या आज़ादी के बाद की सबसे बड़ी क्रान्ति कहना अनुचित न होगा….. भ्रष्टाचार के विरूद्ध आज दिल्ली में जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे के आमरण अनशन पर बैठने के साथ ही देश के लगभग ४०० शहरों में भ्रष्टाचार के विरूद्ध प्रदर्शन हुए.
अन्ना हजारे सहित लाखों की संख्या में भ्रष्टाचार के खिलाफ़ मुहिम में शामिल लोगों द्वारा ‘जन लोकपाल बिल' को लागू कराने हेतु एक कमिटी के गठन की माँग रखी गयी गयी है जिसमे लोकपाल बिल के प्रारूप के लिए भ्रष्ट मंत्रियों और नेताओं की एकतरफा और लचर व्यवस्था से इतर एक प्रभावशाली लोकपाल बिल तैयार किया जाय. इस ड्राफ्टिंग कमिटी में पचास प्रतिशत प्रतिनिधि जनता की ओर से शामिल किये जाने को लेकर अन्ना हजारे आज से आमरण अनशन पर हैं.
देशभर से बाबा रामदेव, श्री श्री रविशंकर, स्वामी अग्निवेश, दिल्ली के आर्च बिशप विन्सेंट एम् कोंसेसाओ, महमूद मदनी, किरण बेदी, जे.एम लिंगदोह, शांति भूषण, प्रशांत भूषण, अरविन्द केजरीवाल, मुफ्ती समूम काशमी, मल्लिका साराभाई, अरुण भाटिया, सुनीता गोदरा, आल इण्डिया बैंक कर्मचारी फेडरेशन, पैन-आइआईटी अल्युमनी एसोसियेशन, कामन काज़, जैसे गण्यमान व्यक्तियों और संस्थाओं ने जिस तरह से भ्रष्टाचार के खिलाफ़ अलख जगाई उसे देखते हुए आभास यही होता है कि घड़ा भर चुका है… सहनशीलता की हद हो गयी है
इस आन्दोलन की विशेष बात यही है कि यह कोई राजनैतिक संगठन अथवा पार्टी द्वारा संचालित नहीं है बल्कि जनता के सहयोग से सर्व विदित कर्मठ और ईमानदार गण्यमान व्यक्तियों द्वारा आंदोलित किया जा रहा है. इस आंदोलन से लगातार लोग सक्रिय रूप से जुड़ रहे हैं. अगर सरकार इसी तरह जानबूझ कर सोने का नाटक करती रही तो वो दिन दूर नहीं जब सरकार के नीचे से कुर्सी नदारद होगी.
आह्वान है हर उस नागरिक से, उस संस्था से जिसे प्यार है अपने बच्चों, से , समाज से, परिवार से, चिंता है भविष्य की, कि India against Corruption की इस मुहिम से सक्रियता से जुड़ें और आज़ादी के बाद होने वाली सबसे बड़ी जनक्रान्ति के सहभागी बनें. हाल ही में मिश्र की क्रान्ति ने साबित किया है कि जनता ने हर जोर ज़ुल्म से लड़ने का मन बना लिया है और पूरे विश्व में एक नयी हवा बह चली है…. जहां जो जैसे सक्षम है वह अपनी तरह से इस संघर्ष को अपना समर्थन दें.
इस मुहिम से जुड़ने के लिए आपको केवल नीचे लिखे नंबर पर एक मिसकाल करनी है…
इस नंबर पर मिस कॉल करें -02261550789
http://indiaagainstcorruption.org/citycontacts.php
मंगलवार, 5 अप्रैल 2011
फसील सर की सुनेगा कि हुक्मरानों की… पद्म सिंह
इधर तमाम व्यस्तताओं के कारण कुछ लिखने का समय निकालना और एकाग्र होना दुष्कर रहा है…. ब्लॉग पर सक्रियता कई बार कम हो जाती है तो भीतर से बेचैनी सी होती है… आप सब से जुड़ने का लोभ जबरन ब्लॉग पर खींच लाता है. इस भीड़-मना दुनिया में सहृदय लोगों की स्मृति में बना रहूँ यही अभिलाषा है…
मै ही जाता हूँ गली उनकी दीवानों की तरह
वरना मालूम है मेरे जैसे हज़ारों हैं वहाँ
सीखने के दौर में एक नयी गज़ल आपकी नज़र करता हूँ….
आज कहता है वही शख्स भूल जाने को
मैंने जिसके लिए भुला दिया ज़माने को
दिल पे खाता है मगर फिर से दिल लगाता है
दिल्लगी मानता है दिल से दिल लगाने को
किसी दरिया को समंदर का पता क्या मालूम
इक जुनूं राह दिखाए किसी दीवाने को
हो न सैयाद दर्द-मंद मेरी जानिब से
जी नहीं करता के तोडूँ मै कैदखाने को
फसील सर की सुनेगा कि हुक्मरानों की
फ़र्ज़ मजबूर है हैवानियत दिखाने को
बड़ी बुलंदियों पे ताजदार यूँ पहुँचे
अवाम हो गयी मोहताज़ दाने दाने को
सैयाद =शिकारी
फसील= फाँसी देने का यंत्र
(चित्र नीहारिका बिटिया द्वारा स्केच किया गया है)
………पद्म सिंह ०५-अप्रैल-२०११
शनिवार, 19 मार्च 2011
होली की शुभ कामनाएँ ....

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