रविवार, 5 फ़रवरी 2023

जैसी चादर ले कर आए

जैसी चादर लेकर आए
वैसी धर दी जस की तस ॥

अनगिन सम्बन्धों के चेहरे
ओढ़े स्वांग भरे दिन दिन
काँटे बोए जिसने उसकी
राहों दीप धरे गिन गिन
माना नहीं पराया कुछ भी
जो भी पाया यश अपयश ।।

बहुत पुकारा नील गगन ने
कभी भीड़ ने या निर्जन ने
भरी कुलाँचें भी यौवन ने
उकसाया भी पागल मन ने
दायित्वों की डोर कहीं से
बंधी हुई थी पर कस कस ।।

समझ न आया इस जीवन में
क्या खोया है क्या पाया
किस निमित्त आए थे जग मे
प्रश्न निरुत्तर ही पाया
रोते हुए हृदय को निस दिन
खूब छकाया है हँस हँस ।।

आयु चढ़ गई पौड़ी पौड़ी
साँसें हाँफ हाँफ कर दौड़ी
मन बौराया रहा जोड़ता
धन सुख वैभव कौड़ी कौड़ी
धड़कन एक दिन थक कर बैठी
बोली साथी अब तो बस ॥

जैसी चादर ले कर आये
वैसी धर दी जस की तस

पद्म सिंह (प्रतापगढ़) उत्तर प्रदेश 7011100247

शनिवार, 10 अक्टूबर 2020

कैक्टस गुलाब और गुलाबजामुन

लव गुरु से किसी चेले ने पूछा एक दिन
गुरु नारियों के भेद आज बतलाइए
कैसे किस नज़र से देखे कोई कामिनी को
सार सूत्र सुगम सकल समझाइए

गुरु बोला पहला प्रकार तो है कैक्टस का
दूसरे प्रकार की गुलाब जैसी होती हैं
तीसरा प्रकार नारियों का है गुलाब जामुन
तीन ही तरह से मुझे नज़र आती हैं
चेला बोला गुरु जी समझ नहीं आया कुछ
थोड़ा तो खुलासा कर ज्ञान रस घोलिए
कैक्टस गुलाब औ गुलाब जामुनों से अब
परदा हटाइए रहस्य जरा खोलिए

गुरु बोला कैक्टस है पहला प्रकार जिसे
दूर से ही देखते हैं छू भी नहीं सकते
चखना तो है बड़े ही दूर की कठिन बात
कैक्टस को हम सूंघ भी तो नहीं सकते
बड़े घर की निराली बालकनियों पे सजी
दूर से नाज़ारा लेके लोग ललचाएँगे
छूने का प्रयास मत करना रे प्यारे कभी
वरना तो बेहिसाब काँटे चुभ जाएँगे

दूसरा प्रकार है गुलाब जैसी प्रेयसी का
काँटो की सुरक्षा मे बहुत इतराती है
कभी अठखेलियाँ करे सहेली तितलियाँ
कभी टोली भँवरों की चक्कर लगाती हैं
पर प्रेम या गुलाब का उसूल ऐसा है कि
सूंघ सकते हैं पर चख नहीं सकते
परिणय से ही बनता गुलाब गुलकंद
बिना अपनाए उसे रख नहीं सकते

तीसरा प्रकार नारियों है गुलाब जामुन
गोल मोल लाली सी है अजब निराली सी
नरम नरम रसवंती सी लगे मगर
छूते ही जो फट पड़ती है घरवाली सी
घरवाली नारियों का तीसरा स्वरूप है जी
इत्ता सा कहूँगा उतना समझ जाइए
पत्नी गुलाब जामु न सी है इसीलिए कि
देखिये कि सूँघिए कि चाटिए कि खाइये

-पद्म सिंह 

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

भाई हद्द है !!

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एक थैली मे रहें दिन रात.... भाई हद्द है ...
और उधर संसद मे जूता-लात... भाई हद्द है

आपके पैसे की रिश्वत आप को
सड़क बिजली घर की लालच आपको
चुनावी मौसम मे सेवक आपके
जीत कर पूंछें न अपने बाप को
आप ही के धन से धन्नासेठ हैं
आप ही पर लगाते हैं घात ... भाई हद्द है

शिकारी या भिखारी हर वेश मे
जहाँ मौका मिले धन्धा कूट लें
क्या गजब का हुनर पाया है कि ये
जिस तरफ नज़रें उठा दें लूट लें
दो धड़ों मे बाँट कर इन्सान को
एक चिंगारी उछालें .........फूट लें
अब लगी अपनी बुझाओ आप ... भाई हद्द है


जाति भाषा क्षेत्र वर्गों मे फंसी
सोच अपनी जेल बन कर रह गई
वोट के आखेट पर हैं रहनुमा
राजनीति गुलेल बन कर रह गई
लोकशाही आज के इस दौर मे
खानदानी खेल बन कर रह गई
जिन्हें उंगली पकड़ चलना सिखाया
वही बन बैठे हैं माई बाप... भाई हद्द है

Posted via email from पद्म सिंह का चिट्ठा - Padm Singh's Blog

रविवार, 13 जनवरी 2013

सर कटा भी है सर झुका भी है....

530803_254391904692461_1641089921_n                  खबर है कि सीमा पर पाकिस्तान फ्लैग वार्ता करने को तैयार है... तैयार है मतलब? जिसने पड़ोसी और शान्ति के लिए बार बार पहल करने वाले स्वयंभू दुनिया के सबसे बड़े लोकतान्त्रिक राष्ट्र की सीमा का उयलंघन किया हो, हर तरह से बड़े और शक्तिशाली देश के एक सैनिक का सर काट लिया हो, सीमा पर युद्ध जैसे हालात पैदा किए हों, फ्लैग वार्ता भी करने को वही तैयार होता हो। भारत जैसा सक्षम देश उस देश को फ्लैग वार्ता के लिए पुकारता रहे जिसका खर्च ही विकसित देशों की चापलूसी से चलता हो।
                  सीमा पर सीज़ फायर होने के बावजूद गोलीबारी होना कोई अतिशयोक्ति नहीं है। विशेष रूप से उन दो देशों की सीमाओं पर जो आजन्म एक दूसरे के विरोधी हों गोली बारी की घटना कोई आश्चर्य की बात नहीं है। आश्चर्य की बात यह भी नहीं कि एक दूसरे के जवानों को लक्ष्य कर के चलाई गयी गोली किसी सैनिक को लगे और वो शहीद हो जाए। ये अक्सर होता है और सैनिक की सेवा मे देश की सीमाओं की रक्षा करते हुए वीरगति को प्राप्त करता है जो बहुत असामान्य घटना नहीं है। वास्तव मे एक देश जो हर तरह से सक्षम है, ताकतवर है और सम्प्रभु है उसकी सीमा का उलंघन करना और उसके एक सैनिक का सिर काट ले जाना पूरी तरह से उस राष्ट्र की अस्मिता पर हमला है, सीधे सीधे अपमान है... और उससे भी चिंताजनक बात यह.... कि भारत जैसे राष्ट्र के शीर्ष नेतृत्व की आँखों मे पानी की एक लकीर नज़र नहीं आती... निंदा प्रस्तावों और कड़े संदेशों की वही रटी रटाई सरकारी खानापूर्ति  देख कर आत्मा विहीन विशाल शरीर होने जैसा  भ्रम होता है।
                मनुष्य के विकास के साथ ही लड़ाइयाँ अस्तित्व मे हैं... पर सैन्य परम्परा की अपने कुछ अलिखित नियम भी रहे हैं...1992 मे रिटायर हो चुके और कारगिल को छोड़ कर भारत के साथ हुई सभी लड़ाइयों मे हिस्सा ले चुके ब्रिगेडियर राज बहादुर शर्मा बताते हैं जिस समय शान्ति वाहिनी सेना बंगलादेश मे पाकिस्तानी सेना को खदेड़ रही थी अपने सीनियर अधिकारी के साथ वो भी मोर्चे पर थे। पाकिस्तानी सेना किसी विदेशी सहायता की आशा मे समुद्र की ओर भाग रही थी। भारत की सेना की गति रोकने के लिए जगह जगह कुछ पाकिस्तानी टुकड़ियाँ सड़कें रोक कर खड़ी थीं। थ्री नॉट थ्री का ज़माना था, एक स्थान पर प्रतिरोध हटाने के लिए सैनिकों मे आमने सामने की संगीन वाली लड़ाई छिड़ गयी... उन्होने अपने अफसर के साथ देखा... कि सामने थोड़ी दूर पर ही एक पाकिस्तानी सैनिक ने एक भारतीय सैनिक के दोनों हाथ काट दिए थे... यह देख कर आफ़िसर का खून खौल उठा और इसका बदला लेने के लिए उन्होने बाकी टुकड़ियों को छोड़ कर तीन तोपों का मुंह केवल उस टुकड़ी की तरफ खुलवा दिया। उसमे बहुत से पाकिस्तानी सैनिक ढेर हुए और बहुत से पकड़े भी गए... लेकिन ऐसा नहीं हुआ, कि किसी सैनिक का हाथ काट कर या इस तरह की किसी हरकत से उनका अपमान किया जाता।
                   आज शहीद हेमराज के घरवालों को फख्र है कि बेटा सीमा पर शहीद हो गया... लेकिन उनकी मांग है मेरे बेटे का सर ले आओ... सेना मे सैकड़ों जवान कई दिन से खाना नहीं खा रहे हैं... उन्हें यह अपमान लगता है... अपनी आन पर हमला लगता है ऐसे मे देश का शीर्ष नेतृत्व खानापूर्ति करते रहने के अपने पुराने ढर्रे पर कायम है जो किसी भी तरह उचित नहीं है । सीने पर गोली खा कर शहीद हो जाना ज़रूर किसी सैनिक के लिए गर्व हो सकता है, यह एक सैनिक के लिए अप्रत्याशित भी नहीं। लेकिन इस तरह आतंकियों की तरह की धृष्टता भारत की अस्मिता पर सीधा सीधा प्रहार है और इसे बर्दाश्त नहीं किया जाना चाहिए। इस कृत्य का जवाब मजबूती से सुनिश्चित किया जाना चाहिए... और किया ही जाना चाहिए। 

सोमवार, 7 जनवरी 2013

चला गजोधर कौड़ा बारा(अवधी)

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कथरी कमरी फेल होइ गई
अब अइसे न होइ गुजारा
चला गजोधर कौड़ा बारा...
गुरगुर गुरगुर हड्डी कांपय
अंगुरी सुन्न मुन्न होइ जाय
थरथर थरथर सब तन डोले
कान क लवर झन्न होइ जाय
सनामन्न सब ताल इनारा
खेत डगर बगिया चौबारा
बबुरी छांटा छान उचारा ...
चला गजोधर कौड़ा बारा...


बकुली होइ गइ आजी माई
बाबा डोलें लिहे रज़ाई
बचवा दुई दुई सुइटर साँटे
कनटोपे माँ मुनिया काँपे
कौनों जतन काम ना आवे
ई जाड़ा से कौन बचावे
हम गरीब कय एक सहारा
चला गजोधर कौड़ा बारा.... 


कूकुर पिलई पिलवा कांपय
बरधा पँड़िया गैया कांपय
कौवा सुग्गा बकुली पणकी
गुलकी नेउरा बिलरा कांपय
सीसम सुस्त नीम सुसुवानी
पीपर महुआ पानी पानी
राम एनहुं कय कष्ट नेवरा
चला गजोधर कौड़ा बारा ...

.... पद्म सिंह (अवधी)


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आइये जाने इन्टरनेट पर हिन्दी मे कैसे लिखें .

Posted via email from पद्म सिंह का चिट्ठा - Padm Singh's Blog

बुधवार, 2 जनवरी 2013

न जाने तुमने ऊपर वाले से क्या क्या कहा होगा ...

 
 

न जाने क्या हुआ है हादसा गमगीन मंज़र है

शहर मे खौफ़ का पसरा हुआ एक मौन बंजर है

फिजाँ मे घुट रहा ये मोमबत्ती का धुआँ कैसा

बड़ा बेबस बहुत कातर सिसकता कौन अन्दर है

 

सहम कर छुप गयी है शाम की रौनक घरोंदों मे

चहकती क्यूँ नहीं बुलबुल ये कैसा डर परिंदों मे

कुहासा शाम ढलते ही शहर को घेर लेता है

समय से कुछ अगर पूछो तो नज़रें फेर लेता है

चिराग अपनी ही परछाई से डर कर चौंक जाता है

न जाने जहर से भीगी हवाएँ कौन लाता है

 

ये सन्नाटा अचानक भभक कर क्यूँ जल उठा ऐसे

ये किसकी सिसकियों ने आग भर दी है मशालों मे

सड़क पर चल रही ये तख्तियाँ किसकी कहानी हैं

पिघलती मोमबत्ती की शिखा किसकी निशानी है\

 

न जाने ज़ख्म कब तक किसी के चीखेंगे सीने मे

न जाने वक़्त कितना लगेगा बेखौफ जीने मे

न जाने इस भयानक ख्वाब से अब जाग कब होगी

न जाने रात कब बीते न जाने कब सुबह होगी

 

न जाने दर्द के तूफान को कैसे सहा होगा

न जाने तुमने ऊपर वाले से क्या क्या कहा होगा

बहुत शर्मिंदगी है आज ख़ुद को आदमी कह कर

ज़माना सर झुकाए खड़ा  ख़ुद की बेजुबानी पर

 

मगर जाते हुए भी इक कड़ी तुम जोड़ जाते हो

हजारों दिलों पर अपनी निशानी छोड़ जाते हो

अगर आँखों मे आँसू हैं तो दिल मे आग भी होगी

बहुत उम्मीद है करवट हुई तो जाग भी होगी

 

.....पद्म सिंह

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रविवार, 2 सितंबर 2012

मेरी दुवाओं का अंजाम भी पाए कोई

कभी तो सामने अंजाम भी आए कोई
मेरी दुवाओं का असर भी तो पाए कोई

किसी का नाम जुबां पर न सही दिल मे है
कभी तस्वीर को आईना बनाए कोई

कोरे कागज़ के पैरहन कभी रंगीन भी हों
रंग बरसाए कभी झूम के गाए कोई

जिसके घर लगता है हर शाम गमों का मेला
जाए भी घर तो सिर्फ नाम को जाए कोई

लहू सा उम्र भर जो बहते रहे सीने मे
अब भुलाए तो उन्हें कैसे भुलाए कोई

दर्द ऐसा न सहा जाए न छोड़ा जाआए
इश्क कैसे तेरा भी साथ निभाए कोई

दर्द से जिसने मरासिम बना लिया हो पद्म
काहे पछताए कोई रंज मनाए कोई

..... पद्म सिंह