सोमवार, 28 फ़रवरी 2011

पूजा के फूल

पूजा के फूलों की
ये ही परिणति है क्या
चढ़ते है डाली से टूट
ईश चरणों में
मात्र अहम् पोषण को
मर्दन को शोषण को
अपनी ही जड़ से हो दूर
चूर हो किसी की अर्थी पर
चढ़ते भी तनिक न लजाते है
बनते है प्रीती का सिंगर
वार तन मन
मधु सेज भी सजाते है
गाते है झूम झूम
जब तक हों डाली पर
गाते इतराते है
उपवन पर माली पर
विधना के हाथों
क्यों तोड़ दिए जाते है
छोड़ दिए जाते है
पथरीली राहों पर
कैसे ये सृष्टि भला
दारुण दुःख ढोती है
धिक् है प्रलय कंदराओं में
सोती है
००००००००००००००००००००००००००

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