कब तक ये संत्रास रहेगा
कब तक ये वातास बहेगा
धूप न मिल पाई बिरवे को
निर्मम कारा के गह्वर में
प्यास न मिट पाई मरुथल की
धूल धुंध फैली अन्तर में
सरसिज की आहों में कब
पतझड़ का आभास रहेगा
आंखों को चुभने लगता है
पलकों का सुकुमार बिछौना
मन की तृषा भटकती ऐसे
जैसे आकुल हो मृग छौना
आख़िर कब तक इन राहों को
मंजिल का विश्वास रहेगा
विधि के हांथों जीवन की भी
डोर छोर पुरजोर बंधी है
जहाँ राह ले जाए रही के
सपनों की डोर बंधी है
रजा राम संग सीता को
मिलता ही वनवास रहेगा
कबतक ये ...........
आख़िर कब तक इन राहों को
जवाब देंहटाएंमंजिल का विश्वास रहेगा
achchhi rachna
santrash men na dooben vanvas ki sadhana se hi ravan ke nash ki shakti upajegi.
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर रचना धन्यवाद
जवाब देंहटाएंविधि के हांथों जीवन की भी
जवाब देंहटाएंडोर छोर पुरजोर बंधी है
जहाँ राह ले जाए रही के
सपनों की डोर बंधी है
जीवन का यही सच है...सुन्दर रचना
आख़िर कब तक इन राहों को
जवाब देंहटाएंमंजिल का विश्वास रहेगा
अगर मंजिल का विश्वास न हो तो चलना मुश्किल हो
जाएगा
सुंदर रचना....
वाकई बेहतरीन रचना. बधाई.
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